tag:blogger.com,1999:blog-30566216245594526672024-03-13T16:22:11.733+05:30ग्राम पंचायत अरईजब छेड़ा मुजरिम का किस्सा,
चर्चित था हाकिम का हिस्सा.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.comBlogger108125tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-7563208605468931982015-12-31T23:30:00.000+05:302016-03-09T11:22:35.802+05:30अलविदा 2015पारंपरिक हिन्दू परिवार और ग्रामीण पृष्ठभूमि में पलने के कारण मन से मेरी गहरी आस्था होली, दशहरा, दीवाली, छठ, सरस्वती-पूजा जैसे त्योहारों से ही जुड़ी हुई है. पर पहली जनवरी को त्यौहार के रूप में मनाना भी परंपरा ही बन गया है. आगामी नववर्ष की पूर्व संध्या पर कई बातें जेहन में आती हैं-<br />
सबसे पहले तो ऐसा महसूस होता है जैसे घड़ी के सूईयों की रफ़्तार तेज हो गई है, विश्वास ही नहीं होता कि बस एक महीने के बाद मैं भी चालीस साल का हो जाऊँगा, उम्र मिजाज से आगे बढ़ गई. आज भी बचपन की शरारतें आकर्षित करती हैं और कई बार तो अपने को रोक नहीं पाता पर अगले ही क्षण घंटी बजती है कि "अरे यार बचपना छोड़ो, अब तुम वयस्क भी नहीं बुजुर्ग हो रहे हो".<br />
चलिए बचपना छोड़ कुछ गंभीर चर्चा करते हैं. वर्ष 2015 में सरकार और संस्थाओं को Accountable रखने हेतु Ranjit Kumar और Vishwajeet Kumar Chandel बधाई के पात्र हैं. रणजीत जी के PIL के कारण पूरे राज्य में फर्जी प्रमाणपत्रों पर नियुक्त शिक्षकों की जाँच चल रही है और विश्वजीत जी के तथ्य आधारित निगरानी विभाग में प्राथमिकी के आधार पर घोटाले के आरोपी जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के कुलपति को बर्खास्त किया गया. शिव प्रकाश राय जी और नागरिक अधिकार मंच बिहार के नाम तो इतनी सफलताएँ हैं कि उन्हें लिखना संभव नहीं.<br />
मैं वर्षांत का पोस्ट लिखूं और उसमें अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की चर्चा न हो यह संभव नहीं-<br />
कुछ अधिकारी ऐसे होते हैं जिनकी पदस्थापना उस पद को महत्वपूर्ण बना देता है. अपराध अनुसंधान विभाग में कमजोर वर्ग के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे, पर अरविंद पाण्डेय सर की पदस्थापना के बाद ऐसा कहा जाने लगा कि पुलिस मुख्यालय में कमजोर वर्ग ही सबसे मजबूत है. अभी वे बिहार में खेलों को नई ऊँचाई तक पहुँचाने के अभियान में जुटे हैं. खेलेगा बिहार, खिलेगा बिहार. फिर विकास वैभव जी ने बतौर SSP Patna अपने कार्यों से यह साबित किया कि (1) अपराधी चाहे कोई भी हो छूटेगा नहीं, <br />
(2)किसी की अनावश्यक पैरवी नहीं सुनी जाएगी, <br />
(3) किसी अदने व्यक्ति के एक SMS पर भी पुलिस संवेदनशीलता से कार्य करेगी: <br />
कहीं पढ़ा था कि किसी शिक्षक ने अपने विद्यालय के टॉयलेट को साफ़ करने हेतु अपने जिले के DM से सफाई कर्मचारी नियुक्त करने की माँग की. अगले दिन विद्यालय के सामने डीएम की गाड़ी रुकी और डीएम स्वयं अपने एक हाथ में ब्रश दुसरे में हारपिक लिए उतरे, टॉयलेट साफ़ किया और चले गए. उस दिन के बाद बिना सफाई कर्मचारी के ही उस विद्यालय का टॉयलेट हमेशा साफ़ होते रहा. अभी हाल में ही गोपालगंज के एक विद्यालय में एक विधवा द्वारा मध्याह्न भोजन बनाने का जब ग्रामीणों ने विरोध किया तो स्वयं डीएम गोपालगंज श्री Rahul Kumar ने विद्यालय जाकर उस विधवा के हाथ से बना और परोसा खाना खाया. यह सामान्य घटना है, पर इससे एक अधिकारी की संवेदनशीलता और नेतृत्व-कौशल का पता चलता है. मैं पुनः कहता हूँ कि ऐसे अधिकारियों की बदौलत ही व्यवस्था पर से भरोसा नहीं टूटता.<br />
पत्रकारिता के क्षेत्र में मैं TOI की रिपोर्टर श्रीमती Sayantanee Choudhury की संवेदनशीलता का कायल हूँ. ऐसा नहीं है कि उन्होंने कभी मेरा नाम अखबार में छाप दिया और मैंने उनका जिक्र कर दिया. अगर मुद्दा सही हो तो वे एक एक्टीविस्ट की तरह निर्णायक मोड़ तक पीछा करती हैं. उनकी यह प्रवृत्ति बनी रहे यही कामना है. <br />
पोस्ट में राजनीति का जिक्र न हो तो मजा नहीं. मैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार दोनों का समान रूप से प्रशंसक हूँ और आलोचक भी. बिहार विधान सभा चुनावों में प्रधानमंत्री जी ने पता नहीं किन चाटुकारों के बनाए रणनीति पर अपने पद की गरिमा के विरुद्ध आचरण किया, वहीं नीतीश जी ने केवल तार्किक और संदर्भित बातें कर अपनी गरिमा को पुनःस्थापित किया. हाँ, मैं लालू जी पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा.<br />
बहुत सारी बातें और यादें हैं, पर पाठक के धैर्य की भी कोई सीमा होती है. <br />
अलविदा 2015.<br />
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-73035870307118132512015-01-01T20:54:00.002+05:302015-01-01T20:54:59.332+05:30इस नववर्ष में सब अमंगल दूर हो.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
</div>बीते वर्ष बिहार में राजग गठबंधन का टूटना अफसोसजनक रहा. अहंकार राज्यहित पर भारी पड़ा. बिहार का भविष्य नीच बिहारी नेताओं ने बर्बाद किया है. शिव प्रकाश राय जी ने बतौर One Man Army राज्य में कई घोटालों का उद्भेदन किया और एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की भांति अनवरत जूझते रहे हैं, वर्तमान में ऐसे लोगों की जरुरत है, भयवश ही सही तंत्र ऐसे जुनूनी लोगों की वजह से कुछ सही दिशा में काम कर भी देता है. नागरिक अधिकार मंच, बिहार के माध्यम से उन्होंने उच्च न्यायालय में कई जनहित याचिकाएं दायर कर रखी हैं, जिससे गड़बड़ी करनेवालों की नींद हराम है, बहुत सारे मामले अभी पाईपलाईन में हैं. बिहार जनशिकायत निवारण प्रणाली www.bpgrs.in पर दर्ज शिकायतों का कोई संज्ञान नहीं लिया जाता, उम्मीद है नववर्ष में इसे उपयोगी बनाया जाएगा. बिहार राज्य खाद्य निगम की गलत धान-खरीद नीतियों के कारण राज्य सरकार को भी अत्यधिक राजस्व की क्षति हुई है और राज्य में राईस मिल उद्योग भी पूरी तरह बर्बाद हो गया. नए साल में किसानों से धान-खरीद की प्रक्रिया में उम्मीद है सुधार किया जाएगा. जजों की नियुक्ति हेतु केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम सिस्टम के स्थान पर न्यायिक आयोग के गठन का फैसला काबिले तारीफ़ और साहसिक कदम है. प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत अभियान जन-जागरूकता की दिशा में शानदार पहल है, इस कार्यक्रम को शुरू करने हेतु वे बधाई के पात्र हैं. मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य, समेकित बाल-विकास परियोजना, पीडीएस ये सब जनता के धन को लूटने के कार्यक्रम हैं और इनका जमीनी स्तर पर कहीं कोई समुचित क्रियान्वयन नहीं हो रहा. इन सब योजनाओं में सुधार की भी कोई गुंजाईश नहीं सबको बंद कर देना चाहिए और बिना किसी के दबाव में आए इन्हें निजी हाथों में सौंप देना चाहिए. राज्य सरकार की मुख्यमंत्री साईकिल योजना का उद्देश्य सफल रहा है और यह बालिकाओं में आत्मविश्वास जगाने का काम किया है, बाकी छात्रवृत्ति, पोशाक-राशि इत्यादि एक तरह से वोट के लिए नकदी बाँटने जैसा है. यह सरकारी विद्यालयों में कलह का कारण बना हुआ है. मध्याह्न भोजन योजना तो किसी सिरफिरे के दिमाग की उपज है, जिसने भी यह योजना बनाई है वह अवश्य ही चाहता होगा कि गरीबों के बच्चे न पढ़ें. आपलोग बतायें अमीरों के बच्चों के लिए जो टॉप क्लास के स्कूल हैं उनमें मध्याह्न भोजन योजना का प्रावधान है ? अगर उद्देश्य संतुलित भोजन देना है तो बच्चे की माँ को इससे संबंधित राशि और अनाज उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी. मध्याह्न भोजन योजना के कारण ही बिहार में गंडामन धर्माशती जैसे काण्ड हुए. भूमि की कमी को देखते हुए इंदिरा आवास योजना के लाभार्थियों का ग्रुप बनाकर पेयजल एवं शौचालय संपन्न बहुमंजिले भवन बनाकर उन्हें आवंटित करना चाहिए न कि उनके खाते में सत्तर हजार रूपए डाल दिए और निश्चिन्त हो गए. मेरे गाँव में लगभग एक करोड़ रूपए से अधिक के सरकारी भवन का निर्माण हुआ है पर उनका दस साल से भी अधिक समय से कोई उपयोग नहीं हुआ और अब वे खस्ताहाल उपयोग लायक हैं भी नहीं. आप राज्य और देश स्तर पर इस तरह के फिजूलखर्ची का अनुमान लगा सकते हैं. यह सब इसलिए होता है कि विभिन्न विभागों के बीच सामंजस्य का घोर अभाव है. भवन निर्माण विभाग ने पशु अस्पताल का निर्माण करवा दिया पर उसमें बैठने के लिए सरकार के पास डॉक्टर और कर्मियों का अभाव है. पहले डॉक्टर की व्यवस्था करते तब भवन बनाते, जनता के धन का इस तरह निर्लज्जता और निर्ममता से बंदरबांट करते हो ! नीचे वाला फोटो जो देख रहे हैं इसे वेबरत्न अवार्ड मिला हुआ है, पर जरा इनाम पानेवालों से पूछ लीजिए कि इस पर कितने मामले दर्ज हुए और उसमें से कितने मामलों पर जांचोपरांत कार्रवाई हुई, और कितने मामलों का ATL Upload किया गया. सब ढाक के तीन पात हैं. उम्मीद है नववर्ष में इन सारी भडासों को दूर करने हेतु हमलोग प्रयासरत होंगे और सरकार भी अधिक संवेदनशील बनेगी.<a href="http://3.bp.blogspot.com/-8AVf54m3Lx4/VKVmuYSYkBI/AAAAAAAAE5M/9acaqkZKn1c/s1600/0.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-8AVf54m3Lx4/VKVmuYSYkBI/AAAAAAAAE5M/9acaqkZKn1c/s320/0.jpg" /></a>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-38698558955383969672014-08-18T19:03:00.000+05:302014-08-18T19:03:39.924+05:30अतिक्रमण और अराजकता का यह तरीका चिंतित कर रहा हैकोई भी गलत बात भीड़ इकठ्ठा कर देने, रोड जाम कर देने और प्रशासनिक अधिकारियों को घेरकर जबरन दबाव बनाने से सही नहीं हो जाता. प्रबुद्ध और सक्रिय लोगों के सहयोग से मेरे गाँव के लोगों ने अरई से मुसेपुर खैरा के बीच आहर के किनारे रोड बनाने हेतु बीच में पड़नेवाली अपनी निजी जमीन दे दी. इस बाबत मैंने पूर्व में अपने फेसबुक वाल पर लिखा भी था और काफी उत्साहित था कि जो काम कई पीढ़ियों से नहीं हुआ था वो हमलोगों के समय हुआ. यह उम्मीद बढ़ी कि जब मेन रोड से आहर का पिंड कनेक्ट हो गया है तो भविष्य में इन दोनों गाँवों के बीच आज न कल इस रास्ते पक्की सड़क भी बन ही जाएगी. इस बीच विगत एक हफ्ते के अंतर्गत अचानक से गाँव के ही अनुसूचित जाति के मजदूर वर्ग के लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से आहर के पिंड तथा उसके जलसंचय के क्षेत्र को अतिक्रमित कर लिया और उस पर थेथर, बाँस, कांटे इत्यादि से प्लॉटिंग कर घेर लिया. विदित हो कि वह पिंड खेती के लिए ट्रैक्टर आने-जाने, धान का बोझा रखने और अरई से मुसेपुर खैरा के बीच आवागमन के रास्ते के रूप में उपयोग होता है और आहर इन दोनों गाँवों के लगभग पाँच सौ एकड़ जमीन के पटवन और जल-संचय का साधन है. दिनांक 16/08/2014 को जब गाँव के किसानों ने अतिक्रमण हटाने का प्रयास किया तो अतिक्रमणकारी मजदूर वर्ग के लोग लगभग तीन सौ की संख्या में महिलाओं को आगे कर लाठी-डंडा से लैस होकर झगड़े पर उतारु थे. संयोग सुखद था, उनके आक्रामक रवैये के बावजूद लोगों ने संयम से काम लिया और एक बड़ी घटना टल गई. फिर उन्होंने पटना-औरंगाबाद मुख्य सड़क को जाम कर दिया और प्रशासनिक पदाधिकारियों के लगातार आग्रह के बावजूद अराजकता का माहौल बनाए रखा. खैर काफी मान-मनौव्वल और खुशामद के बाद वे लौटे. मुझे अतिक्रमण और अराजकता का यह तरीका चिंतित कर रहा है. मैं अपने गाँव और यहाँ के युवाओं के भविष्य के प्रति चिंतित हूँ. अनुसूचित जाति और मजदूर वर्ग को भारतीय संविधान में विशेषाधिकार इसलिए हासिल हैं कि उनका सामाजिक-आर्थिक स्तर ऊपर उठ सके, इसलिए नहीं कि वे अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग समाज में उग्रवाद और अव्यवस्था फैलाने हेतु करें. कोई भी मसला हो अंततः उसका समाधान संवाद से निकलता है, इसलिए समाधान हेतु मजदूर और किसानों के बीच हमेशा तनाव रहित वातावरण में संवाद कायम होना चाहिए. मैंने अपने अहंकार को ताक पर रख कर मजदूर वर्गों से व्यक्तिगत संवाद कायम कर इस तरह का व्यवहार न करने हेतु आग्रह किया है और किसानों को भी मजदूरों के साथ बिल्कुल तनाव-रहित माहौल में बात कर पुनः पहले जैसी मित्रवत वातावरण में खेती का कार्य जारी रखने का आग्रह किया है. भगवान हमारे गाँव के भविष्य को सही दिशा दें, यही कामना है.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-45917465546118157362014-06-06T12:06:00.002+05:302014-06-06T12:06:43.950+05:30नवाबी जिंदाबाद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
</div>आजादी के सरसठ साल होने को हैं पर अभी तक आम भारतीय जनता में इतनी साहस भी पैदा नहीं हो सकी है कि वो गलत को गलत कह सके. व्यवस्था आज भी अलोकतांत्रिक और सामंती है, अदना सा लोकसेवक राजा की तरह व्यवहार करता है और जन-प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद अपने आपको परामानव समझने लगते हैं. देश की अधिसंख्य जनता मन से गुलाम है और उसे कभी अपने मालिक होने का अहसास ही नहीं होने दिया गया. अपनी कुटिलताओं के साथ सिस्टम आमलोगों का शोषण कर उन पर राज कर रही है. पायदान के टॉप पर बैठे लोग जान-बूझकर व्यवस्था को ऐसे ही बनाए रखने को संकल्पित दीखते हैं. Transparency और Accountability शब्द क्रूर मजाक है. इन सारी बातों को हमारे देश के हर संगठन चाहे वो प्रशासनिक हो, राजनीतिक हो, सांविधानिक हो और उसका स्वरूप छोटा हो या बड़ा हर जगह महसूस किया जा सकता है. ऊँची जा रही सभी सीढियों पर नवाब बैठे हैं जो अपने से बड़े नवाब की भी अनदेखी करने की हिमाकत रखते हैं.......नीचे दीन-हीन पब्लिक उनकी तरफ कातर निगाहों से देख रही है कि कब एक नवाब का सीट खाली हो और हम वहाँ जा बैठें, उसे भी बस उस नवाब के सीट पर जाने की तमन्ना है. इस नवाबी को तोड़ने की उसकी भी इच्छा नहीं. सदियों की गुलामी आज भी जेहन में है.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-24368516418688363292014-05-26T08:36:00.000+05:302014-05-26T08:36:11.941+05:30मुख्यमंत्री जी, बधाई हो.नीतीश जी के इस्तीफे के बाद भी हमारी हार्दिक इच्छा थी कि वे पुनः मुख्यमंत्री बनें, पर राजनीति केवल जन-भावनाओं के आधार पर नहीं चलती. जयप्रकाश विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर श्री Ramnaresh Sharma जी सही ही कह रहे थे कि हम राजनीतिक हलचलों को अपने दृष्टिकोण से आँकते और देखते हैं और अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर बिल्कुल आदर्श स्थिति की कल्पना करते हैं, पर बहुत सारी उलझनें ऐसी होती हैं जो मीडिया में भी नहीं आती. और फिर राजनेता राजनीतिक दृष्टि से अपने नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं. नीतीश जी एक परिपक्व राजनेता हैं, केवल लोकसभा चुनावों में सीटें गँवा देने के कारण वो बिहार में बिल्कुल फ्लॉप कर गए और उनकी प्रासंगिकता खत्म हो गई, ऐसा मैं नहीं मानता. सोशल साईट्स पर शुरुआती दिनों में तमाम लोग इनके लिए कसीदे पढने लगे थे और अब उतनी ही गालियाँ दे रहे हैं. मुझे लगता है इस तरह की दोनों प्रवृत्ति केवल तात्कालिक उत्तेजना का परिणाम है. मैं इनके सबसे अच्छे दिनों में भी जनहित की अनदेखी करने पर व्यवस्था के विरोध में लिख देता था, पर आज जब इनको गालियाँ दी जा रही है तो मुझे दुःख भी हो रहा है. उन्होंने बिहार को आगे बढ़ाने हेतु सही में प्रयास किया है और बहुत क्षेत्रों में काफी सुधार लाया है. गठबंधन टूटने के कारण इनके प्रति नाराजगी बढ़ी है और उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा. पर, इससे इनके द्वारा बिहार के विकास हेतु और राज्य-हित में किए गए कार्यों को नकारा नहीं जा सकता. कोई भी रचनात्मक सोच का आदमी अपनी उपलब्धि और रचनात्मकता को बर्बाद होते नहीं देख सकता. उदाहरण के लिए मुझे पौधारोपण में रूचि है, अगर पौधे का एक डाल भी क्षतिग्रस्त होता है तो मुझे अत्यधिक पीड़ा होती है. नीतीश जी ने भी बिहार को एक बाग़ की तरह सजाने का प्रयास किया है और वे केवल एक चुनाव में असफल हो जाने के कारण राज्य-हित से अलग सोचने लगेंगे, ऐसा नहीं हो सकता. उन्होंने मुख्यमंत्री पद हेतु माननीय जीतन राम माँझी जी का चयन किया है तो यह निश्चित रूप से राज्य और इसकी जनता के हित को ध्यान में रखकर किया होगा. मुझे नवनिर्वाचित माननीय मुख्यमंत्री जी के बारे में बहुत जानकारी नहीं, पर नीतीश जी पर पूरा भरोसा है, वे बिहार के लिए अच्छा ही करेंगे, उनसे राज्य-हित के विरुद्ध कोई कार्य हो ही नहीं सकेगा. कोई माली अपने बाग को बर्बाद नहीं कर सकता. Etv Bihar पर माननीय जीतन राम माँझी की शपथ की खुशी में उनके गाँव-गिराँव के महिलाओं को गीत गाते देखा, उन्हें इतना खुश देखकर मैं भी भाव-विभोर हो गया. उन्हें भी अधिकार है सत्ता में भागीदारी का और सत्ता-सुख प्राप्त करने का, जो लगातार दोषारोपण करते रहे हैं कि उन्हें कतिपय कारणों से सत्ता से दूर रखा जाता है. हम यह कयास कैसे लगा सकते हैं कि वे योग्य सिद्ध नहीं होंगे ? निश्चित रूप से बहुत अच्छा काम करेंगे और मेरी हार्दिक इच्छा है कि बिना कोई सामाजिक दुर्भावना फैलाए वे आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ गए अपने भाई-बंधुओं के उत्थान के लिए भी पर्याप्त काम करें, हमें कोई आपत्ति नहीं. राज्य का विकास सबके विकास से ही संभव हो सकेगा. इसके पीछे का कारण जो भी हो, महादलित समुदाय से बिहार के मुख्यमंत्री का चयन सर्वोत्तम निर्णय है और मैं नीतीश जी के इस निर्णय का ताली बजाकर स्वागत करता हूँ. भगवान नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री को राज्य को और तेजी से विकास पथ पर अग्रसर करने की प्रेरणा दें.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-3076091913543423382014-04-08T13:17:00.000+05:302014-04-08T13:17:44.507+05:30इस वीडियो को देखकर रोने को मन करता है वे हमारी सुरक्षा में अपनी जान दे देते हैं और हम उनकी प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था भी नहीं कर पा रहे, शर्मनाक है.<br />
अभी डिप्टी कमांडेंट स्वर्गीय इन्द्रजीत जी का यूट्यूब पर ह्रदय-विदारक वीडियो देखा. वे चिल्ला रहे हैं कि दो घंटे से मेरे पास कोई डॉक्टर नहीं आए हैं, मेरे शरीर से पूरा खून बह गया है और मैं पांच-दस मिनट में मर जाऊँगा. वे गिड़गिड़ा रहे हैं कि मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, कोई डीजीपी को कहो, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रपति किसी को कहो, हेलिकॉप्टर मंगाओ, पर मुझे बचा लो मेरे भाई. <br />
पर, हालात ऐसे हैं कि आज तक बिहार में हेलिकॉप्टर बेस नहीं बनाया गया, जरुरत पड़ने पर राँची से हेलिकॉप्टर मंगाया जाता है. वहीँ नक्सली हमले तथा अन्य कारणों से घायलों के इलाज के लिए राँची के ही अपोलो अस्पताल से टाई-अप है, पटना में ऐसे घायलों के इलाज के लिए समुचित व्यवस्था सहित कई अस्पतालों की उपलब्धता के बावजूद सरकार के स्तर से किसी के साथ टाई-अप नहीं है. एक बार सीआरपीएफ में तैनात एक वरीय आईपीस अधिकारी ने गया में हेलिकॉप्टर बेस बनाने का प्रस्ताव लाया था, पर तब के डीजीपी महोदय जो अब मानवाधिकार की रक्षा करते हैं, ने इस पर विचार करना भी उचित नहीं समझा और यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया था कि माननीय मुख्यमंत्री महोदय गृहमंत्री श्री चिदंबरम से बात करने को इच्छुक नहीं रहते.<br />
फिर, अपने लिए तो राजनेता पूरी सुविधाओं से लैस चिकित्सकों की टीम लिए घुमते हैं और स्पष्ट निर्देश के बावजूद अति नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी सुरक्षा-कर्मियों के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था क्यों नहीं की जाती ? घायलों को घंटों बाद मीनी बस के फूट-रेस्ट पर लादकर लाया गया. <br />
औरंगाबाद में रेड क्रॉस सोसायटी एक मजे करनेवाली क्लब बनकर रह गई है, जिसके सदस्यों का काम केवल पदाधिकारियों के आगे-पीछे करना और बैठकबाजी करना रह गया है. वे केवल कांफ्रेंस करते हैं, पार्टी करते हैं और रेड-क्रॉस के नाम पर जिले में प्रभावशाली ग्रुप बनाने का काम करते हैं, जिनका अंतिम उद्देश्य प्रशासन की दलाली करना है. वे उद्देश्यों से पूरी तरह भटके हुए हैं. अक्सर आपातकाल में ब्लड की जरुरत पड़ने पर इसकी उपलब्धता शून्य रहती है.<br />
सदर अस्पताल औरंगाबाद के हालात से भी सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं.<br />
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वीडियो लिंक- https://www.youtube.com/embed/RAGDBVznhrIरजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-82496745432940131862014-02-23T11:28:00.001+05:302014-02-23T11:29:26.399+05:30अरई को शाबासी <a href="http://1.bp.blogspot.com/-zjrZia_tgyI/UwmOLqOV5sI/AAAAAAAAEjE/goX-dc55nPc/s1600/1689170_10203366706676482_1711747750_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-zjrZia_tgyI/UwmOLqOV5sI/AAAAAAAAEjE/goX-dc55nPc/s400/1689170_10203366706676482_1711747750_n.jpg" /></a>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-75217819387216356232014-02-23T11:05:00.000+05:302014-02-23T11:05:03.529+05:30मन की बात <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
मैं सोचता हूँ कि ग्राम पंचायत अरई के -
ग्राम मुसेपुर खैरा के विशाल जलाशय का पुनरुद्धार कराया जाता, उसकी व्यापक उड़ाही कराकर उसमें मत्स्यपालन के द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ो रूपए अर्जित किए जा सकते हैं;
देवी बिगहा तथा अन्य टोलों पर रहनेवाले सभी गरीबों को बिना घूस के इंदिरा आवास मिल जाता और उनकी सारी गलियों को पंचायत विकास राशि से इंट सोलिंग कर दिया जाता, ताकि वे बरसात में नारकीय स्थिति में रहने को विवश ना हों;
हमारे गाँव में अरई से खैरा के बीच में आहर के किनारे पक्की सड़क बन जाए और दोनों किनारे सुन्दर-सुन्दर वृक्ष लग जाए तो नजारा कितना अच्छा होता;
ठाकुर-बिगहा से नाला तक और फिर शमशेरनगर स्टैंड से नौडीहा भाया खैरा तक सड़क के दोनों किनारे मुख्यमंत्री आवास के पास लगे Palm Tree पौधा लग जाता और उसी तरह के स्ट्रीट लाईट की व्यवस्था हो जाती;
अरई तथा बिरई गाँव के बीच लगभग चार सौ एकड़ जमीन जल-निकास की व्यवस्था के अतिक्रमित हो जाने के कारण अनुपजाऊ और अनुपयोगी बनी है, उसका समाधान होता तो लोगों की आय बढ़ती;
पांच एकड़ में फैले उच्च विद्यालय अरई के जमीन को अतिक्रमणमुक्त कर उसकी चहारदीवारी दी जाती और बिहार राज्य शैक्षिक आधारभूत संरचना निगम के द्वारा वहां भवन बनाए जाते, जिसमें १०+२ तक की पढ़ाई होती और गाँव के लड़कियों को इंटरमीडीएट तक की पढ़ाई की सुविधा मिल जाती;
सूर्यमंदिर के पास के तालाब को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो जाती, अभी उसमें बहुत ही गंदा और मल-मूत्र युक्त पानी जमा होता है और उसी में लोग स्नान कर पूजा करते हैं;
गाँव की आबादी के हिसाब से यहाँ कम से कम पांच सौ केवीए क्षमता के ट्रांसफार्मर लग जाते, ताकि हर किसी को बिजली उपलब्ध हो जाती;
दस हजार की आबादी वाले गाँव में अधिकतम दस लोग हैं जो किसी न किसी कारण से बिल्कुल लाचार हैं और उनके विशेष देखभाल की जरुरत है साथ ही पूरे गाँव के गलियों और नालियों के नियमित सफाई हेतु भी कोई उचित व्यवस्था नहीं है, इसके लिए गाँव के लोगों के द्वारा ही स्थापित एक ट्रस्ट से एक उचित व्यवस्था बनाई जा सकती है;
और अंततः यह कि यह सारे काम हो सकने वाले हैं, अगर स्थानीय प्रतिनिधि और सम्बद्ध पदाधिकारियों का सहयोग हो तो इसे बहुत कम समय में संभव किया जा सकता है. मैं तो इसे करूंगा ही चाहे समय जितना लगे.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-78254016365823358362012-12-26T22:21:00.002+05:302012-12-26T22:22:59.515+05:30हंगामा है क्यूँ बरपा ?दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ पूरे देश में कैंडल मार्च और विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरे देश में न भी हो रहे हों पर दिल्ली में तो हो रहे हैं न ? अभी हाल ही में काला-धन और जन-लोकपाल के लिए भी हुआ था. केजरीवाल जी के खुलासे पर खुलासे आ रहे थे, इधर कुछ कम हुआ है. सोशल साईट्स पर तो चौबीस घंटे आन्दोलन जारी हैं, सब देशभक्त और आन्दोलन के सिपाही हैं. बेशक हैं. नहीं हैं क्या ?
पर इस आन्दोलन का नेता कौन है ? इसके उद्देश्य क्या हैं ? इसका परिणाम क्या होगा ? सब कुछ हवा में है. कुछ भी तो तय नहीं. तो क्या जनता अराजक हो गई है ? वो सत्ता को खुलेआम चुनौती दे रही है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के घरों को घेर ले रही है. सम्पूर्ण जन-जीवन ठप हो जा रहा है. मीडिया इसका भरपूर सपोर्ट कर रही है, व्यवस्था में उच्चासीन लोगों को छोड़ दें तो सम्पूर्ण जनमानस का प्रत्यक्ष नहीं तो कम से कम परोक्ष समर्थन इन आन्दोलनकारियों को मिल रहा है. ये आंदोलनकारी हैं कौन ? ये हैं पढ़े-लिखे और समझदार युवा, जिनके हाथ अब कलम से अधिक कंप्यूटर पर चलते हैं और जो देश के नामी-गिरामी संस्थानों में पढ़े हैं/पढ़ रहे हैं. ध्यातव्य है कि पहले इनकी सहभागिता बहुत कम होती थी और ये आन्दोलन में रूचि न लेकर अपने अध्ययन कक्ष में ही समय बिताना सहज महसूस करते थे. इस आन्दोलन का माध्यम बन रहा है फेसबुक, VOIP, SMS. सब कुछ हाईटेक है, फेसबुक पर इवेंट क्रिएट कर लाखों को आमंत्रण भेज रहे हैं और जंतर-मंतर पर लोगों का हुजूम इकट्ठा. क्या सब कुछ अनायास हो रहा है ? कुछ तो कारण होगा.
कारण है. लोगों के मन में व्यवस्था के प्रति गुस्सा है. कहीं न कहीं हर आम आदमी व्यवस्था से पीड़ित/दुखी है. छोटे-छोटे गुस्सों का इजहार है यह. अब इसे रोकना या दबाना संभव नहीं. एकमात्र इलाज व्यवस्था को पारदर्शी, संवेदनशील और जिम्मेवार बनाना ही है. और यह अब केवल आम लोगों की समस्या नहीं, ख़ास किसी न किसी दिन भयंकर मुसीबत में फंसनेवाले हैं. बेहतर है, जल्द इलाज ढूंढ लें और अपने आप को भी समयानुसार ढाल लें. यह जनसैलाब अब रुकनेवाला नहीं. कोई नेता नहीं है ना, कि आप गुप्त समझौते कर लोगे और आन्दोलन की धार कुंद कर दोगे. फेसबुक का ज़माना है भाई, लाखों-करोड़ों देशभक्त लाइन में खड़े हैं. कितने से लड़ोगे ? अब लोग सरकार प्रायोजित अखबारों के समाचार पर आश्रित नहीं हैं, वे अब फेसबुक और गूगल सर्च खंगालते हैं जिसमें देश क्या गाँव-घर की स्थिति भी जानी जा सकती है. लोग अब अफवाहों और ख़बरों का विश्लेषण करना जान चुके हैं और सबसे खुशी की बात है कि युवा-पीढी निश्चित रूप से हमारे नेताओं की तुलना में अधिक ईमानदार, संवेदनशील और जवाबदेह है.
व्यवस्था में बैठे महानुभाव, आप व्यवस्था का पूरा ऑपरेशन कर उसे दुरुस्त करें नहीं तो यह असंतोष की ज्वाला आपका ऑपरेशन कर आपको दुरुस्त कर देगी.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-48560263073114295532012-11-26T21:17:00.000+05:302012-11-27T12:17:08.713+05:30आस्था या पाखण्ड !!मैं रजनीश कुमार ग्राम अरई में प्रस्तावित यज्ञ का विरोध करता हूँ. मुझे ये आए दिन होनेवाले भागवत कथा, गाँव-गाँव होनेवाले यज्ञ और गली-गली बननेवाले मंदिर आस्था से पोषित पाखण्ड नजर आते हैं. इनसे कहीं कोई मानवीय हित साधन होता नजर नहीं आता. अगर आपको आता हो तो मुझे बताएं. मुझे लगता है कि यज्ञ के नाम पर आए दिन अनावश्यक रूप से मोटे चंदों की उगाही होती है. आश्चर्यजनक रूप से जो अभिभावक अपने बच्चों को पैसे के अभाव में उचित शिक्षा नहीं दिला पाते, फटे गंजी पहने रहते हैं और संभवतः घर में सब्जी के अभाव में खाना खाते होंगे, वो भी अपने बजट से यज्ञ के लिए पैसे निकाल लेते हैं. कुछ लोगों ने मुझे कहा कि तुम नास्तिक हो और तुम्हारी धर्म में आस्था नहीं, तो मुझे लगता है कि ऐसा कहनेवालों को या तो आस्था और पाखण्ड में अंतर मालूम नहीं या उनमें इतनी साहस नहीं कि सही बात को स्वीकार करें. आस्था हमारी शक्ति है और पाखण्ड हमारी कमजोरी. किसी भी मान्यता को इस लिये ढोते रहना क्यूंकि हम से पहले सब कर रहे थे तो मात्र लकीर पीटना होता है. अगर आप का विश्वास है तो वो मान्यता आपकी आस्था है और अगर नहीं है तो आप एक पाखंड को निभा रहे हैं ताकि दुनिया मे आपकी जो छवि है वो अच्छी रहे. आप उच्च विद्यालय की तरफ जाते हैं तो रोड पर नाली का पानी बहते रहता है, उसका समाधान अपेक्षित है. हमारे समाज के अन्दर हमारे कुछ भाई-बन्धु ऐसे हैं जिनके देख-रेख का नैतिक दायित्व समाज का भी है, पर इस सच को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं. हमलोगों के साथ रहनेवाले नेताजी और उनके पिता श्री रामपुकार शर्मा आज मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण जानवरों से भी बदतर जिन्दगी जी रहे हैं पर समाज इस सच्चाई से मुंह मोड़ रहा है और धार्मिक पाखण्ड के अफीम के नशे में मस्त होने को आतुर है. यज्ञ तो कुणाल साहब कर रहे हैं जो महावीर मंदिर ट्रस्ट की आमदनी से महावीर आरोग्य संस्थान, महावीर वात्सल्य संस्थान और महावीर कैंसर संस्थान चला रहे हैं. सोचिए जरा, पहले कैंसर के इलाज के लिए मुम्बई जाना पड़ता था, आज इसका इलाज पटना में संभव है. उनके इस कार्य से मानव हित साधन होता है और मैं उन्हें सबसे बड़ा महात्मा मानता हूँ. मुझे पता है मेरी इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर आप इस पर बिना पूर्वाग्रह के एक बार सोचें जरुर. आगे के लिए ही सही. रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-68425132008442647182012-09-26T12:42:00.000+05:302013-06-01T20:09:21.763+05:30हरित अरई <a href="http://2.bp.blogspot.com/-CX5UTi8ix2I/UaoHgtEIYCI/AAAAAAAADP0/eTp0sG3Mg9A/s1600/408780_455680384482573_1518193167_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-CX5UTi8ix2I/UaoHgtEIYCI/AAAAAAAADP0/eTp0sG3Mg9A/s320/408780_455680384482573_1518193167_n.jpg" /></a>
औरंगाबाद में जे.के. ग्रुप के मालिक अजीत सिंह ने आज से एक भव्य अस्पताल J.K. Hospital & Research Center की शुरुआत की है, ठीक जे.के.मोटल के सामने. आधारभूत संरचना और तैयारी देखने से आभास होता है कि वे इसे एक बड़ा आयाम देना चाहते हैं और औरंगाबाद में पटना के बड़े अस्पतालों में उपलब्ध तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं को उपलब्ध कराने को संकल्पित हैं. मुझे अखंड विश्वास है कि निश्चय ही वे पूर्व की भांति इस बार चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में भी निरंतर गुणवत्ता हासिल करेंगे. आज पुलिस महानिरीक्षक (गृह रक्षावाहिनी), बिहार श्री आलोक राज साहब ने बतौर मुख्य अतिथि इस अस्पताल का उद्घाटन किया. उन्होंने अपने भाषण के क्रम में बड़ी मजेदार बात कही कि "पुलिस पदाधिकारियों को दिन-प्रतिदिन समाज के नकारात्मक पक्ष से रूबरू होना पड़ता है और मैं इस मौके को अपने मानवीय संवेदना के खाते में एक सकारात्मक पक्ष की आय के रूप में देख रहा हूँ". मुझे अपने गाँव अरई में आलोक राज साहब के औरंगाबाद से पटना लौटने के क्रम में उनके आतिथ्य-सत्कार का मौक़ा मिला. इस मौके पर मेरे मन में एक ख्याल आया कि क्यों न मैं भी उनके मानवीय संवेदना के खाते में एक सकारात्मक पक्ष की आय बढ़ाने में सहयोग करूँ. बस अपने बचपन से चले आ रहे पौधा-रोपण के शौक को पूरा करते हुए मैंने अपने वाटिका में उनके कर-कमलों से आम का एक पौधा लगवाया. इससे शायद मेरे खाते में भी एक नेक कार्य जुड़े.रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-20240833934311307922012-08-16T00:18:00.001+05:302012-08-16T00:18:16.462+05:30The Rainbow<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-YukxRsKfE5s/UCvu1le11xI/AAAAAAAAC4M/GlHQNGqKfrU/s1600/068EndOfRainbow.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="240" width="320" src="http://1.bp.blogspot.com/-YukxRsKfE5s/UCvu1le11xI/AAAAAAAAC4M/GlHQNGqKfrU/s320/068EndOfRainbow.jpg" /></a></div><br />
<br />
When I was a kid, I dreamed to catch a rainbow in the sky. In school days I loved to read a poem written by William Wordsworth "The Rainbow" and that time I was totally confused about the meaning of "Child Is the Father of Man". And now I am not a child ready to adopt healthy attitudes and positive traits. You may think, Why I am explaining so much about. Actually somehow today I have gone through this poem after many years, which recalled those lovely past days.<br />
<br />
"My heart leaps up when I behold <br />
A rainbow in the sky: <br />
So was it when my life began; <br />
So is it now I a m a man; <br />
So be it when I shall grow old, <br />
Or let me die! <br />
The Child is father of the Man; <br />
I could wish my days to be <br />
Bound each to each by natural piety."रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-85178520913950543052012-06-03T13:20:00.005+05:302012-06-03T13:20:54.605+05:30अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:.बहुत लोग हैं जो बंद कमरे में विचारधारा की बात करते रहते हैं. ब्रह्मेश्वर मुखिया नरपिशाच है, हत्यारा है और न जाने क्या-क्या. जब अदालत में २२ मामलों में से १६ मामलों में वे निर्दोष साबित हो चुके हैं, शेष ६ मामलों में जमानत पर थे, तो बाकी लोग हत्यारा कहनेवाले कौन होते हैं ! मध्य बिहार के गाँवों में नब्बे के दशक में सवर्णों का (खासकर भूमिहार जाति का और कुछ हद तक राजपूत जाति) जीना मुहाल हो गया था. मुझे बारा नरसंहार की घटना याद है, मैं उस नरसंहार के सामूहिक शव-दाह संस्कार में गया के फल्गु नदी किनारे शामिल हुआ था. तब मैं इंटर का छात्र था और मारे गए लोगों की स्थिति देखकर मैं मगध मेडिकल कॉलेज में जहां सारे लाश (संभवतः ३४) कतारबद्ध थे, वहीं बेहोश हो गया था. निश्चित रूप से उन्हें बेवजह और बेरहमी से गला रेत कर मारा गया था. एकमात्र वजह उनका भूमिहार जाति में जन्म लेना था. सेनारी की घटना का भी चश्मदीद बना, इसके अलावे इक्के-दुक्के हत्याएं तो गाँव-गाँव में हो रही थी. उस समय सरकार भी माओवादियों की ही थी, स्वाभाविक रूप से न्याय की कहीं से कोई गुंजाईश नहीं थी. कोई न्यायिक और विधिसम्मत तरीका सूझ नहीं रहा था, जिससे इस बर्बरतापूर्ण शोषण एवं अति भयपूर्ण वातावरण से मुक्ति मिले. न्यायिक प्राक्रियाओं में अखंड विश्वास रखनेवाले बुद्धिजीवी वर्ग भी बिल्कुल हताश हो चुके थे और असुरक्षा की भावना हर भूमिहार के मन में घर कर गयी थी. बेसब्री से विकल्प तलाश रहे लोगों को ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ मुखिया जी मिले. इनका व्यक्तित्व चमत्कारिक यूँ ही नहीं था- ये अतिविश्वसनीय और गंभीर स्वभाव के शान्ति-पसंद इंसान थे. मेरी इन बातों की हँसी उड़ाई जाएगी, क्योंकि सोशल साईट्स के प्रचलन के बाद घर-घर में पत्रकार बन गए हैं और बिना तथ्यों को गंभीरता से जाने हर बात पर अपनी राय व्यक्त करते हैं. उन्होंने कभी भी दलित अथवा पिछडों से बदसलूकी अथवा दुर्व्यवहार की इजाजत नहीं दी. जहां जाते वहाँ समाज के लोगों को मजदूर वर्ग से मिल-जुल कर रहने की ताकीद करते और हिदायत देते. गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्राप्त करने को उत्साहित करते. पर, वे जानते थे कि जो नक्सल के नाम पर भूमिहारों का उत्पीडन हो रहा है वह Balance of Terror से ही समाप्त हो सकता है. उन्होंने स्वयं कहीं भी किसी नरसंहार, किसी हिंसा में भाग नहीं लिया पर नक्सल के नाम पर हो रहे जुल्म का जवाब उन्हीं के तरीके से देने का आह्वान जरुर किया. आप स्वयं फर्क महसूस कर सकते हैं, आज हालात वैसे नहीं हैं. तो क्यूँ ना फख्र करें हम इन पर ? जो ज्वलंत समस्या थी, उसको इस शख्स ने चुटकी बजाते सुलझाया, यही कारण है कि इनका आदर बुद्धिजीवियों में भी भरपूर है, जो हिंसा-प्रतिहिंसा से बहुत दूर भागते हैं. मुखिया जी ने पुनः याद कराया कि - <br />
अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:.<br />
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ..रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-80354943618581852582012-02-08T18:17:00.000+05:302012-02-08T18:17:38.151+05:30Rumour Philosophy<div>Keep this philosophy in mind the next time you either hear or are about to repeat a rumor.<br />
In ancient Greece (469 - 399 BC), Socrates was widely lauded for his wisdom. One day the great philosopher came upon an acquaintance who ran up to him excitedly and said, "Socrates, do you know what I just heard about one of your students?"<br />
"Wait a moment," Socrates replied. "Before you tell me, I'd like you to pass a little test. It's called the Test of Three."<br />
Three?<br />
"That's right, Socrates continued, "Before you talk to me about my student let's take a moment to test what you're going to say.<br />
The first test is Truth. Have you made absolutely sure that what you are about to tell me is true?"<br />
"No," the man said, "actually I just heard about it."<br />
"All right," said Socrates. "So you don't really know if it's true or not" Now let's try the second test, the test of Goodness.<br />
Is what you are about to tell me about my student something good?"<br />
"No, on the contrary..."<br />
"So," Socrates continued, "you want to tell me something bad about, him even though you're not certain it's true?"<br />
The man shrugged, a little embarrassed.<br />
Socrates continued,<br />
"You may still pass, though, because there is a third test- the filter of Usefulness. Is what you want to tell me about my student going to be useful to me?"<br />
"No, not really..."<br />
"Well," concluded Socrates, "if what you want to tell me is neither True Nor Good nor even Useful, why tell it to me at all?"<br />
The man was defeated and ashamed... This is the reason Socrates was a great philosopher and held in such high esteem.<br />
<br />
</div>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-83768176915006085442012-02-08T18:13:00.000+05:302012-02-08T18:13:45.913+05:30जन्म से अस्पृश्य, कर्म से वन्दनीय हैं कबीर.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-Lr48kdMBYl4/TzJtuKkYNSI/AAAAAAAACYM/6DBbEsOmGcQ/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="150" width="150" src="http://1.bp.blogspot.com/-Lr48kdMBYl4/TzJtuKkYNSI/AAAAAAAACYM/6DBbEsOmGcQ/s320/1.jpg" /></a></div><br />
आज अचानक 'अहा ! जिंदगी' मासिक पत्रिका के फरवरी अंक में कबीर के बारे में पढकर इनके बारे में पढ़ी बहुत सारी पुरानी यादें ताजा हो गयी. हिन्दी साहित्य में मैं कबीर से बचपन से ही प्रभावित रहा हूँ, उनकी रचनाएं तत्कालीन समाज की जड़ता पर तो प्रहार कर ही रही थी, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. पंद्रहवीं सदी में कबीर द्वारा कही गयी बातों को दुहराने की कुव्वत आज इक्कीसवीं सदी में भी बहुत कम लोगों में है. सल्तनत काल में उन्होंने हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों के पाखण्ड की जम कर धज्जियां उड़ाई, ये कोई सामान्य घटना नहीं थी. ज्ञान की राह में कभी व्यंग्य की परवाह नहीं की. कहा भी है-<br />
"हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार । <br />
श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥" <br />
<br />
कबीर ने कभी कलम और कागज़ को हाथ नहीं लगाया और न ही अपनी कही बातों को लिपिबद्ध कराया था, यही कारण है कि उनके दोहे और साखियाँ जिनके भावार्थ तो समान होते हैं, पर भाषाई असमानता प्रदर्शित करते हैं. वो इसलिए भी कि जिन्होंने भी उसे लिपिबद्ध किया, उसमें अपनी भाषा की छाप छोड़ दी. मुस्लिम परिवार में पालन-पोषण होने के बावजूद उन्होंने स्वामी रामानंद का शिष्यत्व ग्रहण किया और वैष्णव धर्मावलंबी की तरह पूजा-पाठ और तिलक धारण किया करते. <br />
एक ओर उन्होंने जमाखोरी पर यूँ प्रहार किया-<br />
"साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । <br />
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥<br />
साधु गाँठि न बाँधई, उदर समाता लेय । <br />
आगे-पीछे हरि खड़े जब भोगे तब देय ॥" <br />
<br />
तो दूसरी ओर सब्र रखने की भी सलाह दी-<br />
"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । <br />
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥"<br />
<br />
मधुर वाणी की महत्ता (जिसका मुझमें घोर आभाव है) उनके इस दोहे से स्पष्ट होती है-<br />
"कागा काको धन हरे, कोयल काको देय । <br />
मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ॥" <br />
<br />
उस जमाने में मूर्ती-पूजा का यूँ मजाक उड़ाना किसी विरले के बस की ही बात थी-<br />
"पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार । <br />
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ॥"<br />
<br />
समाज में कोई सुधार न होता देख वे हतोत्साहित भी होते थे, और उन्हें लगता था बाकि लोग तो बेफिक्र हैं, एक वे ही परेशान हो रहे हैं-<br />
"सुखिया सब संसार जो खावै और सोवे, <br />
दुखिया दास कबीर जो जागे और रोवै..."<br />
<br />
ऐसा माना जाता था कि काशी में प्राण त्यागने वाले स्वर्गवासी और मगहर में मरनेवाले नरकवासी होते थे, जिसे कबीर ने सिरे से नकारा और जान-बूझकर अपना अंतिम समय मगहर में व्यतीत किया जहाँ उनका देहावसान हुआ-<br />
"क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा। <br />
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ॥"रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-61264015151548999312011-11-30T10:23:00.000+05:302011-11-30T10:23:50.960+05:30भक्ति के नाम पर शोर से है परेशानी<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-B4etHh2v7is/TtW2w-dyXiI/AAAAAAAACS4/569ey7xEKM4/s1600/%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25AA%2B%25E0%25A4%25AD%25E0%25A5%2580%2B%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2588%25E0%25A4%2582%2B%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="276" width="400" src="http://1.bp.blogspot.com/-B4etHh2v7is/TtW2w-dyXiI/AAAAAAAACS4/569ey7xEKM4/s400/%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25AA%2B%25E0%25A4%25AD%25E0%25A5%2580%2B%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2588%25E0%25A4%2582%2B%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25A4%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0.jpg" /></a></div><br />
मेरे गाँव में सूर्य-मंदिर के कंगूरे पर काफी शक्तिशाली माइक का चोंगा लगाकर प्रतिदिन अहले सुबह चार बजे से ही गाँव के ही कुछ लोगों द्वारा हनुमान चालीसा, कबीर अमृतवाणी, गायत्री मंत्र इत्यादि बजाया जा रहा है. मैंने इसके लिए सम्बंधित लोगों से बातचीत की, पर वे मुझे यही समझाते रहे कि आपको भगवान के भजन से ऐतराज क्यों है. वास्तव में मुझे भगवान के भजन से ऐतराज नहीं है बल्कि प्रचंड ध्वनि-प्रदूषण से परेशान हूँ. रात में प्रतिदिन बारह बजे सोने की आदत है और तुरत चार बजे भोर में ही नींद खुल जाती है. इस सम्बन्ध में थाना प्रभारी (दाउदनगर)- 9431822238, एस०पी० (औरंगाबाद)- 9431822974 तथा डीजीपी (बिहार)- 9431602301 के मोबाईल नंबर पर कई दिनों से लगातार मैसेज भेज रहा हूँ, पर अब तक कोई रेस्पोंस नहीं लिया गया. प्रबुद्ध तथा सक्षम मित्रों से आग्रह है कि वे मेरी मदद करें. यह समस्या केवल मेरे लिए ही नहीं है इससे लगभग दस हजार लोग प्रभावित हैं पर बात भगवत-भजन की है, विरोध कौन करे !!!!रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-38404139010781131972011-11-19T21:00:00.000+05:302011-11-19T21:00:11.784+05:30अनुराग (मुंडन के बाद)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/-ChcxwljwYsQ/TsfLWGwypVI/AAAAAAAACSg/_5Jp2ekUza8/s1600/Anurag%2BKashyap.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="286" width="400" src="http://4.bp.blogspot.com/-ChcxwljwYsQ/TsfLWGwypVI/AAAAAAAACSg/_5Jp2ekUza8/s400/Anurag%2BKashyap.jpg" /></a></div>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-81433672714850434302011-11-17T22:36:00.000+05:302011-11-17T22:36:10.600+05:30भगवान अब शैतान बन गए हैं !!<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-9Fxzv3kq2uk/TsU-4YUKjhI/AAAAAAAACOE/vkklZIi5yaw/s1600/Magnificent%2BNews%2BNovember%2B2011.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="400" width="259" src="http://3.bp.blogspot.com/-9Fxzv3kq2uk/TsU-4YUKjhI/AAAAAAAACOE/vkklZIi5yaw/s400/Magnificent%2BNews%2BNovember%2B2011.jpg" /></a></div><br />
डॉक्टर को धरती पर भगवान का अवतार समझा जाता है| ईश्वर-प्रदत्त जीवन को बचाने का काम इन्हीं के जिम्मे है| भगवान की दुआ काम करे ना करे डॉक्टर की दवा असर दिखाती है और प्रतिदिन इनके बदौलत लाखों जीवन जीने लायक बनते हैं| पर, धरती के इस भगवान में शैतान का रूप दिखता है तो घोर निराशा होती है| ऐसी ही एक घटना का गवाह और शिकार मैं स्वयं बना| विगत 17 अक्टूबर को मेरे बेटे अनुराग कश्यप की तबियत खराब हो गयी थी, उसे काफी तेज बुखार था| पटना के प्रसिद्द शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ० उत्पल कान्त सिंह के पास परामर्श हेतु दिन के तीन बजे ही उनके यहाँ प्रचलित परम्परा के अनुसार दो सौ रूपए परामर्श फी जमा कर नंबर लगा दिया गया था| उनके अटेंडेंट के द्वारा शाम सात बजे आने को कहा गया और मैं अपने बीमार बेटे के साथ समय पर उनके क्लिनिक में पहुँच भी गया| डॉ० साहब भी समय से रोगी देखना शुरू कर चुके थे, रोगियों की संख्या काफी अधिक थी| इतनी अधिक की रात्रि के पौने बारह बजने के बावजूद भी लगभग पचास रोगी लाइन में लगे थे| इसी बीच डॉ० साहब बिना किसी को कुछ सूचित किए चुपके से अपनी गाड़ी में बैठे और अपने घर को चले गए| सभी लोग अवाक् और हताश थे और काफी आक्रोशित भी, पर लाचार थे| कुछ बच्चे तो काफी गंभीर अवस्था में थे और ऊपर से आलम यह कि अब मध्य रात्रि को किसी दूसरे डॉ० से इलाज करा पाना भी लगभग असंभव ही था| “इस डॉ० की यह सनक तो प्रतिदिन लोगों को झेलना पड़ता है”- ऐसा मैं नहीं बल्कि उन्हीं के अनुकर्मी कह रहे थे| मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ| दूसरे दिन सुबह मैंने उसका इलाज दूसरे डॉ० से कराया और अब वह बिलकुल स्वस्थ है| मैंने इस बाबत डॉ० उत्पल कान्त जी के ईमेल (utpalkant.singh@yahoo.co.in) पर लिखित विरोध दर्ज कराया तथा उन्हें उतनी ही संख्या में रोगियों का नंबर लगाने की सलाह दी, जितने को वे देख पायें, ताकि शेष रोगी दूसरे डॉ० से इलाज करा सकें| मुझे नहीं पता वे इस पर अमल करेंगे या बच्चों को अपनी सनक का शिकार बनाते रहेंगे| दूसरी घटना का जिक्र करना चाहूँगा, जिसे औरंगाबाद के श्रीकृष्णनगर मोहल्ले में रहनेवाले मनीष कुमार एवं अरुन्जय कुमार गौतम ने बताया| इसमें औरंगाबाद सदर अस्पताल में पदस्थापित डॉ० तपेश्वर प्रसाद ने तो अमानवीयता की सारी हदों को पीछे छोड़ दिया| ओबरा प्रखंड के खरांटी में ब्याही एक लडकी को ससुराल वालों ने मिट्टी तेल छिड़ककर जला दिया (लड़की पक्ष के अनुसार), लाश दो दिन तक घर में ही पड़ी रही| जब लड़की के मायके वालों ने पुलिस को सूचित किया तो लाश सदर अस्पताल में पोस्टमार्टम हेतु भेजा गया| वहाँ, लाश के पोस्टमार्टम रिपोर्ट लिखने हेतु लड़की के परिजन से डॉ० साहब ने बीस हजार रूपए माँगनी शुरू कर दी| क्या हालत होगी उस बाप की जिसकी बेटी जलाई जा चुकी है और उसका रिपोर्ट देने हेतु डॉक्टर उससे पैसे की मांग करे ! इसी तरह पीएमसीएच के प्रसूति-विभाग के वार्ड संख्या-जी में भर्ती मुजफ्फरपुर के बी०पी०अखिलेश जी की पत्नी का ऑपरेशन डॉक्टरों की लापरवाही के कारण दो-दो बार करना पड़ा| बी०पी०अखिलेश के अनुसार इस वार्ड में भर्ती सभी मरीजों को एक ही दवा दी गयी, जो सबों को रिएक्शन किया और सभी को कै-दस्त होने लगा| आनन-फानन में परिजनों द्वारा इसकी सूचना वार्ड-प्रभारी और अधीक्षक को भी दी गयी, पर किसी ने इसका कोई रेस्पोंस नहीं लिया| बाद में इसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से भी की गयी| नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष श्री शिवप्रकाश राय ने सूचना के अधिकार के तहत राज्य के मंत्रियों के इलाज पर खर्च होनेवाले रूपए का ब्योरा निकाला है| इसमें एक-एक वर्ष में कई मंत्रियों ने दस-दस लाख रूपए तक खर्च दिखाया है, जबकि कभी उनके गंभीर रूप से बीमार होने की खबर नहीं मिली| दूसरी ओर न्यूमोनिया से पीड़ित बच्चे दो सौ पचास रूपए के औक्सीजन के अभाव में प्रत्येक दिन काफी संख्या में मर रहे हैं| क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि भगवान अब शैतान बन गए हैं ?रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-9945455817241779562011-10-16T20:47:00.000+05:302011-10-16T20:47:06.339+05:30आयोग के जासूस<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-aCKvil1fEZQ/Tpr1XaX3fRI/AAAAAAAACMc/tOCHeetasnA/s1600/%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2597%2B%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587%2B%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%25B8.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="400" width="360" src="http://1.bp.blogspot.com/-aCKvil1fEZQ/Tpr1XaX3fRI/AAAAAAAACMc/tOCHeetasnA/s400/%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2597%2B%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2587%2B%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%25B8.jpg" /></a></div>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-57775149139737616592011-10-13T22:20:00.002+05:302011-10-13T22:20:37.497+05:30बिहार में सूचना का अधिकार, बिना धार का हथियार.माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने चुनाव पूर्व बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अपना प्रमुख मुद्दा बताया था| उन्होंने वादा किया था कि हम जनता की आँखों से देखेंगे और उन्हीं के कानों से सुनेंगे भी| जनता की आँखें तो तथ्यात्मक सूचनाओं के बिना मोतियाबिंद के मरीज की आँखें बन जाती हैं और कान तो सुनेंगे वही जो उन्हें सुनाया जाएगा| पारदर्शिता के क्षेत्र में काम करने के लिए अखबारों में बिहार सरकार की काफी तारीफ़ हो रही है और व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए नित नई-नई व्यवस्थाएं की जा रही है| सूचना का अधिकार क़ानून स्वतन्त्र भारत में एक क्रांतिकारी बदलाव के रूप में देखा गया था| लोकहित में इसका काफी प्रयोग किया जाने लगा, जिससे सरकारी तंत्र और भ्रष्ट अधिकारियों में खौफ पैदा हुआ| बिहार सरकार ने प्रशासनिक पारदर्शिता के क्षेत्र में विशिष्ट पहल करते हुए <a href="http://biharonline.gov.in/RTI/index.aspx">जानकारी सुविधा केन्द्र</a> की स्थापना की, जिसमें कॉल सेंटर तथा <a href="http://biharonline.gov.in/RTI/Common/Form.aspx">इंटरनेट के माध्यम से सूचना हेतु आवेदन देने की व्यवस्था</a> की गयी| देश में पहली बार जब बिहार सरकार ने आईसीटी (ICT-Information and Communications Technology) का प्रयोग करते हुए सूचना अधिकार अधिनियम को व्यापक स्तर पर प्रसारित करने एवं आम लोगों की पहुँच तक लाने का काम किया तो बिहार सरकार की इस पहल को भारत सरकार द्वारा ई-गवर्नेंस का उत्कृष्ट उदाहरण मानते हुए पुरस्कृत किया गया था| समय बीतने के साथ भ्रष्ट गठजोड़ ने इसका तोड़ खोजना शुरू किया और आज इस क़ानून को ठेंगा दिखाया जाने लगा| आज बिहार सरकार के सारे दफ्तरों में सूचना देने के बजाए सूचना छुपाने हेतु भरपूर जोर-आजमाईश हो रही है|<br />
जानकारी सुविधा केन्द्र के बारे में तो बस यही कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था संभवतः बिहार सरकार ने केवल पुरस्कार पाने के लिए ही बनाई थी| ऑनलाइन दर्ज आवेदनों के बारे में मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह कहता है कि उनका कोई रेस्पोंस नहीं लिया जाता| अगर व्यवस्था गूंगी-बहरी हो तो क़ानून में दर्ज प्रथम अपील, द्वितीय अपील बस कागज़ पर लिखे क़ानून ही रह जाते हैं, वे जमीन पर पाँव ही नहीं रखते| इतनी शानदार व्यवस्था का व्यवस्थापकों ने भ्रूण-ह्त्या कर रखी है|<br />
सूचना आयोग की लापरवाही का आलम यह है <a href="http://www.biharonline.gov.in/sic/(S(fnkykg45ow20fzbeb0254rjl))/Common/Judgappeal1.aspx">वाद संख्या ४६९६३/१०-११</a> के लोक सूचना अधिकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी, दाउदनगर है| पर, सूचना आयोग से नोटिस प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, दाउदनगर को प्रेषित की जाती है| हद तो तब, जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी एवं आवेदक दोनों द्वारा बार-बार यह बताया जाता है कि इसमें लोक सूचना अधिकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी, दाउदनगर हैं तब भी आयोग के वेबसाईट पर इसे सुधारा नहीं जाता है| इस लेख के लिखे जाने तक आयोग के आधिकारिक वेबसाईट पर इसमें सुधार नहीं किया गया है और पूरा विश्वास है कि इस लेख के छपने के बाद भी आप इसे यथावत देख सकते है|<br />
सूचना के अधिकार पर काम कर रहे बिहार के चर्चित कार्यकर्ता एवं<a href="http://www.nagrikadhikarbihar.blogspot.com/"> नागरिक अधिकार मंच</a> के अध्यक्ष श्री शिवप्रकाश राय ने जब सूचना आयोग से यह जाननी चाही कि अब तक आयोग ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा २०(१) और २०(२) अंतर्गत कितने लोक सूचना पदाधिकारियों पर अर्थ दंड लगाए, कितने पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की, कितनों से अर्थदंड की वसूली हुई और कितनों पर विभागीय कार्रवाई की गयी| तो सूचना आयोग के लोक सूचना पदाधिकारी ने इन सूचनाओं के उपलब्ध नहीं रहने की सूचना दी| क्या सूचना आयोग के पास भी अपने कार्यों के बारे में ही सूचना नहीं है ?<br />
असली बात यह है कि सूचना आयोग में द्वितीय अपील की सुनवाई के दौरान दिखावे को तो लोक सूचना पदाधिकारियों पर अधिनियम के विरुद्ध आचरण करने हेतु जुर्माना लगाया जाता है, जो समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनती हैं| पर, या तो उन पर लगाए जुर्माने को वसूलने हेतु कोई कार्रवाई नहीं होती अथवा अवैधानिक तरीके से उनका जुर्माना ही माफ कर दिया जाता है| सूचना के अधिकार अधिनियम में कहीं भी लोक सूचना अधिकारी पर लगे अर्थदंड को माफ करने का प्रावधान नहीं है| उदाहरण के तौर पर <a href="http://www.biharonline.gov.in/sic/(S(fnkykg45ow20fzbeb0254rjl))/Common/Judgappeal1.aspx">वाद संख्या ३२२८६/०९-१०</a> का उल्लेख करना मुनासिब होगा| दिनांक ०५|०४|२०११ को इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त श्री पी० एन० नारायणन ने लोक सूचना अधिकारी सह पंचायत सचिव तथा पंचायत रोजगार सेवक, ग्राम पंचायत- राजपुर (बक्सर) पर २५००० रूपए का अर्थदंड लगाया तथा दिनांक ३०|०६|२०११ तक आवेदक को सूचना दी जाने, दंड राशि जमा किए जाने तथा धारा २०(२) अंतर्गत आयोग में स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया| लेकिन अगली तिथि दिनांक ०२|०९|२०११ को मुख्य सूचना आयुक्त श्री अशोक कुमार चौधरी ने जुर्माने एवं स्पष्टीकरण की बात तो छोड़ ही दें, लोक सूचना अधिकारी को सूचना आयोग में उपस्थिति से भी छूट दे दी| ऐसे फैसले दाल में कुछ काला होने का भान कराते हैं, नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष श्री शिव प्रकाश राय तो कहते हैं कि पूरी दाल ही काली है|<br />
ऐसे भी मामले हैं जिनमें सूचना आयोग ने लोक सूचना पदाधिकारी को सूचना देने का आदेश दिया, तो वे सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय चले गए| श्री शिव प्रकाश राय द्वारा प्राप्त की गयी सूचना के अनुसार वर्ष २००८ से ०५|०८|२०११ तक ऐसे कुल १०० मामले हैं| इन मामलों में सूचना आयोग को अब तक दस लाख रूपए से अधिक की राशि वकीलों को कानूनी सलाह लेने के बदले में देना पड़ा है, लोक सूचना पदाधिकारियों द्वारा व्यय की गयी राशि का विवरण उपलब्ध नहीं है| पर यह निश्चित रूप से राज्य सूचना आयोग द्वारा व्यय की गयी राशि से कई गुनी अधिक होगी| दोनों पक्षों द्वारा व्यय की गयी राशि बिहार सरकार के राजकोष से खर्च हो रहे हैं| कितनी अजीब बात है कि बिहार सरकार के राजकोष की राशि का अपव्यय सरकार के संस्थाओं द्वारा ही परस्पर विरोध में किया जा रहा है- एक सूचना दिलाने के नाम पर दूसरा सूचना छुपाने के लिए| क्या यह प्रदेश की निरीह जनता के साथ भद्दा मजाक नहीं हैरजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-40237738249916148902011-09-01T20:21:00.000+05:302011-09-01T20:30:55.114+05:30मन रे गा .......<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-zfAWN9ZxlVc/Tl-d4pXvuII/AAAAAAAACLk/pctBt5YtEK8/s1600/%25E0%25A5%25A7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="224" width="400" src="http://3.bp.blogspot.com/-zfAWN9ZxlVc/Tl-d4pXvuII/AAAAAAAACLk/pctBt5YtEK8/s400/%25E0%25A5%25A7.jpg" /></a></div>विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा जारी जनांदोलनों के बाद एवं बेल्जियम में जन्मे और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर तथा समाज सेवी ज्याँ द्रेज के सलाह एवं प्रभाव से 25 अगस्त 2005 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) जिसे 2 अक्टूबर 2009 से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का नाम दिया गया, संसद में पारित हुआ. इसे भारत सरकार के फ्लैगशीप योजना के बतौर प्रचारित किया जाता है. योजना का उद्देश्य ग्रामीण बेरोजगार परिवारों को वर्ष में कम से कम सौ दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना है, ताकि उनकी क्रय क्षमता बढ़ सके. पहली बार इस योजना में जाति-धर्म, गरीब-अमीर अथवा स्त्री-पुरुष के आधार पर कोई विभेद नहीं किया गया है, सभी बेरोजगारों को समान रूप से रोजगार प्राप्त करने का अधिकार मिला है. पर क्या धरातल पर योजना अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रही ? मनरेगा के तहत पंचायतों में ग्रामीण संयोजकता, बाढ़ नियंत्रण, जल संरक्षण एवं संचय, सूखा निरोधन, सिंचाई नहरों की मरम्मती, भूमि विकास तथा अन्य कार्यों के लिए पैसे मांग पर उपलब्ध हैं, बस मिले पैसों का उपयोगिता प्रमाण पत्र एवं नए काम एवं उससे संभावित उत्पन्न कार्य-दिवसों का प्रस्ताव जमा करना होता है. इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2010-11 में इस योजना मद के लिए भारत सरकार ने 40,000 करोड़ रूपए का बजट रखा है.
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छः सालों के बाद आज इसकी उपलब्धियों और नाकामियों का आकलन करते हैं तो निराशा ही हाथ लगती है. यह योजना भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का आहार बन कर रह गयी है. आज पंचायत प्रतिनिधियों के कमाई का मुख्य जरीया मनरेगा ही है.
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इस योजना में व्याप्त अनियमितता का ज्वलंत प्रमाण औरंगाबाद जिले के दाउदनगर प्रखंड में तत्कालीन प्रखंड प्रमुख से योजना की प्रशासनिक स्वीकृति हेतु प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी श्री आशीष कृष्ण द्वारा घूस के रूप में बीस हजार रूपए लेते निगरानी द्वारा पकड़ा जाना है. इतना ही नहीं मनरेगा में प्रखंड स्तर पर सहायक के रूप में कार्यरत रतन कुमार भी दो हजार रूपए घूस लेते पकडे गए. साफ तौर पर जाहिर है कि जब प्रखंड प्रमुख से रूपए की वसूली हो सकती है तो आम प्रतिनिधियों की क्या बिसात. पर, मामले की तह में जाने पर पता चलता है कि पंचायत प्रतिनिधियों से पदाधिकारी वसूली इसलिए कर पाते हैं कि वे धरातल पर एक लाख रूपए का काम चार से पांच हजार रूपए में निबटा देते हैं.
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कहीं कहीं तो धरातल पर बिना एक रूपए का काम किए पैसे की निकासी कर ली गयी है. ऐसा ही एक मामला दाउदनगर प्रखंड अंतर्गत ही अरई पंचायत का है, जिसकी शिकायत ग्रामीणों द्वारा मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव तथा अन्य वरीय पदाधिकारियों तक से की गयी है. इसी गाँव के मुकेश पाण्डेय उर्फ नन्हे पाण्डेय ने बताया कि “ग्राम अरई में मेन रोड से महगु साव तक ईट सोलिग एवं नाली निर्माण (0505002002/RC/03/2009-10)” मद में मुखिया और सम्बंधित अधिकारी/कर्मचारी ने बयासी हजार नौ सौ सात रूपए बत्तीस पैसे (INR 82907.32) की निकासी बिना कोई काम कराए कर ली. भांडा फूटने पर मुखिया और पंचायत रोजगार सेवक ने थोथी दलील देनी शुरू कर दी कि इस पैसे से किसी दुसरे जगह काम करा दिया गया है, जबकि मनरेगा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि प्रस्तावित स्थल से इतर अथवा अन्य किसी कार्य में उनका उपयोग किया जाए. मनरेगा पदाधिकारियों द्वारा दी गयी सूचना और इसके आधिकारिक वेबसाईट पर दर्ज ब्योरा भी निर्लजता से पैसे के गबन की कहानी कहते हैं. सरकारी जांच जारी है (!!!).
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मनरेगा में जॉब कार्ड धारियों के खाते में भुगतान की व्यवस्था की गयी, पर भ्रष्टाचारी तो तू डाल-डाल मैं पात-पात के तर्ज पर, अपने चहेतों का (जो आर्थिक दृष्टि से संपन्न होते हैं और मजदूरी नहीं करते) जॉब कार्ड खोलवाते हैं, जाली मस्टर रौल तैयार करते हैं और उनके खाते के माध्यम से भुगतान प्राप्त करते हैं. कार्यस्थल पर परियोजना के अनुमानित लागत के साथ कार्य संख्या इत्यादि का विवरण देते हुए नियमानुसार नागरिक सूचना पट (Public Information Board) गाड़नी होती है पर इसका बिल्कुल ही पालन नहीं किया जाता. काम शुरु करने से पहले Public Information Board (मनरेगा के नियमानुसार) गाड़ना जरुरी है, जिससे स्थानीय नागरिक हो रहे कार्य के बारे में जान सकें तथा अगर कोई खामी बरती जा रही हो तो वे समझ सकें । एक तरह से Board गाड़ देने से सोशल ऑडिट सवयंमेव होते रहता है । लोग बोर्ड देखते हैं फिर कार्य की गुणवत्ता. मनरेगा एक ऐसी योजना है जिसमें पब्लिक को सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) का अधिकार है, पर जानकारी एवं जागरूकता के अभाव के कारण लोग अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते.
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ऐसा भी नहीं, कि योजना में बरती जा रही अनियमितताओं की खबर सरकार को नहीं है. जनवरी 2007 से मार्च 2011 तक ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार को केवल बिहार से 105 शिकायतें मिल चुकी हैं. इनमें से कुछ शिकायत तो अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा दर्ज हैं, जो आज भी भारत सरकार तथा बिहार सरकार में मंत्री हैं. पर, इन सभी शिकायतों पर केन्द्र सरकार द्वारा बार-बार रिमाइन्डर मिलने के बावजूद राज्य सरकार द्वारा दोषियों पर कार्रवाई की बात तो दूर कोई जाँच प्रतिवेदन तक नहीं भेजा गया, जो निराशाजनक है.
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हर पंचायत में अमूमन दस से बीस लाख रुपए प्रत्येक वर्ष मनरेगा में खर्च हो रहे हैं, लेकिन वास्तव में धरातल पर बीस प्रतिशत राशि का भी व्यय नहीं हो पा रहा। चर्चा होती है कि बिहार में निवेश नहीं हुआ, फैक्ट्री नहीं लगी, मजदूरों का पलायन अन्य प्रदेशों में हो रहा है। और तो और महाराष्ट्र, गुजरात, आसाम सब जगह बिहारी मजदूर पीटे जा रहे हैं। निवेश नहीं हुआ तो नहीं हुआ, मनरेगा को तो ईमानदारी से कार्यान्वित करा दीजिए। जो काम बिहार सरकार के हाथ में है उसका कार्यान्वयन तो सही तरीके से हो जाए। मनरेगा को ईमानदारी से धरातल पर उतार दिया जाए तो बड़े स्तर पर मजदूरों को अपने घर में काम मिल जाएगा साथ ही आधारभूत संरचनाओं का भी विकास होगा और मजदूरों के पलायन को रोकना संभव हो सकेगा।<br />
रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-57892284672802544992011-07-21T14:02:00.001+05:302011-07-21T14:02:05.545+05:30नरेगा से सम्ब/न्धित शिकायत दर्ज करायेंदेशभर में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्ये सरकारों की सहायता से महात्माे गांधी राष्ट्री य ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का क्रियान्व यन किया जा रहा है। यह योजना बीपीएल परिवारों के बेरोजगार लोगों को उनके घर से 5 किलोमीटर के दायरे में 100 दिन के काम की गारंटी देती है।<br />
<br />
यदि किसी व्यदक्ति को, जिसने मनरेगा अधिनियम 2005 के तहत काम के लिए आवेदन किया हो और अब तक उसे कोई काम नहीं मिला हो या उसे काम के बदले नियमित भत्ता नहीं मिलता हो तो ऐसे मामलों की शिकायत अपने राज्य के सम्बयन्धित अधिकारी को ऑनलाइन रूप दर्ज करवा सकते हैं।<br />
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मनरेगा शिकायत कब दर्ज कराएँ<br />
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आप अपनी शिकायत इन परिस्थितियों में दर्ज करवा सकते हैं-<br />
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पंजीकरण/ जॉब कार्ड के मामले में<br />
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•यदि ग्राम पंचायत जॉब कार्ड के लिए पंजीकरण नहीं कर रही हो,<br />
•यदि ग्राम पंचायत जॉब कार्ड जारी नहीं कर रही हो,<br />
•यदि जॉब कार्ड मजदूरों को नहीं दिया जा रहा हो।<br />
भुगतान के मामले में<br />
<br />
•भुगतान में देरी की जा रही हो,<br />
•आंशिक भुगतान किया जा रहा हो,<br />
•कोई भुगतान नहीं किया जा रहा हो,<br />
•अनुपयुक्तन तरीकों का इस्तेहमाल किया जाता हो।<br />
मापन के मामले में<br />
<br />
•समय पर मापन न किया जाता हो,<br />
•अनुपयुक्तप रूप से माप किया जाता हो,<br />
•मापन के लिए इंजीनियर नहीं आते हों,<br />
•माप उपकरण मौजूद नहीं हों।<br />
काम की माँग के मामले में<br />
<br />
•माँग का पंजीकरण नहीं किया रहा हो,<br />
•तारीख पड़ी रसीद जारी नहीं की जा रही हो।<br />
काम का आवंटन<br />
<br />
•काम उपलब्धल नहीं हों,<br />
•5 किलोमीटर के दायरे में काम आवंटित नहीं किया जाता हो,<br />
•5 किलोमीटर से अधिक दूरी पर कार्यस्थील के लिए टीए/डीए नहीं दिया जाता हो,<br />
•समय पर काम आवंटित नहीं किया जाता हो।<br />
कार्य प्रबंधन के मामले में<br />
<br />
•कार्य सृजित नहीं किया जाता हो,<br />
•कार्य के लिए स्वा स्य्हो सुविधाएँ मौजूद न हों,<br />
•अर्द्धकुशल/ कुशल को वेतन का भुगतान नहीं किया जाता हो।<br />
बेरोजगारी भत्ताो के मामले में<br />
<br />
•बेरोजगारी भत्तेि का भुगतान नहीं किया जाता हो,,<br />
•आवेदन स्वीकार नहीं किया जाता हो।<br />
अनुदान के मामले में<br />
<br />
•अनुदान उपलब्धस नहीं हो,<br />
•अनुदान का हस्तां तरण नहीं होता हो,<br />
•आंशिक अनुदान हों,<br />
•वेतन के हस्तां तरण के लिए बैंक द्वारा शुल्क वसूल की जाती हो।<br />
सामग्री के मामले में<br />
<br />
•सामग्री उपलब्धा नहीं हो,<br />
•मूल्यर में बढ़ोतरी हो गई हो,<br />
•सामग्री खराब गुणवत्ताा वाली हो।<br />
शिकायत कौन दायर करा सकता है<br />
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•कामगार<br />
•नागरिक<br />
•एनजीओ<br />
•मीडिया<br />
•गणमान्य व्यक्ति (वीआईपी)<br />
शिकायत को जमा करने की प्रक्रिया<br />
<br />
नरेगा से सम्बान्धित शिकायत ऑनलाइन दर्ज कराने के लिए निम्ना प्रक्रिया अपनाएँ:<br />
<br />
चरण 1: नरेगा से सम्ब न्धित अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए <a href="http://nrega.nic.in/statepage.asp?check=pgr">यहाँ क्लिक करें।</a><br />
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चरण 2: अपने राज्यa के नाम पर क्लिक करें।<br />
<br />
<br />
चरण 3: एक आवेदन पत्र दिखाई देगा।<br />
<br />
चरण 4: सबसे पहले अपना पहचान पत्र चुनें, चाहे आप कामगार हों या नागरिक या एनजीओ या मीडिया या वीआईपी।<br />
<br />
<br />
चरण 5: नरेगा में अनियमितता सम्बेन्धीत सूचना आपको जहाँ से मिली हो, उसका स्रोत बताएँ।<br />
<br />
चरण 6: दिये गये बॉक्सअ में जरूरी सूचना भरें और 'शिकायत जमा करें' बटन पर क्लिक करें।<br />
<br />
दर्ज शिकायत की स्थिति पता करना<br />
<br />
•अपनी शिकायत दर्ज कराने के बाद उसकी स्थिति की जानकारी ऑनलाइन रूप से पता कर सकते हैं कि उसका निपटारा हुआ या नहीं।<br />
•नरेगा से सम्बउन्धित शिकायत की स्थिति पता करने के लिए <a href="http://164.100.12.7/netnrega/citizen_html/compdetail.aspx">यहाँ क्लिक करें।</a>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-71220143445911356662011-05-29T22:10:00.000+05:302011-05-29T22:10:01.931+05:30मनरेगा में बिना काम कराए हुई पैसे की निकासी<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/-rxjM94golBE/TeJ2xdT5jgI/AAAAAAAACAg/vGY0-aRm6AQ/s1600/narega.bmp" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="282" width="400" src="http://3.bp.blogspot.com/-rxjM94golBE/TeJ2xdT5jgI/AAAAAAAACAg/vGY0-aRm6AQ/s400/narega.bmp" /></a></div>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-34844472601254703592011-05-29T21:35:00.001+05:302011-05-29T21:39:45.370+05:30Righ to Service Act<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-1aKUVvvBNtQ/TeJt6KCF8gI/AAAAAAAACAY/RY6-EpFrNAU/s1600/219990_2055894241302_1362970763_3539262_1411801_o.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="288" width="400" src="http://2.bp.blogspot.com/-1aKUVvvBNtQ/TeJt6KCF8gI/AAAAAAAACAY/RY6-EpFrNAU/s400/219990_2055894241302_1362970763_3539262_1411801_o.jpg" /></a></div>रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3056621624559452667.post-31804670039914239432011-05-02T21:33:00.001+05:302011-05-02T21:33:21.783+05:30सोनिया गांधी के नाम एक बिहारी की चिट्ठीआदरणीया सोनिया गाँधी जी,<br />
सादर अभिवादन,<br />
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मैं एक जागरूक नागरिक की हैसियत से आपको यह मेल भेज रहा हूँ. दरअसल बिहार के राज्यपाल माननीय देवानंद कोंवर जी भ्रष्टाचार की सारी हदों को पार कर चुके हैं. इनसे पहले बिहार में इतने भ्रष्ट राज्यपाल आदरणीय बूटा सिंह को छोड़कर दूसरे कोई नहीं आए. बहुत दिनों बाद या यूँ कहें पहली बार बिहार को नीतीश कुमार जैसा दृढ़ इच्छाशक्तिसंपन्न, संवेदनशील और विकासोन्मुख एवं सकारात्मक विचार संपन्न मुख्यमंत्री नसीब हुआ है. उनके कार्यों से लगता है वे बिहार को आधुनिक और विकसित बनाने हेतु दिन-रात स्वप्न देखते हैं और उस स्वप्न को सत्य में बदलने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं. ऐसी परिस्थिति में माननीय राज्यपाल उच्च शिक्षा के क्षेत्र के अवसान हेतु दिनानुदिन नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने में मशगुल हैं. सबसे पहले तो वे विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति में बिना राज्य सरकार से विचार-विमर्श किए अवैध तरीके अपनाए, फिर उपकुलपति की नियुक्ति का तरीका भी वही रहा. विश्वविद्यालयों के कुलपति को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु चर्चित होना चाहिए था, पर, दुर्भाग्य से जयप्रकाश विश्वविद्यालय के कुलपति श्री दिनेश प्रसाद सिंह बिहार की प्रसिद्द गायिका देवी के साथ छेड़छाड़ हेतु चर्चित हुए. हद तो तब हो गयी जब राज्य सरकार के पुरजोर आग्रह के बावजूद राज्यपाल ने उन्हें कुलपति जैसे सम्मानित पद से नहीं हटाया. मेरे पास प्रमाण तो नहीं हैं पर कहनेवालों की मानें तो कुलपति की नियुक्ति में राज्यपाल द्वारा पचास लाख से एक करोड़ रूपए तक वसूले गए हैं, उपकुलपति हेतु पन्द्रह लाख से पचीस लाख रूपए, यहाँ तक कि कालेजों के प्राचार्य की नियुक्ति में कुलपतियों द्वारा दस से लेकर पैंतीस लाख रूपए तक वसूले गए जिसमें निर्विवाद रूप से महामहिम की भी हिस्सेदारी रहती थी. अन्ना हजारे को प्रेषित पत्रोत्तर में आपने भ्रष्टाचार के विरुद्ध हर आन्दोलन को सहयोग एवं समर्थन देने का आश्वासन दिया है जो काबिलेतारीफ है. मुझे भ्रष्टाचार के विरुद्ध आपकी तत्परता को देखते हुए पूरी उम्मीद है कि मेरे मेल पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए वर्तमान राज्यपाल को हटाकर किसी स्वच्छ छवि को आसीन करेंगी.<br />
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आपका विश्वासी-<br />
रजनीश कुमार,<br />
ग्राम पोस्ट - अरई,<br />
थाना - दाउदनगर,<br />
जिला - औरंगाबाद (बिहार),<br />
पिन - ८२४१४३रजनीशhttp://www.blogger.com/profile/05366975649302174502noreply@blogger.com3