शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

अच्छे को अच्छा कहना चाहिए

बिहार की पहचान थी अराजकता, चोरी, लूट, जातीय नरसंहार, रंगदारी, घोटाला इत्यादि। विधि-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी। सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग क्रूरतम कुकृत्यों में लिप्त थे। सरकार पोषित अपराधियों के भय से लोगों का जीना मुहाल हो गया था। अगर लोगों की याददाश्त सही हो, तो मैं कुछ घटनाओं का जिक्र करना चाहूँगा। सबसे पहले मानवता को शर्मसार करनेवाली एक घटना- शिल्पी गौतम हत्याकाण्ड को याद किया जाए। जिसके हाथ में राज्य के नागरिकों ने सत्ता की चाबी सौंप दी, वही किसी के इज्जत के साथ-साथ जान भी ले ले और फिर इस विभत्स मामले को अपनी रसूख की वजह से कानूनी पेचिदगियों में उलझाकर कुटिल मुस्कान भरे, उस दानव को जनता सरेआम कत्ल नहीं करती यह आश्चर्य का विषय है। सामान्य आदमी कितना सहनशील या यूँ कहें बेबस है, इसका दूसरा उदाहरण है- राज्य के तत्कालीन मुखिया के घर शादी के अवसर पर उनके सहयोगी गुण्डे पटना के विभिन्न दुकानों से गाड़ी, फर्नीचर तथा अन्य कीमती सामान जबर्दस्ती उठाकर ले गये और प्रशासन मूकदर्शक अथवा गुण्डों की सहयोगी बनी रही। हत्या, बलात्कार तथा नरसंहार की खबरें आए दिन अखबारों की सुर्खियाँ रहते थे। प्रशासन में उच्च पदों पर आसीन लोगों को हर समय बेवजह नीचा दिखाया जाता था, उन्हें उनकी औकात बतायी जाती थी।
आज नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्थिति बिल्कुल विपरीत है। नीतीश जी के कार्यों से उनकी इच्छाशक्ति झलकती है कि वे बिहार को विकसित बनाना चाहते हैं। उन्होने विधि-व्यवस्था को दुरुस्त किया है, राज्य में कानून का शासन स्थापित हुआ है। अब सड़क के मामले में हमलोग अन्य प्रदेशों से पीछे नहीं हैं। विद्यालय में पढ़ाई हो रही है, अस्पतालों में चिकित्सक के साथ दवाएँ भी उपलब्ध हैं। नीतीश जी, आप बहुत अच्छा कर रहे हैं, पर आपके ऑफीसर्स आपसे विपरीत आचरण कर रहे हैं। आपने उन्हें सम्मान दिया पर वे आपके साथ भी गद्दारी कर रहे हैं। आपके शासन में भ्रष्टाचार चरम पर है। पिछली सरकार में व्याप्त राजनीतिक गुण्डों की जगह सरकारी पदाधिकारियों ने ले ली है। वे बेफिक्र हैं, सुशासन में वे अपने को भगवान समझने लगे हैं।
बिहार में उच्च वर्ग के वोटर्स काफी संवेदनशील हैं, आपको सत्ता में लाने में उनकी काफी भूमिका भी रही है खासकर भूमिहार वर्ग का। वे आपसे सम्मान पाने की उम्मीद रखते हैं, पर इन दिनों आपके तेवर कुछ तल्ख प्रतीत होते हैं, मैं समझता हूँ अनावश्यक तल्खी चुनाव माहौल में ठीक नहीं। मैंने पिछले दिनों ऑरकुट के भूमिहार ब्राह्मण कम्यूनिटी पर एक थ्रेड पोस्ट किया था जिसमें सबसे राय माँगी थी कि (क्या आप बिहार के मुख्यमंत्री के रुप में नीतीश कुमार को दुबारा देखना पसंद करेंगे?)। 133 मंतव्यों में मात्र एक-दो ही विरोध में बोले, बाकि लोगों ने नीतीश जी को दुबारा मुख्यमंत्री बनाने की जरुरत बतायी। आज पाटलीपुत्रा कॉलनी, पटना में रहनेवाले एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्री मुक्तिनाथ शर्मा जी से बात हो रही थी। उन्होने भी यही कहा कि सब तो ठीक है, नीतीश जी की हर तरफ प्रशंसा हो रही है और उन्होने प्रशंसा करने लायक काम भी किया है पर इस प्रशंसा ने उनमें फाल्स इगो भर दिया है और यह अब सुपर इगो का रुप लेते जा रहा है, जो उनके चेहरे से भी झलकता है। मुख्यमंत्री जी, अगर सही में आप किसी जटिलता का शिकार हो रहे हैं तो उबारिए अपने आपको उससे और थोड़ा पदाधिकारियों की भी नकेल कसिए। मैं भूमिहारों की तरफदारी नहीं कर रहा, ना ही ललन सिंह अथवा अन्य उन जैसों को मैं अपना नेता मानता हूँ, मेरे आदर्श नेता तो माननीय नीतीश कुमार जी ही हैं, मैं भी चाहता हूँ कि बिहार के मुख्यमंत्री के रुप में पुनः नीतीश कुमार ही आसीन हों ताकि विकास की गति बनी रहे। हमारी संस्कारों में पूज्य समझी जानी वाली अबलाओं का चीरहरण ना हो। पर, इन सब बातों पर गौर कर माननीय मुख्यमंत्री जी को भी उच्च वर्ग की भावनाओं के प्रति बेहद संवेदनशील होना होगा।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

दूसरों के लिए लड़ने वाले शशिधर की हत्या

बेगूसराय [जागरण संवाददाता]।
जालिमों ने भ्रष्टाचार के दुश्मन और शोषित-पीड़ितों की आवाज उठाने वाले की जुबान को हमेशा के लिए खामोश कर दिया। सूचना के अधिकार को हथियार बनाकर भ्रष्ट जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों को कटघरे में खड़ा करने वाले 30 वर्षीय शशिधर मिश्र उर्फ खबरीलाल की हत्या की खबर सुनकर लोग अवाक रह गए। फुलबड़िया पंचायत दो के निवासी शशिधर मिश्र की अपराधियों ने रविवार को देर रात गोली मारकर हत्या कर दी।

भाजपा से जुड़े लोकहित संघ नामक संस्था के कर्ता-धर्ता शशिधर को अपराधियों ने उस समय गोली मारी जब वे बाजार से घर का सामान खरीदकर लौट रहे थे। कोई भी उन्हें यूं ही खबरीलाल नहीं कहता था। जब भी किसी को कोई खास जानकारी करनी हो, नियम-कानून के बारे में पढ़ना-जानना और लड़ना हो तो वह खबरीलाल उर्फ शशिधर मिश्र के यहां हाजिर हो जाता था। उनके दरवाजे पर हर किसी की सेवा बिना लाग-लपेट और नि:स्वार्थ की जाती थी।

उनकी कार्यशैली से खफा कुछ असामाजिक तत्वों ने पिछले वर्ष भी उन्हें राष्ट्रीय उच्च पथ पर मारपीट कर अधमरा छोड़ दिया था। यहां उनकी जान बची, तो उनके घर में पिस्तौल छिपाकर पुलिस के लफड़े में उन्हें फंसाने की कोशिश की गई। लेकिन नापाक मंसूबे पालने वाले चित्त हो गए। शशिधर ने रविवार को खासकर अखबारनवीसों को बताया था कि दो दिन में वे आंगनबाड़ी से संबंधित एक बड़े घपले का खुलासा करेंगे और दोषी को सजा दिलाने को उच्चस्तर तक जाएंगे। क्षेत्र के आंगनबाड़ी केन्द्रों में सेविका-सहायिका के घालमेल से हो रही अनियमितता पर सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने जानकारी मांगी थी।

लोगों का यह कयास है कि शायद इसकी भनक उन सफेदपोशों को लग गई, जो इस घालमेल से जुड़े थे और उन्हीं लोगों ने भाड़े के हत्यारों से शशिधर मिश्र की आवाज को शांत करा दिया। उन्होंने लोकहित के आधा दर्जन से ज्यादा मामलों का खुलासा किया और कई में दोषियों को सजा भी दिलवाई। इसी के चलते जहां उन्हें पसंद करने वालों की बड़ी संख्या थी, वहीं उनसे बुराई मानने वाले लोग भी थे। शशिधर मिश्र के भाई महेदर मिश्र ने हत्या में संलिप्तता के आरोप में पंचायत निवासी रंजीत मिश्र व उनके दो भाइयों सहित कुल पांच लोगों के खिलाफ फुलबड़िया थाने में शिकायत दर्ज कराई है। हत्या के विरोध में सोमवार को बाजार बंद रखा गया।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

पटना में थ्री इडियट


अगर छात्र जैसे हम पढ़ाते हैं उससे नहीं सीखते तो वे जैसे सीखेंगे हम वैसे पढ़ायेंगे। कुछ ऐसा ही जज्बा लिए अच्छी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आकर्षक नौकरियों को छोड़कर तीन युवक पटना में इंजिनीयरिंग की तैयारी में लगे छात्रों का मार्गदर्शन करने आये हैं। तीनों आई॰आई॰टी रुड़की से 2007 बैच के अभियांत्रिकी में स्नातक हैं। उनमें से एक राकेश प्रकाश से मेरी भेंट ऑरकुट पर चैट से हुई। संयोग से अगले दिन इन तीनों से मेरी लाइव भेंट भी हुई। एकाएक तो लगा कि ये थ्री इडियट सिनेमा के पर्दे से बिहार की धरती पर कैसे। मैं राकेश और मनीष का पात्र परिचय तो नहीं कर सकता पर आयुष तो बिल्कुल माधवन के किरदार में फिट बैठ रहा था। कोई व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति को समाज से ही प्राप्त करता है और उसकी भी समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारियाँ होती हैं। यही सामाजिक जिम्मेदारी का बोध इन्हें बिहार खींच लायी है, और ये अपनी मेधा का निवेश अपनी जमीं पर कर रहे हैं। और आप निवेश से आर्थिक फायदे की बात मत सोच लीजिएगा, बल्कि इन्हें बदले में चाहिए मानसिक संतुष्टि। जी हाँ, कोई ऐसा लड़का जिसमें मेधा है, पढ़ने की ललक है, आर्थिक दृष्टि से लाचार है तथा वह इंजीनियर बनना चाहता है उसके लिए इन लोगों ने मुफ्त में पढ़ाई-लिखाई के साथ रहने-खाने की भी व्यवस्था की है। है ना बेजोड़ निवेश। आप इनकी योजना को यहाँ क्लिक कर देख सकते हैं।