सोमवार, 26 नवंबर 2012

आस्था या पाखण्ड !!

मैं रजनीश कुमार ग्राम अरई में प्रस्तावित यज्ञ का विरोध करता हूँ. मुझे ये आए दिन होनेवाले भागवत कथा, गाँव-गाँव होनेवाले यज्ञ और गली-गली बननेवाले मंदिर आस्था से पोषित पाखण्ड नजर आते हैं. इनसे कहीं कोई मानवीय हित साधन होता नजर नहीं आता. अगर आपको आता हो तो मुझे बताएं. मुझे लगता है कि यज्ञ के नाम पर आए दिन अनावश्यक रूप से मोटे चंदों की उगाही होती है. आश्चर्यजनक रूप से जो अभिभावक अपने बच्चों को पैसे के अभाव में उचित शिक्षा नहीं दिला पाते, फटे गंजी पहने रहते हैं और संभवतः घर में सब्जी के अभाव में खाना खाते होंगे, वो भी अपने बजट से यज्ञ के लिए पैसे निकाल लेते हैं. कुछ लोगों ने मुझे कहा कि तुम नास्तिक हो और तुम्हारी धर्म में आस्था नहीं, तो मुझे लगता है कि ऐसा कहनेवालों को या तो आस्था और पाखण्ड में अंतर मालूम नहीं या उनमें इतनी साहस नहीं कि सही बात को स्वीकार करें. आस्था हमारी शक्ति है और पाखण्ड हमारी कमजोरी. किसी भी मान्यता को इस लिये ढोते रहना क्यूंकि हम से पहले सब कर रहे थे तो मात्र लकीर पीटना होता है. अगर आप का विश्वास है तो वो मान्यता आपकी आस्था है और अगर नहीं है तो आप एक पाखंड को निभा रहे हैं ताकि दुनिया मे आपकी जो छवि है वो अच्छी रहे. आप उच्च विद्यालय की तरफ जाते हैं तो रोड पर नाली का पानी बहते रहता है, उसका समाधान अपेक्षित है. हमारे समाज के अन्दर हमारे कुछ भाई-बन्धु ऐसे हैं जिनके देख-रेख का नैतिक दायित्व समाज का भी है, पर इस सच को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं. हमलोगों के साथ रहनेवाले नेताजी और उनके पिता श्री रामपुकार शर्मा आज मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण जानवरों से भी बदतर जिन्दगी जी रहे हैं पर समाज इस सच्चाई से मुंह मोड़ रहा है और धार्मिक पाखण्ड के अफीम के नशे में मस्त होने को आतुर है. यज्ञ तो कुणाल साहब कर रहे हैं जो महावीर मंदिर ट्रस्ट की आमदनी से महावीर आरोग्य संस्थान, महावीर वात्सल्य संस्थान और महावीर कैंसर संस्थान चला रहे हैं. सोचिए जरा, पहले कैंसर के इलाज के लिए मुम्बई जाना पड़ता था, आज इसका इलाज पटना में संभव है. उनके इस कार्य से मानव हित साधन होता है और मैं उन्हें सबसे बड़ा महात्मा मानता हूँ. मुझे पता है मेरी इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर आप इस पर बिना पूर्वाग्रह के एक बार सोचें जरुर. आगे के लिए ही सही.