रविवार, 3 जून 2012

अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:.

बहुत लोग हैं जो बंद कमरे में विचारधारा की बात करते रहते हैं. ब्रह्मेश्वर मुखिया नरपिशाच है, हत्यारा है और न जाने क्या-क्या. जब अदालत में २२ मामलों में से १६ मामलों में वे निर्दोष साबित हो चुके हैं, शेष ६ मामलों में जमानत पर थे, तो बाकी लोग हत्यारा कहनेवाले कौन होते हैं ! मध्य बिहार के गाँवों में नब्बे के दशक में सवर्णों का (खासकर भूमिहार जाति का और कुछ हद तक राजपूत जाति) जीना मुहाल हो गया था. मुझे बारा नरसंहार की घटना याद है, मैं उस नरसंहार के सामूहिक शव-दाह संस्कार में गया के फल्गु नदी किनारे शामिल हुआ था. तब मैं इंटर का छात्र था और मारे गए लोगों की स्थिति देखकर मैं मगध मेडिकल कॉलेज में जहां सारे लाश (संभवतः ३४) कतारबद्ध थे, वहीं बेहोश हो गया था. निश्चित रूप से उन्हें बेवजह और बेरहमी से गला रेत कर मारा गया था. एकमात्र वजह उनका भूमिहार जाति में जन्म लेना था. सेनारी की घटना का भी चश्मदीद बना, इसके अलावे इक्के-दुक्के हत्याएं तो गाँव-गाँव में हो रही थी. उस समय सरकार भी माओवादियों की ही थी, स्वाभाविक रूप से न्याय की कहीं से कोई गुंजाईश नहीं थी. कोई न्यायिक और विधिसम्मत तरीका सूझ नहीं रहा था, जिससे इस बर्बरतापूर्ण शोषण एवं अति भयपूर्ण वातावरण से मुक्ति मिले. न्यायिक प्राक्रियाओं में अखंड विश्वास रखनेवाले बुद्धिजीवी वर्ग भी बिल्कुल हताश हो चुके थे और असुरक्षा की भावना हर भूमिहार के मन में घर कर गयी थी. बेसब्री से विकल्प तलाश रहे लोगों को ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ मुखिया जी मिले. इनका व्यक्तित्व चमत्कारिक यूँ ही नहीं था- ये अतिविश्वसनीय और गंभीर स्वभाव के शान्ति-पसंद इंसान थे. मेरी इन बातों की हँसी उड़ाई जाएगी, क्योंकि सोशल साईट्स के प्रचलन के बाद घर-घर में पत्रकार बन गए हैं और बिना तथ्यों को गंभीरता से जाने हर बात पर अपनी राय व्यक्त करते हैं. उन्होंने कभी भी दलित अथवा पिछडों से बदसलूकी अथवा दुर्व्यवहार की इजाजत नहीं दी. जहां जाते वहाँ समाज के लोगों को मजदूर वर्ग से मिल-जुल कर रहने की ताकीद करते और हिदायत देते. गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्राप्त करने को उत्साहित करते. पर, वे जानते थे कि जो नक्सल के नाम पर भूमिहारों का उत्पीडन हो रहा है वह Balance of Terror से ही समाप्त हो सकता है. उन्होंने स्वयं कहीं भी किसी नरसंहार, किसी हिंसा में भाग नहीं लिया पर नक्सल के नाम पर हो रहे जुल्म का जवाब उन्हीं के तरीके से देने का आह्वान जरुर किया. आप स्वयं फर्क महसूस कर सकते हैं, आज हालात वैसे नहीं हैं. तो क्यूँ ना फख्र करें हम इन पर ? जो ज्वलंत समस्या थी, उसको इस शख्स ने चुटकी बजाते सुलझाया, यही कारण है कि इनका आदर बुद्धिजीवियों में भी भरपूर है, जो हिंसा-प्रतिहिंसा से बहुत दूर भागते हैं. मुखिया जी ने पुनः याद कराया कि -
अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु:.
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ..