मंगलवार, 6 जनवरी 2009

राष्ट्रीय सुरक्षा का दायित्व युवाऒं पर है ।

क्या केवल सीमाऒं की सुरक्षा को ही राष्ट्रीय सुरक्षा कहा जायेगा ? क्याराष्ट्रीय सुरक्षा का दायित्व केवल हमारी सेनाऒं का ही है ? यदि हम इनदोनों प्रश्नों पर गहनता और गंभीरता से विचार करें तो पायेंगे कि मात्रसीमाऒं की सुरक्षा ही राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं है, वरन् देश में उपस्थितसमस्त ऐसी वस्तुऒं की सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्तर्गत मानाजाएगा, जो राष्ट्र के किसी भी पहलू से किसी भी स्तर से जुड़ी हो। देशमें निवास करनेवाला प्रत्येक नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उत्तरदायीहै। खेतों में काम करनेवाला किसान, उद्योगों में काम करनेवाला श्रमिक,शासकीय और अशासकीय कार्यालयों में काम करनेवाला क्लर्क, सभी अपने-अपनेस्थान पर सैनिक हैं । सीमा पर तैनात सैनिकों से अधिक उत्तरदायित्व देशके अन्दर काम करनेवाले इन लोगों का है । बहुत बड़ी सीमा तक राष्ट्रीयसुरक्षा का आधार- नागरिकों की शिक्षा विभिन्न बातों का उनका ज़ान, उनकाचरित्र, उनकी अनुशासन की भावना और सुरक्षा के कार्यों में कुशलता से भागलेने की उनकी योग्यता है । इन लोगों के चरित्र से ही देश का भाग्य जुड़ाहोता है ।भारत बहुजातीय एवं बहुधार्मिक लोगों की गौरवमयी स्थली है, लेकिन आज इसीधरती पर वोटों की राजनीति के नाम पर नित्य नए विभाजन की मांगें उठ रही है। इन्हें कभी धर्म के नाम पर सुरक्षित स्थल चाहिए तो कभी अल्पसंख्यकों केवोटों के लिए संविधान में विशेष प्रावधान । आज इन्हीं जातीय एवं धार्मिकविद्वेष से उपर उठकर चिन्तन करने की आवश्यकता है ।वर्तमान में भारत में आतंकवाद एवं विघटनकारी प्रवृतियों में जिस तीव्रतासे वृद्धि हुयी है, उस पर प्रशासन भी लगाम लगाने में असफल रहा है । अतः,प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह आतंकवादियों से मुकाबला करे ।आज हमारे चारों ऒर कालाबाजारी, तस्करी, चोर-बाजारी, रिश्वत, भ्रष्टाचारआदि का बोलबाला है । हमें अपनी आँखें खोलकर इन्हें मिटाना होगा तभीराष्ट्र सुरक्षित रह सकता है ।किसी भी देश की सुरक्षा का दायित्व वहाँ के युवा वर्ग का है । वे ही कलह,द्वेष, भ्रष्टाचार, क्षेत्रीयता एवं जातीयता से मुक्त समाज की स्थापनाकर, उसमें व्याप्त आतंकवाद, हत्या, अपहरण, अनाचार, दुराचार, कालाबाजारी,घूसखोरी, हड़ताल आदि असामाजिक तत्वों को जड़ से काट सकते हैं ।हम स्वयं समझ सकते हैं कि व्यक्तिगत चरित्र के द्वारा हमारा देश किसप्रकार निरादर का पात्र बन जाता है । साधु-संतों, ऋषि-मुनियों का यह देशचरित्रहीन और गद्दारों का देश बन गया है । राष्ट्रीय चरित्र के अभाव मेंन आज हमारा देश सुरक्षित है, न समाज । यहाँ तक कि हमारे नगर और परिवार भीसुरक्षित नहीं हैं । अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि देश को सुरक्षितरखनेवाले विन्दुऒं पर हम स्वविवेक से चिन्तन और मनन करते हुए उसकेसुरक्षा के प्रति सदैव तैयार रहें । हमें अपने राष्ट्रीय चरित्र को इसस्तर तक उठाना होगा कि हमारा राष्ट्र विश्व में आदर्श रुप ग्रहण कर सकेअन्यथा इतिहास अपने को दोहराएगा और मीरजाफर एवं जयचंद की परंपरा हमारीसुरक्षा एवं स्वतंत्रता के सामने बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा देगी ।