शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
संवाददाता बंधु, जरा इस पुरानी खबर को ध्यान से पढिए और मेरी टिप्पणी भी ।
सड़क निर्माण : जनता की शिकायतों को जांच एजेंसी ने बताया गलत
Nov 27, 07:38 pm
दाउदनगर (औरंगाबाद) ठाकुर बिगहा कनाप सड़क इसी महीने बन कर तैयार हो जाएगी। लगभग दो करोड़ रूपये से बनने वाली दस किमी लंबी यह सड़क गत दिनों गुणवत्ता की शिकायत को ले ग्रामीणों द्वारा तोडे़ जाने के बाद चर्चा में आयी थी। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत निर्माणधीन इस सड़क की गुणवत्ता पर ग्रामीणों ने सवाल उठाया था। कई सक्षम संस्थानों को जांच के लिए लिखा गया था। निर्मात्री एजेंसी इरकान ने इसे बनाने का ठेका लोकल एजेंसी को दे रखा है। ठेकेदार कौशल किशोर सिंह ने इस बात की पुष्टि की है कि केन्द्रीय जांच कमिटी ने जांच के बाद ग्रामीणों के आरोप को खारिज कर दिया है। तीस सदस्यीय कमेटि ने जांच किया था अब प्रशासनिक देखरेख में इस सड़क का निर्माण हो रहा है। गुणवत्ता नियंत्रण और इरकान वाले भी तैनात रहते हैं। श्री सिंह ने दावा किया कि एक ग्रामीण पैसे की मांग को लेकर डटा था, नहीं देने पर उसने तमाम जगहों पर शिकायत की, जबकि काम गुणवत्ता पूर्ण कराया जा रहा था। जांच कमेटी ने पचास-पचास फीट पर सड़क खोदकर जांच किया। दूसरी ओर जांच रिपोर्ट से ग्रामीण संतुष्ट नहीं है।
मेरी टिप्पणी-
सबसे पहले तो मैं बता दूँ, कि जिस ग्रामीण पर पैसे माँगने का आरोप लगाया गया वह मैं ही हूँ । वास्तव में मैंने तमाम जगहों पर शिकायत पहुँचाई पर उसका एकमात्र उद्देश्य प्राक्कलन के अनुसार काम करवाना था । और मैं इसमें सफल रहा । दैनिक जागरण के संवाददाता भी इस मामले में अच्छी रिपोर्टिंग नहीं किए । कोई चुटका पर लिखकर कुछ दे दे और उसको आप खबर बना दें, यह जिम्मेवार संवाददाता का काम नहीं । आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि अखबारों की पहुँच घर-घर में होती है और उसके आधार पर लोग एक धारणा बना लेते हैं । आपकी खबरों को लोग सही समझ कर पढ़ते है । सबसे पहले तो इसका प्राक्कलन लगभग दो करोड़ नहीं बल्कि आठ करोड़ बाईस लाख रुपये थी । फिर ग्रामीण विकास मंत्रालय से जो लेटर मेरे पास आया है उसमें तो यह लिखा गया है कि शिकायत पर जब जाँच हुई तो घटिया स्तर के मैटेरियल के उपयोग की बात सामने आयी । इतना ही नहीं उन्होने संबंधित एजेंसी को तुरंत निवारक कार्रवाई करने हेतु स्पष्ट निर्देश भी दिया है । कोई भी व्यक्ति चाहें तो वह लेटर मुझसे संपर्क कर देख सकते हैं । रही बात पैसे माँगने के आरोप के बारे में तो मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि जहाँ भी मैं गलत कार्यों का विरोध कर रहा हूँ, चट से लेवी माँगने, रंगदारी माँगने, पैसे छिनने इत्यादि का आरोप लगा कर थाने में प्राथमिकी दर्ज करने का आवेदन दे दिया जाता है । पत्रकार महोदय आप पर देश की भविष्य टिकी है, कम से कम आप तो वास्तविकताओं से अवगत होकर खबर प्रकाशित करें । मैं आपसे अपनी छवि बनाने हेतु यह नहीं कह रहा, अगर मैं इसकी चिन्ता करने लगा तो शायद कुछ न कर पाऊँ । बल्कि इसलिए कह रहा हूँ कि ऐसी खबरों से भ्रष्टाचारियों को बल मिलता है और बाकि लोग विरोध करने से कतराते हैं ।
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
भूखी लाश की आवाज़
चुनने के बाद न जाने किस खता पर
वो इस कदर नाराज हुएं
की हमारी भूख भरी चीखें
उनके कानों में बे-असर ,बे-आवाज़ हुएं।
आज एक बेबस चल बसा
एक गरीब खामोश हुआ
आज उन्होंने संसद नही चलने दी
क्योंकि उन्हें इसका अफ़सोस हुआ।
हम ता-उम्र नंगे खड़े रहे उनके दर पर
पर वो हमारी बदहाली से आज जाने जायेंगे
मैं भूखा मरा लेकिन मेरी लाश
पर कल कई कमाने आयेंगे।
ये जीवन फाकों में गुजरा
फाकों में ही अस्त हुआ
पर मैं खुश हूँ की मेरे मरने से
कईओं की रोजी-रोटी का बन्दों-बस्त हुआ।
हालांकि अफ़सोस यह है की निवाले हमारे
अब भी सेहत -मंदों की तिजोरियों में बंद है
गरीब कल भी कल की रोटी के लिए फिक्र-मंद था
आज भी कल की रोटी के लिए फिक्र-मंद है।
-अभिनव शंकर 'अनिकुल'
http://aneekul.blogspot.com/
इनका घर कब बनेगा ?
मेरे गाँव में इन्दिरा आवास योजना अंतर्गत १२१ लाभार्थियों का चयन हुआ है । लगभग २५ ऐसे हैं, जिनके पास पहले से अपना पक्का मकान है अथवा जिनके परिवार के सदस्यों के नाम पर इन्दिरा आवास का एक नहीं दो-दो बार आवंटन हो चुका है । कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिनके पास पक्का का मकान तो है ही, खेती-बारी की अच्छी जमीन भी है और संपन्न हैं । मैं खुलकर कहूँ तो मेरी जाति (भूमिहार) से ही दो लोगों का नाम लाभार्थियों की सूचि में है, वे बिल्कुल अयोग्य पात्र हैं । एक भाजपा के छुटभैये नेता हैं, दिनभर कोई काम नहीं, मुखिया जी के लटक, इस पदधिकारी से उस पदाधिकारी तक केवल जान-पहचान के लिए दौड़ लगाना, कोई मंत्री रास्ते से गुजर रहे हों तो घंटों रोड पर माला लेकर खड़ा रहना, फिर जनता से आय-आवासीय बनवाने के लिए ५० रु॰ तसीलना और अभिनन्दन समारोह आयोजित करना इनकी दैनन्दिनी है । इन महाशय के तीनों पुश्त का नाम बीपीएल सूचि में है, दो इन्दिरा आवास पहले ले चुके हैं तीसरे का पैसा जल्दी ही मिलनेवाला है । मूरख जनता, इन्दिरा आवास के लिए पाँच-पाँच हजार रुपए मुखिया जी के पास जमा कर रही है । मुखिया जी कोई शपथ-पत्र अपने पास जमा करा रहे हैं और लाभार्थियों को हड़का रहे हैं कि पैसा नहीं देने पर आपका शपथ-पत्र नहीं लेंगे और आप लाभार्थियों की सूची में रहने के बावजूद, लाभ से वंचित कर दिए जाओगे । मैंने बीडीओ साहब से शिकायत की (बाकायदा वैसे लोगों का नाम दिया जो या तो पूर्व में इस योजना का लाभ उठा चुके हैं या जिनका पक्का का मकान है तथा जाँच में सहयोग करने का वादा भी किया), उन्होने जाँच के आदेश भी दे दिए हैं । इधर सुनने में आ रहा है कि अनुसंधान पदाधिकारी ने लाभार्थियों से संपर्क साधा, कुछ लेन-देन की बातें हुई तथा एक-दो को छोड़कर बाकि लोगों के मकान की हालत जर्जर बता दी । अब इसका क्या उपाय है ? बात तो वही हो गयी- "बिल्ली को दूध की रखवाली मिल गयी" । मैंने इस बारे में शिकायत की तो कुछ लोगों ने कहना शुरु किया कि यह ग्रामीण राजनीति है । कुछ ने कहा यह पुरब-पश्चिम की लड़ाई है, जिसके चलते शिकायत की गई । भैया न तो मैं राजनीति कर रहा हूँ और न ही पुरब-पश्चिम के चक्कर में हूँ । ये बातें तो धूर्त लोग हवा में उछाल देते हैं अपनी रोटी सेंकने के लिए, जबतक आप पूरी बात समझेंगे तबतक वे अपनी रोटी सेंक चुके होंगे । मेरी जो शिकायत है उसे आप देखें तो पायेंगे कि यह हूबहू सही है, और पता है यह किनका हक मारा गया है । चलिए मेरे साथ देवी बिगहा, उमेर बिगहा तथा ठाकुर बिगहा -
यहाँ न तो नली-गली बनाया गया, न बीआरजीएफ का पैसा लगाया गया, न इन्हें नरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया गया और न अभी तक इन्दिरा आवास उपलब्ध कराया गया । इनके घर माटी के बने हैं, प्रत्येक वर्ष एक-दो लोगों की मौत साँप काटने से हो जाती है और घर को घर नहीं कहा जा सकता । बरसात में तो इनके घर अब गिरे कि तब गिरे वाली हालत में होती है । बाहर गली से लेकर घर तक कीचड़ का अंबार लगा होता है । मेरे अंदर भी जातीय भावनाएँ हैं, पर इनकी हालत देखता हूँ तो मेरा मन रोने को करता है, और विवश हो जाता हूँ इनके लिए कुछ करने को और फिर जात-परजात की बात खतम हो जाती है । वास्तव में यह मैं किसी राजनीति के तहत नहीं कर रहा बल्कि लगता है कि इनके पास जानकारी का अभाव है जिसके चलते इन्हें ठगा जा रहा है, तो मुझसे जितना बन पाए उतना करने की तो कोशिश करूँ । ये दिन-रात मेहनत करते हैं, इनकी मेहनत की कमाई हम खाते हैं, पर उनके खाने की गारंटी नहीं होती । ऊपर से इनके कल्याण के लिए चलायी जा रही सरकारी योजनाओं को भी हमलोग ही हड़प लें, तो यह महापाप है और सारे फसादों का जड़ भी । एक साजिश के तहत इन्हें बीपीएल सर्वे के समय अपेक्षाकृत कम गरीबों की सूची में रखा गया अथवा सर्वे में अंकों का ऐसा दाँव-पेंच लगाया गया कि इनके हिस्से का लाभ स्थानीय मुखिया के चहेतों को मिल सके, चाहे वे गरीब न भी हों । मैं किसी विचारधारा से भी प्रभावित नहीं हूँ बल्कि यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है । हो सकता है, इसके चलते भी मुझपर कोई नई प्राथमिकी दर्ज हो जाए पर इससे सच्चाई पर तो पर्दा नहीं डाला जा सकता ।
रजनीश कुमार
ग्राम-अरई, जिला-औरंगाबाद,
राज्य-बिहार, पिन-८२४११३
सोमवार, 23 नवंबर 2009
नीतीश ने सूचना नियम बदले, अख़बारों ने ख़बर गोल की
ध्यान रहे कि वर्ष 2005 में संसद द्वारा सूचना क़ानून पारित किये जाने से पहले ही नौ राज्य सरकारों ने सूचना क़ानून लागू कर दिये थे। तमिलनाडु एवं गोवा में 1997, राजस्थान एवं कर्नाटक में 2000, दिल्ली में 2001 में यह क़ानून बना। असम, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र ने 2002 तथा जम्मू-कश्मीर ने 2004 में सूचना क़ानून बनाया। इनमें से एक भी राज्य एनडीए के किसी घटक या भाजपा-जदयू शासित नहीं था। इन नौ राज्यों में और फिर केंद्रीय स्तर पर भी सूचना क़ानून लाने का श्रेय कांग्रेस और यूपीए से जुड़े दलों को जाता है। अब कांग्रेस को सूचना क़ानून बनाने का अफ़सोस है क्योंकि इस क़ानून से पहली बार लोकतंत्र के बेचारे नागरिक को एक हैसियत मिल गयी है। वह शासन-प्रशासन की असलियत उजागर करने लगा है। इसीलिए केंद्र सरकार ने सूचना क़ानून में संशोधन करके इसे कमज़ोर करने की कोशिशें शुरू कर दी है।
दूसरी ओर, बिहार सरकार ने एक कदम आगे बढ़ कर फीस नियमों में अवैधानिक संशोधन किये हैं। इससे पता चलता है कि नागरिकों को सूचना के अधिकार से वंचित करने में आज यूपीए और एनडीए, दोनों में सहमति बन चुकी है।
17 नवंबर 2009 को पटना में बिहार सरकार के मंत्रिपरिषद की बैठक हुई। बैठक में सूचना का अधिकार संबंधी फीस नियमावली के संशोधन को स्वीकृति दी गयी। इसके अनुसार अब आवेदक को एक आवेदन पर एक ही सूचना उपलब्ध करायी जा सकेगी। आवेदक को सूचना पाने के लिए अपना टिकट लगा एवं पता लिखा लिफाफा भी देना होगा। इसके अलावा बीपीएल सूची में शामिल लोगों को अब दस पेज तक की ही सूचना नि:शुल्क दी जाएगी।
यह संशोधन पूर्णतया अवैध है। यह सूचना मांगने वाले नागरिकों को परेशान करने की बुरी नीयत से किया गया है। यह सूचना क़ानून के प्रावधानों और भावना के ख़िलाफ़ है। बिहार और देश की जनता इसे कदापि स्वीकार नहीं करेगी। सुशासन और विकास पुरुष की श्रेणी में नाम लिखाने की कोशिश में जुटे नीतीश कुमार को पारदर्शिता विरोधी इस संशोधन के कारण विदूषकों की सूची में अपना उल्लेख देखने की नौबत आ सकती है।
सूचना क़ानून के तहत फीस एवं अपील संबंधी नियमावली बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया है। लेकिन यह मूल क़ानून के अनुरूप ही होनी चाहिए, न कि इससे प्रतिकूल। कोई भी नियम उसके मूल क़ानून से ऊपर या उसके प्रतिगामी नहीं हो सकता। फिर, जब क़ानून और नियम में विरोधाभास हो, तो क़ानून को ही सर्वोपरि माना जाएगा।
सूचना क़ानून की धारा 7(5) कहती है – ऐसे व्यक्तियों से, जो गरीबी की रेखा के नीचे हैं, कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी।
मतलब साफ है। क़ानून के अनुसार बीपीएल श्रेणी के नागरिकों से सूचना के एवज़ में कोई फीस नहीं ली जाएगी। वह सूचना अधिकतम कितने पृष्ठों तक होगी, क़ानून ने इसकी कोई सीमा तय नहीं की है। लिहाजा, बिहार सरकार द्वारा बीपीएल श्रेणी के लोगों को दस पेज तक की ही सूचना निःशुल्क देने संबंधी नियम बनाया जाना अवैध है। यह सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रावधानों और भावनाओं के प्रतिकूल है। अदालत में इसे चुनौती देकर न्याय की अपेक्षा की जानी चाहिए।
इसी तरह, एक आवेदन में सिर्फ एक सूचना मांगने संबंधी नियम भी अवैध एवं हास्यास्पद है। सूचना क़ानून के अनुसार सूचना के लिए नागरिक एक लिखित आवेदन देगा। इसमें सूचना की परिभाषा काफी व्यापक एवं विस्तृत है। इसमें आवेदन को मात्र किसी एक सूचना या किसी एक बिंदु तक सीमित करने का कोई प्रावधान नहीं है। लिहाज़ा, कोई भी सरकार अपनी मरजी से सूचना की परिभाषा को संकुचित नहीं कर सकती। यह संशोधन बिहार को सुशासन नहीं बल्कि कुशासन की ओर ले जाएगा। नौकरशाह इस संशोधन की मनमानी व्याख्या करके नागरिकों को अपमानित और प्रताड़ित करेंगे।
सूचना के एवज़ में फीस लेने का प्रावधान है। लेकिन क़ानून में यह बात स्पष्ट कही गयी है कि यह फीस युक्तियुक्त या तर्कसंगत होनी चाहिए। अनुचित या अतार्किक फीस वसूलने की कोशिश अवैध मानी जाएगी।
क़ानून की धारा 27 में राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति दी गयी है। इसमें फीस संबंधी नियम सिर्फ सूचना के लिए आवेदन करने और सूचना के प्रति पृष्ठों के संबंध में लेने की बात कही गयी है। सूचना नहीं मिलने या अधूरी मिलने पर अगर आवेदक को अपील करनी हो, तो इसके लिए कोई फीस नहीं ली जा सकती। प्रथम अपील के संबंध में राज्य सरकार को सिर्फ प्रक्रिया संबंधी नियम बनाने की शक्ति है। इसके लिए वह कोई फीस निर्धारित नहीं कर सकती।
लेकिन बिहार सरकार ने प्रथम अपील के लिए पचास रुपये की फीस निर्धारित करके सूचना क़ानून का मखौल उड़ाया है। जरा सोचिए, किसी नागरिक को अपील क्यों करनी पड़ रही है? जनसूचना अधिकारी ने उसे वांछित सूचना नहीं दी, इसलिए नागरिक को अपील करनी पड़ रही है। अगर उसे सूचना मिल गयी होती तो अपील नहीं करनी पड़ती। इस तरह, जनसूचना अधिकारी द्वारा क़ानून का पालन नहीं किये जाने के कारण नागरिक को प्रथम अपील करनी पड़ी। ऐसे में उस नागरिक को संरक्षण और सहयोग देने के बजाय उससे पचास रुपये वसूलना निश्चय ही उसे हताश करने की साजिश है।
डॉ जगन्नाथ और लालू प्रसाद जैसे प्रतापी नेता पशुपालन घोटाले की चक्की में पिस गये। मधु कोड़ा जैसे सौभाग्यशाली मुख्यमंत्री मिनटों में उठाईगीर साबित हो गये। सुशासन लाना हंसी-ठठ्ठा नहीं है नीतीश जी। देखते-ही-देखते दिन लद जाएंगे। सुशासन का ठेका अकेले मत लीजिए। नहीं सकिएगा। भ्रष्टाचार रोकना हो तो बिहार के नागरिकों की मदद लीजिए। सुशासन चाहिए तो आम नागरिक की हैसियत को मत ललकारिए। उसे भी शासन और प्रशासन से जानने और पूछने दीजिए। उसे अवैध नियमों के जाल में मत उलझाइए। उन राज्यों का अनुसरण कीजिए, जो सूचना क़ानून को सरल और जनमुखी बना रहे हैं। महाराष्ट्र से ही कुछ सीख लीजिए। पुणे नगरपालिका में हर सोमवार को कोई भी नागरिक जाकर कोई भी फाइल देख सकता है। उसकी फोटो कॉपी ले सकता है। महाराष्ट्र ज़्यादा दूर लगे तो आप पड़ोसी राज्य झारखंड के एक युवा आइएएस का उदाहरण देख लीजिए। रांची के उपायुक्त केके सोन अपने विभागों की तमाम सूचनाएं सहर्ष देने को तत्पर रहते हैं। उन्हें तो कोई डर नहीं है सूचना क़ानून से।
अगर आपको अकर्मण्यता और लूटखसोट के उजागर होने का भय नहीं, तो सूचना क़ानून से डरने की ज़रूरत नहीं। नागरिक तो अपने सवालों से आपके सुशासन के रथ को आगे बढ़ाने में ही मदद कर रहे होंगे। अगर आपके पास छुपाने को कुछ नहीं, तो सूचना क़ानून से भय कैसा? यह क़ानून तो पूरे देश में शासन और प्रशासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में ऐतिहासिक और शानदार सफलताएं हासिल कर रहा है। फुरसत हो तो इन सफलताओं के किस्से पढ़-सुन लें। क़ानून की धारा चार के सभी प्रावधानों का सही अनुपालन हो तो आपकी समस्याएं यूं ही आधी हो जाएंगी। आप जिस सुशासन की बात करते हैं, वह सूचना क़ानून से ही आएगा। वह सुशासन हर नागरिक की सक्रियता से ही आ सकता है। अगर आपके राज्य में सूचना क़ानून की हत्या हुई, तो कुशासन लाकर सुशासन की बात करने वाले विदूषक कहलाने में देर नहीं लगेगी।
Original post by Sri Vishnu Rajgadiya on www.mohallalive.com
शनिवार, 21 नवंबर 2009
DIG Installs Jahangiri Bell in Bihar
Saturday, August 9th 2008
Patna. For a change, Bihar police has got a different image in Muzaffarur thanks to the efforts of 1988 batch IPS Arvind Pandey, DIG of Tirhut range. Pandey has got a “Jahangiri Bell” installed outside his official bungalow at Muzaffarour. It has been installed on the pattern of a similar bell placed outside the palace by Mughal Emperor Jahangir.
Pandey , who is available on both mobile and landline numbers, has got the Jahangiri Bell (he has written the Jahangiri bell on his bungalow walls too) installed to facilitate the common man, who has no cellular phone or land line connection to contact him. Anyone with any grievance has to simply pull the bell, the DIG will come out of his bungalow. If he is out of station, his staff comes out and attends to the common man after hearing the sounds of the bell.
Son of a priest of the famous Vindhyachal temple in Uttar Pradesh, Arvind Pandey has earned image of a social reformer in Bihar. He has launched the Bihar Mukti Andolan ,which advices people to ignore minor conflicts, settle disputes through mutual negotiations and shun violence.
Pandey claims that the Andolan was a cultural movement to organize the disgruntled youths to constructive activities. Through the Andolan, the DIG helps out of court settlements of disputes in his range. Over 3,000 disputes were settled in one year through the Andolan, giving relief to the litigants from appearances in the courts, attending to the investigations in the police stations and saving money which is paid as fees to the advocates.
Pandey calls the litigants and their witnesses before Andolan Jan Adalat and after hearing them advises to settle their disputes amicably. According to Pandey 70 per cent of the disputes were related to poor families. Out of court settlements were great relief for these families
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
"भूरा बाल साफ करो"
१९७४-७५ में जेपी आन्दोलन के तथाकथित नेता आज बिहार के नियामक बन गये हैं, वे आज नीति-निर्माता हैं तथा गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के नायक बताए जा रहे हैं । यह सच है कि लालू, नीतीश और पासवान ने बिहार के राजनीतिक चेहरे को बदलने की कोशिश की है, पर इसका कोई बुनियादी असर हुआ नहीं दिखता । बिहार में सवर्ण राजनीति का दौर बीत चुका है । पिछड़ी, दलित और वंचित जातियाँ अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो गयी हैं । उनका राजनीतिक सशक्तिकरण हुआ है । निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बढ़ी है ।
लालू ने शायद बदलते दौर की नजाकत को समझते हुए ही सवर्णों को गरियाना शुरु किया था और कुर्सी की अंधी दौड़ में सफल भी हुए । मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के बाद तो उन्होने जातीय उन्माद फैलानेवाले भाषणों की झड़ी लगा दी । उस दौर में "भूरा बाल साफ करो" लालू जी का हमवाक्य हो गया था । मुझे लगता है कि बहुत सारे जातीय दंगे इनके भाषणों के कारण ही हुए । कुछ जातियों के बीच इतनी कटुता भर गयी कि उनमें संवादहीनता की स्थिति आ गयी और वे अकारण एक-दूसरे को दुश्मनी के भाव से देखने लगे, कभी-कभी तो उसका असर आज भी दिखता है । ये जेपी क्रान्ति के उपज हैं ।
रामविलास पासवान का आचरण सर्वविदित है । एक वोट की खातिर देश पर लोकसभा का चुनाव थोपा और घोर आश्चर्य कि चुनाव बाद जिसके विरुद्ध वोटिंग किया उन्हीं के साथ हो लिए । इन्हें देशहित नहीं, अपने मंत्रीपद की परवाह थी। दलित राजनीति करते हैं, पर शौक पुराने महाराजाओं से भी बड़े-बड़े रखते हैं । "सामंत" एवं "सामंती प्रवृति" शब्द का बार-बार उल्लेख करते थे । विदित हो कि इन दोनों शब्दों का प्रयोग तथाकथित समाजवादी नेता कमोवेश सवर्णों को गाली देने के लिए अपनी सुविधानुसार करते रहते हैं ।
नीतीश कुमार बिहार के विकास के नाम पर सत्ता में आए | चार साल में इन्होने काफी मेहनत भी की, पर इनमें भी व्यापक दृष्टिकोण का अभाव है, इनका आचरण कतई लोकतांत्रिक नहीं है । वे दोहरे चरित्र के मालिक हैं, खुद को अच्छे छवि के रुप में पेश कर, अपने दल में चोर-उचक्कों की फौज खड़ी कर ली है । भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में असफल रहे, जिससे कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा हो गया है । अपने साथी मंत्रियों को पद तो दिया, पर अधिकार से वंचित रखा । लोकसभा चुनावों के पूर्व विकास के नाम पर जनता की भावना जबर्दस्त रुप से नीतीश के पक्ष में बनी, जिसका अपमान नीतीश कुमार ने महाबली सिंह तथा कई ऐसे ही मौकापरस्त एवं अयोग्य व्यक्तियों को देश की सर्वोच्च नीति-निर्मात्री संस्था लोकसभा में भेजकर किया ।
क्या वाकई इन नेताओं की चिन्ता राज्य के विकास को लेकर है या विकास और सामाजिक न्याय का नारा सत्ता हथियाने का एक उपक्रम मात्र है ?
सोमवार, 16 नवंबर 2009
Fwd: Case No. 217/2009 Daudnagar PS (Aurangabad)
From: Bihar Bhakti <bihaarbhakti@gmail.com>
Date: Mon, Nov 16, 2009 at 9:25 AM
Subject: Re: Case No. 217/2009 Daudnagar PS (Aurangabad)
To: Rajnish Kumar <rajnisharai@gmail.com>
Cc: dgp-bih@nic.in, sp-aurangabad-bih@nic.in, digmagadh-bih@nic.in, zonalig-patna-bih@nic.in, Nitish Kumar <cmbihar@bih.nic.in>, cmbihar@nic.in
सेवा में ,
श्री आनंद शंकर ,
पुलिस महानिदेशक ,
बिहार ,
महोदय ,
इस काण्ड में पुलिस अधीक्षक , औरंगाबाद ने मेरी सूचना पर तुंरत हस्तक्षेप करके ,एक नागरिक को गैरकानूनी तरीके से जेल भेजे जाने से बचाया ..
थाना स्तर पर आज भी वही हो रहा है जो सदा से होता आया है ..प्राथमिकी-उद्योग , पर्यवेक्षण-उद्योग और विशेषप्रतिवेदन-उद्योग पर तुंरत निवारक कारर्वाई की आवश्यकता है ..
अरविंद पाण्डेय ..
उप महानिरीक्षक ,
पटना .
Respected sir,
Yesterday, i was arrested by a police officer of Daudnagar Police Station in district Aurangabad (Bihar) in a fake case made by a most corrupt Bank Manager. As i had made complaints on various complaint forums about his corrupt activities and had filed an application seeking information under RTI. IO (Investigation Officer) Md. A.A.Khan was demanding some rupees for writing a good diary about me, i told him that "i am not going to give you a single rupeeas i havn't done any thin wrong with bank manager. Why he has not investigated the case till date nor supervised ? Thanks a lot to senior IPS Officer Sir. Arvind Pandey, who followed up the matter and after that i was released on bail otherwise they were sending me in jail. In fact, i am innocent in this case and i think, local police officers know the facts but they are delaying in investigation and supervision for malpractices. What type of policing this is ? I am not a criminal nor indulged in any type of illegal activities as my best knowledge.
I request you to please enquire the matter and do as needed.
With great regards-
Rajnish Kumar
S/O Dr. Krishna Nandan Sharma
Village & Post Arai,
Ps Daudnagar,
Dist. Aurangabad (Bihar0,
PIN 824113
Fwd: Case No. 217/2009 Daudnagar PS (Aurangabad)
From: Rajnish Kumar <rajnisharai@gmail.com>
Date: Sun, Nov 15, 2009 at 11:48 PM
Subject: Case No. 217/2009 Daudnagar PS (Aurangabad)
To: dgp-bih@nic.in, sp-aurangabad-bih@nic.in, digmagadh-bih@nic.in, zonalig-patna-bih@nic.in
Cc: bihaarbhakti@gmail.com, Nitish Kumar <cmbihar@bih.nic.in>, cmbihar@nic.in
Respected sir,
Yesterday, i was arrested by a police officer of Daudnagar Police Station in district Aurangabad (Bihar) in a fake case made by a most corrupt Bank Manager. As i had made complaints on various complaint forums about his corrupt activities and had filed an application seeking information under RTI. IO (Investigation Officer) Md. A.A.Khan was demanding some rupees for writing a good diary about me, i told him that "i am not going to give you a single rupees i hadn't done any thing wrong with bank manager. Why he has not investigated the case till date nor supervised ? Thanks a lot to senior IPS Officer Sir. Arvind Pandey, who followed up the matter and after that i was released on bail otherwise they were sending me in jail. In fact, i am innocent in this case and i think, local police officers know the facts but they are delaying in investigation and supervision for malpractices. What type of policing this is ? I am not a criminal nor indulged in any type of illegal activities as my best of knowledge.
I request you to please enquire the matter and do as needed.
With great regards-
Rajnish Kumar
S/O Dr. Krishna Nandan Sharma
Village & Post Arai,
Ps Daudnagar,
Dist. Aurangabad (Bihar0,
PIN 824113
सोमवार, 9 नवंबर 2009
क्या वे आज के लियोनार्दो द विंची हैं !
कल मैं पहली बार आई पी एस ऑफीसर श्री अरविन्द पाण्डेय जी से मिला, बहुत सुखद अनुभूति हुई । वे एक पुलिस ऑफीसर से बहुत आगे की चीज हैं । सबसे बड़ी बात तो ये है कि वे सपना देखते हैं, बिहार को सशक्त बनाने का सपना और समाज को जोड़ने का सपना । बात करने से पता चलता है कि उनके मन में बिहार को विकसित बनाने हेतु व्यग्रता है । व्यग्रता के साथ-साथ सतर्कता भी है, कोई व्यग्रता में गलत प्रतिक्रिया न दे इसकी हिदायत वे बार-बार देते हैं । इस मंदी और सूखे की चपेट में बिहारियों के कल्याण हेतु आए पैसे का सदुपयोग न होकर लौट जाना, टीस देनेवाला है । मैं क्या कोई भी थोड़ा समझ रखनेवाला आदमी उनसे बात करने के बाद बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता । नरेगा के बारे में कह रहे थे कि इसमें अगर मजदूरों को काम लगातार मिलता रहता तो इससे उनकी क्रय क्षमता बढती और स्थानीय स्तर पर जहाँ एक ओर खुदरा व्यापारियों को लाभ मिलता वहीं शहर में थोक व्यापारियों की भी चाँदी रहती, साथ में विक्रय शुल्क तथा अन्य सांविधानिक करों के माध्यम से राज्य सरकार की भी आमदनी बढ़ती । वे हाल में उजागर हुए मधु कोड़ा प्रकरण पर कह रहे थे, जनता भी बेमतलब के मुद्दों पर तो रेलगाड़ी जलाने पहुँच जाती है (जो मेरे विचार से देशद्रोह है) पर इन चार हजार करोड़ रुपये की वापसी के लिए कोई मुँह नहीं खोल रहा । वे इस बात के प्रति भी आगाह करते नजर आए कि कहीं बिहार में भी तो कोई मधु कोड़ा नहीं पल रहा । फर्जी मुकदमों को खत्म कराने के उनके प्रयास सर्वविदित हैं । वे किताबें लिखते हैं, कवितायें लिखते है, प्राणायाम तथा योगा करते हैं, इण्टरनेट पर भी बहुत सक्रिय हैं, संगीतकार हैं, गीतकार हैं, खुद गाते भी हैं, अभिनेता भी हैं और भी बहुत फन में माहिर,सामाजिक कार्यों में सक्रियता के मामले में शायद ही कोई उनका मुकाबला करे । क्या वे आज के लियोनार्दो द विंची हैं !
How Poor Are We
One day, the father of a very wealthy family took his son on a trip to the country with the express purpose of showing him how poor people live.
They spent a couple of days and nights on the farm of what would be considered a very poor family.
On their return from their trip, the father asked his son, 'How was the
trip?'
'It was great, Dad.'
'Did you see how poor people live?' the father asked.
'Oh yeah,' said the son.
'So, tell me, what did you learn from the trip?' asked the father
The son answered:
'I saw that we have one dog and they had four.
We have a pool that reaches to the middle of our garden and they have a creek that has no end.
We have imported lanterns in our garden and they have the stars at night.
Our patio reaches to the front yard and they have the whole horizon.
We have a small piece of land to live on and they have fields that go beyond our sight.
We have servants who serve us, but they serve others.
We buy our food, but they grow theirs.
We have walls around our property to protect us, they have friends to protect them.'
The boy's father was speechless.
Then his son added, 'Thanks Dad for showing me how poor we are.'
Isn't perspective a wonderful thing?
Makes you wonder what would happen if we all gave thanks for everything we have, instead of worrying about what we don't have.
Appreciate every single thing you have, especially your friends!
'Life is too short and friends are too few.'
शनिवार, 7 नवंबर 2009
"मेरी आवाज सुनो"
सबसे पहले तो मैं एकमात्र उपस्थित लोक सूचना पदाधिकारी जो पुलिस विभाग से थे का जिक्र करुँगा । उन्होने कहा कि पुलिस विभाग की नौकरी थैंकलेस जौब है और प्राथमिकी दर्ज करना हमारी मजबूरी है, चाहे वह झूठी ही क्यों न हो । अनुसंधान में घटना को असत्य पाए जाने पर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाएगा तथा वह मुकदमा स्वतः बंद हो जाती है । मुझे कानून की जानकारी नहीं है, पर अगर ऐसा है तब तो यह काला कानून है और बिना हत्या हुए कोई हत्या का मुकदमा किसी पर दर्ज करा सकता है और मुकदमा दर्ज होने तथा आरोप पत्र दाखिल होने या न होने के बीच के समयांतराल में अभियुक्त बेवजह मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक परेशानी को झेलता रहे । और फिर अपने आप को सही साबित करने के लिए वह अनुसंधान पदाधिकारी का लल्लो-चप्पो करता रहे ।
न्यायमूर्ति एस॰ एन॰ झा साहब ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि न्यायालय में लोग न्याय के लिए आते हैं, लेकिन बड़ी अजीब बात है कि बहुत रेयर केस में ही फरियादी अपनी बात खुद कहता है, फिर केस डायरी में कितनी सच्चाई रहती है यह भी संदिग्ध है अर्थात न्यायालय के निर्णय दूसरों की कही बातों पर दिए जाते हैं । उन्होने खुले मंच से स्वीकार किया कि न्याय बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है । बहुत लोग तो ऐसे भी मिले हैं जिनके खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल नहीं हुआ और कानूनी अनभिज़तावश तीन-तीन साल से जेल में बंद थे । उनका कहना था कि कम से कम ब्यूरोक्रेट्स अथवा उनके अनुकर्मी जनता से सीधे जुड़े रहते हैं और वे उन्हें प्रथम दरवाजे पर ही उचित एवं सबसे प्रभावी न्याय देने में सक्षम हैं । उन्होने सरकारी सेवकों के खिलाफ उचित आनुशासनिक कार्रवाई न किया जाना सरकारी बाबुओं में व्याप्त लालफिताशाही का मुख्य कारण माना । यह बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि लोग चाहते तो हैं कि भ्रष्टाचार न रहे पर इसके लिए पब्लिक ओपिनियन आज तक नहीं बन पाया है । सबसे पहले तो अधिसंख्य लोग या तो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं अथवा भ्रष्टाचारियों के बचाव में उठ खड़े होते हैं, कोई जात के नाम, कोई संप्रदाय के नाम पर, कोई क्षेत्र के नाम पर इत्यादि । अर्थात् भ्रष्टाचार मुद्दा बन ही नहीं पाता है, लोगबाग हर स्थिति में स्वयं लाभान्वित रहना चाहते हैं । मैं तो यही कहूँगा कि आत्म विश्लेषण की जरुरत है ।
अरविन्द केजरीवाल जी ने बिहार में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर अशोक चौधरी की पदस्थापना को गलत बताया । उनका कहना था कि मान लें प्रशासक के रुप में चौधरी साहब ने अगर कुछ गलतियाँ की होंगी और उसी से संबंधित सूचना कोई माँग दे तो क्या ये निष्पक्ष सूचना देंगे, नहीं देंगे । उन्होने तो यहाँ तक कहा कि बिहार सूचना का अधिकार मंच की संयोजिका श्रीमती परवीण अमानुल्लाह को ही मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया जाए । केजरीवाल जी ने कहा कि सूचना आवेदकों पर जो पीआईओ मुकदमा दर्ज करता है वास्तविक नक्सली वही है । प्रायः सूचना का आवेदन वैसे लोग ही देते हैं, जिनका काम विभागों में सामान्य ढंग से नहीं होता है । एक तो उसका काम नहीं हुआ और जब वह अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करता है तो उसपर मुकदमा कर दिया जाता है, इससे समाज में हताशा बढ़ती है और उकताकर आदमी गलत कदम उठाता है ।
प्रशान्त भूषण ने व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की बात कही, तथा मानवाधिकार आयोग को दण्ड देने का अधिकार दिये जाने की माँग की ।
मुझे मंच पर विचार व्यक्त करने का मौका तो नहीं मिला पर यहाँ तो कर ही सकता हूँ -(१) सबसे पहले हर व्यक्ति को खुद के अंदर झाँकने की जरुरत है, और कम से कम गलतियाँ हों ऐसा ध्यान रहे ।
(२) गलत करनेवाला कोई भी हो, उसका विरोध होना चाहिए ।
(३) विरोध का तरीका संविधानिक विधियों के अधीन होना जरुरी है ।
(४) सबसे पहले आम जन को ताकतवर बनाना जरुरी है, जिसका एकमात्र उपाय है - सबको शिक्षित करना ।
(५) तात्कालिक फायदे के लोभ में न आना ।
और भी बहुत सारे............................