सोमवार, 26 अप्रैल 2010

संकट में नौजवान टीवी जर्नलिस्ट





- लेखक : अतुल पाठक, 25-Apr-10
बात अक्षय की जो एक बीमारी से पीडित है। बीमारी ने उसे ऐसा जकड़ा कि इलाज में पिता की जीवन भर की पूंजी खर्च हो गई इसके बाद भी वो ठीक नही हुआ क्योंकि तब तब इस बीमारी की सही थेरेपी नही आई थी। अब जबकि बीमारी के इलाज की कारगर पद्धति आ गई है पिता के पास बेटे के इलाज के लिए पैसे नही है। यदि समय पर इलाज नही मिला तो युवक का जीवन बचाना मुश्किल होगा।
नाम अक्षय कत्यानी हटटा कटटा गबरू जवान 70 किलो वजन दिखने में स्मार्ट, लेकिन एक बीमारी ने उसे 40 किलो का हाडमांस का पुतला बना दिया । पढाई पूरी की तो टीवी जर्नलिस्ट बन गया लेकिन इस बीमारी के कारण नौकरी छोडनी पड गई और बिस्तर पकड लिया। प्रायवेट बिजनेस करने वाले पिता सुधीर कात्यानी ने बेटे के इलाज के लिए अपने जीवन भर की कमाई खपा दी। गाड़ी बंगला बेच दिया। लेकिन वो ठीक नही हुआ। अब अचानक डाक्टरों ने बताया कि इस बीमारी का कारगर इलाज आ गया है। सिर्फ दो लाख खर्च होंगे। लेकिन अब जबकि वो दाने - दाने को मोहताज हो गए हैं। बेटे के इलाज के लिए दो लाख कहां से लाएं तो क्या इकलौते जवान बेटे को यूँ ही हाथ से चले जाने दे।
मजबूर पिता क्या करे? मदद के लिए सबने हाथ खडे कर दिए हैं। बेटे को अल्सरेटिव्ह कोलाईटिस है। खून की उल्टी दस्त होते हैं। खाना खाते नही बनता। कैंसे माँ - बाप अपने जिगर के टुकडे को तिल - तिल मरते देखें। एक तो बीमारी दूसरा मां - बाप की बेबसी बेटे से देखी नही जाती वो भी ऐंसी जिंदगी से निराश होता जा रहा है। आखिर क्या करे वो कहां जाए। उसकी भी इच्छा है कि मां-बाप के सपनो को पूरा करे। अभी तो पूरी जिंदगी पडी है उसके सामने। सिर्फ दो लाख के पीछे क्या जान जली जाऐगी उसकी। फिलहाल पैसे के अभाव में इलाज रूका है। क्या इस नौजवान को हम दुनिया से विदा हो जाने दें। ऐसे समय में समाज को सामने आना होगा। इस नौजवान की मदद के लिए आईए और इसकी मदद कीजिए। रोशन कीजिए अक्षय की दुनिया को जी लेने दीजिए एक जवान को अपनी पूरी जिंदगी ।
(अतुल पाठक , संपर्क : atul21ap@gmail.com_)
यदि आप अक्षय की कोई मदद करना चाहते हैं तो इन नम्बरों पर संपर्क कर सकते हैं :
योगेश पाण्डेय - 09826591082,
सुधीर कत्यानी (अक्षय के पिता) - 09329632420,
अंकित जोशी (अक्षय के मित्र) - 09827743380,09669527866

Thanks & Regards,
Pushkar Pushp
Editor - in - Chief,
Media Mantra
http://mediakhabar.com
http://mediamantraonline.com
India's First Bilingual Media Website
09999177575.

Respected all,
I am extremely shocked to read this. Although I was unknown to him but called him today and wish for his quick betterment. God bless him.
Regards-
Rajnish Kumar
www.rajnisharai.blogspot.com

Information for making help-
Name- Sudhir Kumar Katyayani,
Account No.- 09322011002264,
Bank Name- Oriental Bank of Commerce,
Branch- Arera Colony Branch, Bhopal (M.P.),
Residential Address- M 365, Bharat Apartment (Near Water Tank),
Gautam Nagar, Bhopal (M.P.),
Mob-09329632420

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

मुख्यमंत्री बिहार श्री नीतीश कुमार जी के नाम मेरा पत्र

आदरणीय मुख्यमंत्री जी,
सादर अभिवादन,
कहा जाता है कि प्रशंसा सामने नहीं करनी चाहिए। मैं आपकी प्रशंसा नहीं कर रहा, पर आपने बिहार और बिहारवासियों का रेपुटेशन बदल दिया। हमलोग वास्तव में जंगलराज में रह रहे थे, यह पहले से ज्यादा अब पता चलता है। पहले हमलोग जंगलराज में रहने को अभ्यस्त हो गए थे, उम्मीदें खतम हो चुकी थी, संभावनाएँ दिख नहीं रही थी, हर जगह अराजकता का माहौल था। वैसी स्थिति से जब आज तुलना करते हैं, तो लगता है कि दृढ़ इच्छा शक्ति और कुशल नेतृत्व से बदलाव संभव है। महिला सशक्तीकरण की बात तो सभी करते हैं, पर इस दिशा में काम आपने किया और शानदार किया। पहले गाँव देहात में अगर कोई लड़की साईकिल पर चलती दिख जाती तो वहां के लिए यह अजूबा होता था और लोग फब्तियाँ कसते थे। पर, आज झुँड के झुँड लड़कियों को सुदूर देहातों में साईकिल की सवारी करते हुए देखा जा सकता है, इससे उनमें आत्मविश्वास का संचार हुआ है, मनोबल बढ़ा है और कुछ करने की तमन्ना जागी है। मैं उम्मीद करता हूं कि लोग लंद-फंद की बातों से ऊपर उठकर विकास को तरजीह देंगे और आपको पुनः सत्तासीन करेंगे।
विश्वासी-
रजनीश कुमार
ग्राम पोस्ट - अरई
थाना - दाऊदनगर
जिला - औरंगाबाद (बिहार), ८२४११३

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

अरुंधती राय जैसे बुद्धिजीवियों को सामाजिक रुप से हतोत्साहित करने की जरुरत है।


आउटलुक का नवीनतम अंक मेरे सामने पड़ा है। प्रसिद्ध लेखिका, तथाकथित समाज सेविका एवं शब्दों की धनी अरुंधती राय का आलेख पढ़ा। किसी रोमांचकारी उपन्यास के लहजे में लिखे गये उनके यात्रा वॄतांत में "देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को गंभीरतम खतरा" को मजाक के तौर पर बार-बार दुहराया गया है। मेरी राय में माओवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं ऐसे बुद्धिवादी। ये तथाकथित बुद्धिवादी, उत्पन्न कर रहे हैं देश के लिए गंभीरतम खतरा। किसी भी समस्या का समाधान हिंसा नहीं है, सच कहें तो, हिंसा अपने आप में सबसे बड़ी समस्या है। पर, अरूंधती राय ने इस आलेख में ऐसा जिक्र किया है जैसे ये माऒवादी ही हैं, जो सिस्टम के जुल्म से सर्वाधिक पीड़ित हैं- उनकी हत्याएं होती रही हैं, बलात्कार होता रहा है, विस्थापित होते रहे हैं, लूटे-खसोटे जाते रहे हैं। यहां तक कि उन्होने अपने विवेक से अपने इस आलेख में अनुमानित परिणामों तक का जिक्र कर दिया कि "फलां पर अगर पुलिस की नजर पड़ जाए तो उसे सीधे गोली मार दी जाएगी, और संभव है कि गोली मारे जाने से पहले उससे कई बार बलात्कार की जाए"।

हिंसक संगठनों ने अपनी हिंसा को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए विभिन्न वादों का सहारा लिया। मसलन माऒवाद, मार्क्सवाद, लेनिनवाद इत्यादि। इन तथाकथित वादियों का मुख्य काम है-
जात-पात आधारित हिंसा करना,
समाज में भय उत्पन्न कर लेवी के रुप में भयादोहन करना।
ये वर्गशत्रु और सर्वहारा की दलिल देते हैं। सबसे बड़े वर्गशत्रु तो ये नक्सली खुद हैं। प्राय: सरकारी विद्यालयों में गरीब तबके के लोगों के बच्चे ही पढ़ते हैं, पर इन दिनों सरकारी विद्यालय भवनों को नक्सली बेहिचक निशाना बना रहे हैं। ये अपने अराजक कार्यों को जायज ठहराने के लिए थोथी लॉजिक देते हैं अथवा किसी वाद का जामा।
अगर समाज को मजबूत बनाना हो तो नागरिकों में शिक्षा की ज्योत जगानी चाहिए, उन्हें जागरूक बनाना चाहिए। पर, पता नहीं ये किसे शिक्षित कर रहे हैं और कैसी जागरुकता फैला रहे हैं।
प्राय: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निर्माण कंपनियों से लेवी के रुप में भारी रकम की वसूली की जाती है, जिसका असर अंतत: निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर पड़ता है। क्या नक्सलियों का यह कदम सर्वहारा के हित में है?
यूं ही आदतन भय फैलाने हेतु अथवा हथियार लूटने के क्रम में नक्सलियों द्वारा अक्सर पुलिसकर्मियों की हत्याएं की जाती हैं। अधिकतर पुलिसकर्मी गरीब परिवारों के ही सदस्य होते हैं, जिन्हें किसी भी ऐंगल से तथाकथित वर्ग-शत्रु की परिभाषा में फिट नहीं बैठाया जा सकता।
बिहार में नक्सलियों द्वारा जो सैकड़ों जातीय नरसंहार किए गए, क्या उन्हें कहीं से भी सिद्धान्त का जामा पहनाया जा सकता है?

अरुंधती राय को अपने चन्द दिनों की पिकनिक में ही सारे तथ्यों का पता चल गया। क्या वे कभी इन नक्सलियों के बारुद से जले लोगों से मिले हैं?
उन माँऒं से मिले हैं, जिनके बेटे का अंतिम संस्कार सर और धड़ की पहचान नहीं होने के कारण अनुमान के आधार पर किया गया?
मिले हैं उन बहनों से, जिनके भाई दो जून की रोटी कमाने हेतु कड़े मेहनत के बाद सिपाही में भर्ती हुए थे, पर नक्सलियों द्वारा बिछाए लैण्ड माइन्स के विस्फोट में अपनी जान गँवा बैठे?
बूढ़े बाप को अपने बेटे के कंधे की उम्मीद थी पर, उसे अपने बेटे को ही कंधा देना पड़ा इन जुल्मियों के कारण।

प्राय: चुनावी गुणा-गणित के चलते राज्य सरकारें नक्सलियों के विरुद्ध नरम रुख रखते हैं, जिससे उनका मनोबल बढ़ते चला जा रहा है। जरूरत है इनके विरूद्ध निर्णायक कार्रवाई की। अरुंधती राय जैसे बुद्धिजीवियों को भी सामाजिक रुप से हतोत्साहित करने की जरुरत है।