शनिवार, 30 जनवरी 2010

ग्राम अरई, प्रखंड-दाऊदनगर, जिला-औरंगाबाद में इन्दिरा आवास के आवंटन में हुई गड़बड़ी की जाँच हेतु।

आदरणीय महाशय,
मैं चन्देश्वरी राजवंशी, पिता स्व॰ बुधन राजवंशी, ग्राम-अरई, प्रखंड-दाऊदनगर, जिला-औरंगाबाद (बिहार) का निवासी हूँ तथा महादलित हूँ। आपकी सरकार महादलितों के विकास हेतु प्रतिबद्ध होने का दावा भी करती है। मैं अत्यंत गरीब आदमी हूँ। मैंने सूचना के अधिकार के तहत इन्दिरा आवास से संबंधित सूचना लोक सूचना पदाधिकारी सह प्रखंड विकास पदाधिकारी, दाऊदनगर से माँगी थी। अपने पत्र संख्या 49 दिनांक 21/12/2009 के द्वारा उन्होने मुझे बताया कि ग्राम पंचायत अरई में अभी अनुसूचित जाति में प्रतिक्षा सूचि के क्रमांक 200 तक ही इन्दिरा आवास संबंधी स्वीकृति पत्र दिया गया है। लेकिन, दूसरी तरफ (1) धनवंती कुँवर, पत्नी स्व॰ गौरीशंकर पासवान, जिनकी प्रतिक्षा सूचि में क्रमांक 202 (FID 5401, Score 11 )है तथा (2) प्राणीया देवी-सुखदेव राजवंशी, पिता श्री पूरन राजवंशी, जिनका क्रमांक 222(FID 6516, Score 11 ) है को इन्दिरा आवास बनाने हेतु पैसा मिला है।  महाशय एक बड़े स्तर पर ग्राम पंचायत अरई में इन्दिरा आवास लाभुकों से दलालों द्वारा पैसा लिया गया तथा प्रतिक्षा सूचि तथा नियम कानून को धत्ता बताते हुए इन्दिरा आवास आवंटित किया गया।
अतः आपसे सादर निवेदन है कि मामले की निष्पक्ष जाँच करायें, तथा दोषियों पर समुचित कार्रवाई करें साथ ही मुझे बिना घूस की रकम दिए नियमानुसार इन्दिरा आवास आवंटित कराने में सहयोग करें।
विश्वासी-
चन्देश्वरी राजवंशी
ग्राम पोस्ट-अरई,
प्रखंड - दाऊदनगर,
जिला - औरंगाबाद (बिहार)
पिन - 824113

बुधवार, 27 जनवरी 2010

नरेगा धन पर गिद्ध दृष्टि


दुनिया जब मंदी के दौर से गुजर रही थी, उस समय भारत में नरेगा का जन्म हुआ। मजदूरों के संघर्ष ने रंग दिखाया और संप्रग सरकार ने ऎतिहासिक व क्रांतिकारी कानून बनाया। गरीब के लिए जीवनदान है नरेगा। इसके बनने के साथ-साथ इसे लागू करने के प्रावधान भी बहुत अच्छे बने। यह योजना पहले दौर में बहुत अच्छी चली, लेकिन लगातार हो रहे चुनावों ने हालात बिगाड़ दिए हैं। अब पंचायत चुनाव का दौर चल रहा है। इसमें सबकी नजर नरेगा के धन पर लगी हुई है। खर्चा करो, चुनाव जीतो और धन कमाओ। नरेगा से जहां गरीबों के लिए दो वक्त की रोटी मिलने लगी है, वहीं दलाल और भ्रष्टाचार करने वालों की भी पौ-बारह हो गई है।

आज कोई भी सरकार रोजगार गारंटी बंद नहीं कर सकती। सभी मजदूर चाहते हैं कि नरेगा ठीक से चले, उन्हें 100 रूपए पूरे मिलें तथा 100 दिनों की गारंटी में और दिनों का इजाफा हो। महंगाई के समानांतर मजदूरी भी बढ़े। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में नरेगा श्रमिकों में 90 प्रतिशत महिलाएं काम पर जाती हैं। आज समय से भुगतान नहीं हो रहा है, पूरी मजदूरी नहीं मिल पा रही है, तब भी लोग डटे हैं इस योजना को बचाने के लिए। दुर्भाग्य है कि हमारा चुनाव तंत्र पैसों से इतना जुड़ गया कि धन-बल पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है और यह धन-बल का तरीका लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है।

वैसे तो हर चुनाव में पैसे खर्च किए जाते हैं, लेकिन इस बार के चुनाव में बहुत खर्च किया जा रहा है। इस खर्चे के पीछे नरेगा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जब यह योजना नहीं थी, तब पंचायतों में इतना पैसा नहीं था। अब पंचायतों में दस गुना पैसा आ रहा है, लगभग हर पंचायत में प्रतिवर्ष एक से दो करोड़ तक आ रहा है। इसलिए जो लोग सरपंच बनने के लिए चुनाव में उतर रहे हैं, उसकी नजर 5 साल में आने वाले 10 करोड़ रूपयों पर है। यदि उसने दस प्रतिशत पर भी हाथ साफ कर लिया, तो 5 साल में एक करोड़ रूपए की कमाई होगी। जो सरपंच नरेगा के दौरान रह चुका है, वह तो इस चुनाव के दौर में अनाप-शनाप पैसे खर्च कर रहा है। कुल मिलाकर येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतना है। गांवों में जश्न मना रहे हैं, सरकार की मेहरबानी से हर गांव में अंग्रेजी शराब की दुकानें खुल चुकी हैं। गांव से दूर झुंड के झुंड बैठे नजर आते हैं। वहां पूरी रणनीति बनती है, जिसमें वोटों को खरीदा व बेचा जाता है, खरीदने वाला तो उम्मीदवार होता है और वोट बेचने वाले गांव के कुछ बिकाऊ दलाल होते हैं, इनकी इतनी चलती है कि वे अपना वोट ही नहीं, बल्कि पूरे मोहल्ले के, पूरी गुवाड़ी के वोटों को बेच देते हैं। उम्मीदवार पैसों से वोटों का सौदा करता है, मोलभाव हजारों रूपए से चालू होता है, लाखों में टेंडर छूटता है। प्रचार के दौरान दारू , मीट, चाय, समोसा-कचौरी आदि लगातार चलते हैं।

आज नरेगा कार्य क्षेत्र में महिलाएं ही ज्यादा दिखती हैं, लगभग 90 प्रतिशत, पुरूष तो बहुत कम होते हैं। पंचायतराज चुनाव में सरकार ने 50 प्रतिशत आरक्षण कर दिया है, लेकिन निर्णय करने की स्थिति आज भी महिलाओं के हाथ में नहीं है, कुछ अपवाद छोड़ दें तो ज्यादातर महिलाएं तो चुनाव में किसको वोट देना है, यह भी तय नहीं कर पाती हैं। यह काम भी पुरूष ही करते हैं। इस पूरी सौदेबाजी में महिलाओं की कोई भूमिका नहीं होती। उनसे वोट खरीदने की बात उम्मीदवार नहीं करते, उनका सामना भी नहीं करना चाहते, क्योंकि उनकी मांग बिलकुल साफ-सुथरी है। उनका नरेगा का भुगतान महीनों से बाकी है, पूरे काम करने पर भी पूरा भुगतान नहीं मिलता है, पंचायत में आवेदन भरवाने के लिए खूब चक्कर लगाने पड़ते हैं, तब भी आवेदन नहीं भरते हैं और जॉब कार्ड बनवाने के पैसे मांगते हैं। महिलाएं बोलती हैं, मजदूरी कम है और बढ़ाओ क्योंकि महंगाई बढ़ रही है। हैंडपंप खराब है, राशन की दुकान में गेहूं की आपूर्ति नहीं हो रही है।

अगर आपूर्ति हो भी रही है, तो वितरण नहीं हो रहा है। महिलाएं समस्याएं गिनाने लगती हैं, जिनका संतोषप्रद जवाब उम्मीदवारों के पास नहीं होता है। ऎसे में उम्मीदवार महिलाओं के पुरूष रिश्तेदारों से ही बात कर रहे हैं, वो भी गांव से दूर ले जाकर। महिलाएं तो यहां तक कह रही हैं कि इस चुनाव ने दारू नहीं पीने वालों को भी पीना सीखा दिया गया है। आखिरी दौर में वोटों को थोक में खरीदा जाता है, कुछ प्रमुख लोगों को बड़ी राशि दी जाती है, इससे भी बात बनती नजर नहीं आती है, तो घर-घर जाकर हर परिवार में पैसे बांटने का काम भी होता है, हर घर में गुड़ बांटना तो साधारण बात है। जरा सोचिए, यह कैसा लोकतंत्र है, जहां लोकतंत्र की जगह नोटतंत्र जलवे दिखा रहा है। ऎसा चुनाव किस काम व मतलब का है, जिसकी शुरूआत ही भ्रष्टाचार से होती है। सभी बेईमान नहीं हैं। 50 प्रतिशत महिलाएं तो इस तंत्र से बिलकुल अलग हैं, लेकिन उनकी चलने नहीं दी जाती है। आज महिला उम्मीदवार का प्रचार भी पुरूष ही कर रहे हैं और वह जीत गई, तो भी काम पुरूष ही करते हैं या बेटा काम संभालेगा या पति, महिला की तो केवल आड़ ली जाती है। लोगों की कमजोरी का पूरा-पूरा फायदा उठाया जाता है, बच्चों की कसम दिलाते हैं। महिला उस कसम से डर जाती है कि पता नहीं, कुछ गलत कर दिया तो कोई अनहोनी न हो जाए।

इन्हीं तौर-तरीकों से जीतने वाले उम्मीदवार नरेगा में भ्रष्टाचार कर धन कमाएंगे। फर्जी बिल लगेंगे, फर्जी कंपनियां बनेंगी, फर्जी सामान सप्लाई दिखाएंगे, काम ढंग के नहीं होंगे, फर्जी हाजिरियां भरी जाएंगी, बोलने वालों को पांच साल तक धमकाया जाएगा। ये लोग सामाजिक अंकेक्षण करवाने का विरोध भी करेंगे। खुद भी खाएंगे और इस तंत्र में ऊपर भी खिलाएंगे, ताकि ऊपर का तंत्र भी इनको बचाने का काम करे। आज नरेगा के सच्चे स्वरूप को बचाना जरू री है और लोकतंत्र को भी।

नोट-बिहार के पाठक सरपंच के जगह मुखिया पढेंगे।

अरूणा रॉय
लेखिका प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं
सहयोग : शंकर सिंह

रविवार, 17 जनवरी 2010

संभल के रहिए अभियान जारी है ।

सबसे पहले हमने दिनांक 24/09/2008 को आर टी आई के तहत अपने गाँव अरई (थाना-दाऊदनगर, जिला-औरंगाबाद) में नरेगा के तहत पूर्ण हो चुके तथा चल रहे कार्यों की परियोजना लागत एवं मजदूरों की जानकारी सहित पूरी सूचना तत्कालीन प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी श्री आशीष कृष्ण को प्रेषित आरटीआई आवेदन में माँगा था । उक्त पदाधिकारी द्वारा समय पर सूचना नहीं देने पर मैंने अपीलीय पदाधिकारी के यहाँ प्रथम अपील दायर की, जिसकी सुनवाई के बाद मुझे माँगी गयी सूचना उपलब्ध करायी गयी । सूचना देखकर दंग रह गया, बहुत बड़े स्तर पर घोटाला प्रकाश में आया । कुछ काम तो ऐसे दिखाए गए जो वास्तव में किए ही नहीं गए, जैसे योजना संख्या 08/2006-07 । इस कार्य हेतु 99500 रुपये व्यय हुआ दिखाया गया, जो अचंभित करनेवाला है । धरातल पर एक रुपये का कार्य नहीं हुआ और इतने रुपए की निकासी कर ली गयी । मैंने इस संबंध में संबंधित पदाधिकारी से शिकायत भी की पर कुछ असर नहीं दिखा । हाँ, उक्त कार्यक्रम पदाधिकारी प्रखंड प्रमुख से योजना स्वीकृति हेतु घूस लेते निगरानी विभाग द्वारा गिरफ्तार किए गए तथा अपने पद से भी बर्खास्त कर दिए गए ।
पुनः मैंने मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत् अरई तथा मुसेपुर खैरा के बीच बननेवाले पुल को ठीकेदार द्वारा अन्यत्र बना देने पर ग्रामीण कार्य विभाग-2 के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता श्री श्रीकांत प्रसाद से उस पुल से संबंधित सूचना माँगी थी । उक्त महाशय द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर मैंने विभागीय सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत दर्ज करायी पर दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई । अलबत्ता जिम्मेवार कार्यपालक अभियंता श्री श्रीकान्त प्रसाद निगरानी विभाग द्वारा एक ठेकेदार से घूस लेते पकड़े गए तथा जेल की हवा खानी पड़ी ।
पुनः मैंने मध्य बिहार ग्रामीण बैंक, शाखा अरई में व्याप्त अराजकता एवं घूसखोरी से खिन्न होकर संबंधित लोक सूचना पदाधिकारी से केसीसी आवेदकों की लंबित सूची माँगी थी, जिसके उपरांत प्रबंधक द्वारा बहुत सारे आवेदकों से बिना घूस लिए उनका ऋण स्वीकृत किया गया तथा हम पर दाऊदनगर थाने में पैसा छिनने का झूठा मुकदमा (दाऊदनगर थाना काण्ड संख्या 217/2009) दर्ज करा दिया गया तथा प्रथम अपीलीय पदाधिकारी द्वारा मेरे आवेदन को अस्वीकृत कर दिया गया ।
इन सब से कुछ हो न हो एक बात तो अवश्य हुआ है कि ग्राम पंचायत अरई में कोई भी पदाधिकारी गलत कार्य करने से पहले सौ बार सोचने लगे हैं । और जो गलत करेंगे मैं उन्हें छोड़नेवाला भी नहीं हूँ चाहे वे कोई भी हों । अगर लोग सारी घटनाओं पर पैनी निगाह रखें तो महसूस करेंगे कि ग्राम पंचायत अरई के विकास राशि का दुरुपयोग करनेवाले पदाधिकारी एक-एक कर जेल यात्रा कर रहे हैं, बाकि लोग भी करेंगे और यह सब संयोगमात्र नहीं बल्कि प्रायोजित है ।
 
Some related links-
http://www.groundreportindia.com/2009/11/getting-fake-fir-instead-of-information.html
http://www.groundreportindia.com/2009/11/report-on-rti-seminar-patna-bihar.html
http://www.rajnisharai.blogspot.com/
 
Rajnish Kumar.

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

ग्राम अरई तथा ग्राम बुलाकी बिगहा को जोड़नेवाली सड़क के पक्कीकरण के संबंध में ।

सेवा में,
           प्रधान सचिव,
          ग्रामीण कार्य विभाग,
          बिहार, पटना ।
         --------------------------
          जिला पदाधिकारी,
          औरंगाबाद (बिहार) ।
 
विषय- ग्राम अरई तथा ग्राम बुलाकी बिगहा को जोड़नेवाली सड़क के पक्कीकरण के संबंध में ।
 
महोदय,
उपर्युक्त विषयक मुख्यमंत्री (बिहार) को समर्पित मेरा आवेदन, मुख्यमंत्री सचिवालय संदर्भ संख्या 1212891269 द्वारा पथ निर्माण विभाग को भेजा गया । पुनः उपसचिव, पथ निर्माण विभाग ने इस पत्र को पत्र संख्या- ज॰शि॰को॰-01-490/08 ज़ापांक 171 दिनांक 06/01/2009 द्वारा आपके कार्यालय को प्रेषित किया, जिसकी प्रतिलिपि मेरे पास भी भेजी गयी है ।
उक्त संबंध में मेरा आप सभी से सादर निवेदन है कि इस परियोजना को स्वीकृत कर तथा इसके लिए राशि उपलब्ध कराकर, सड़क का निर्माण कराया जाए । इसके लिए मैं आप सभी का आभारी रहूँगा ।
 
विश्वासी-
श्रीकान्त शर्मा
अध्यक्ष, जिला किसान सभा (जद-यू), औरंगाबाद
ग्राम पोस्ट - अरई, प्रखण्ड- दाऊदनगर
जिला- औरंगाबाद (बिहार), पिन-८२४११३


The INTERNET now has a personality. YOURS! See your Yahoo! Homepage.

सोमवार, 4 जनवरी 2010

मुख्यमंत्री जी को नरेगा के सफल कार्यान्वयन हेतु सुझाव

आदरणीय मुख्यमंत्री जी,
           सादर अभिवादन,
अगर बिहार से मजदूरों के पलायन को रोकना है तो नरेगा के तहत रोजगार योजनाओं के सफल संचालन के लिए प्रतिबद्ध होना होगा । मजदूरों के लिए इतनी महत्वपूर्ण योजना शायद पहले कभी नहीं आई । इस योजना के सफल संचालन में सबसे बड़ी बाधा हमारे द्वारा चुने गये मुखिया एवं अन्य पंचायत प्रतिनिधि ही हैं और शायद मुख्य वजह सरकार से भय का अभाव है । योजनाएँ कागजों पर चलायी जाती हैं, जाली जॉब कार्ड पर मजदूरी का भुगतान लिया जाता है, गलत मस्टर रॉल सुपुर्द किया जाता है, और हर साल प्रत्येक पंचायत में ८-१० लाख रुपए का घोटाला किया जाता है । आप जन जागरण अभियान अरररिया के द्वारा किए गए सोशल ऑडिट की अगर जानकारी लें, तो वास्तविकता का पता चल जाएगा । मैं आशीष रंजन और कामायनी को व्यक्तिगत रुप से जानता हूँ और उनके पास नरेगा के सोशल ऑडिट के लिए एक व्यापक योजना है । अगर आप सही में नरेगा का सफल कार्यान्वयन चाहते हैं तो इनके द्वरा आयोजित सोशल ऑडिट की तरह ही प्रत्येक पंचायत में सोशल ऑडिट का आयोजन करा सकते हैं, और उसमें प्राप्त शिकायतों पर दण्डात्मक कार्रवाई की भी जरुरत है, ताकि भविष्य में कोई इस योजना को लूट योजना बनाने की हिमाकत ना करे । एक तरफ बिहारी मजदूर दूसरे राज्यों में मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक शोषण के शिकार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ हमारे द्वारा ही चुने गए पंचायत प्रतिनिधि तथा संबद्ध पदाधिकारी मिलकर नरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना की ऐसी की तैसी कर रहे हैं । मैं आशीष एवं कामायनी के हिम्मत एवं पहल की दाद देता हूँ ।
विश्वासी-
रजनीश कुमार
www.rajnisharai.blogspot.com
 
जमुआ पंचायत में संपन्न सोशल ऑडिट में उभरे तथ्य-

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6004372.html