मंगलवार, 24 नवंबर 2009
भूखी लाश की आवाज़
चुनने के बाद न जाने किस खता पर
वो इस कदर नाराज हुएं
की हमारी भूख भरी चीखें
उनके कानों में बे-असर ,बे-आवाज़ हुएं।
आज एक बेबस चल बसा
एक गरीब खामोश हुआ
आज उन्होंने संसद नही चलने दी
क्योंकि उन्हें इसका अफ़सोस हुआ।
हम ता-उम्र नंगे खड़े रहे उनके दर पर
पर वो हमारी बदहाली से आज जाने जायेंगे
मैं भूखा मरा लेकिन मेरी लाश
पर कल कई कमाने आयेंगे।
ये जीवन फाकों में गुजरा
फाकों में ही अस्त हुआ
पर मैं खुश हूँ की मेरे मरने से
कईओं की रोजी-रोटी का बन्दों-बस्त हुआ।
हालांकि अफ़सोस यह है की निवाले हमारे
अब भी सेहत -मंदों की तिजोरियों में बंद है
गरीब कल भी कल की रोटी के लिए फिक्र-मंद था
आज भी कल की रोटी के लिए फिक्र-मंद है।
-अभिनव शंकर 'अनिकुल'
http://aneekul.blogspot.com/
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इन चेहरों में भी ज़िन्दगी है, कोई तो पढ़ो.........
जवाब देंहटाएंबहुत सही आवाज़
बहुत सही आवाज़......
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