शुक्रवार, 6 जून 2014

नवाबी जिंदाबाद


आजादी के सरसठ साल होने को हैं पर अभी तक आम भारतीय जनता में इतनी साहस भी पैदा नहीं हो सकी है कि वो गलत को गलत कह सके. व्यवस्था आज भी अलोकतांत्रिक और सामंती है, अदना सा लोकसेवक राजा की तरह व्यवहार करता है और जन-प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद अपने आपको परामानव समझने लगते हैं. देश की अधिसंख्य जनता मन से गुलाम है और उसे कभी अपने मालिक होने का अहसास ही नहीं होने दिया गया. अपनी कुटिलताओं के साथ सिस्टम आमलोगों का शोषण कर उन पर राज कर रही है. पायदान के टॉप पर बैठे लोग जान-बूझकर व्यवस्था को ऐसे ही बनाए रखने को संकल्पित दीखते हैं. Transparency और Accountability शब्द क्रूर मजाक है. इन सारी बातों को हमारे देश के हर संगठन चाहे वो प्रशासनिक हो, राजनीतिक हो, सांविधानिक हो और उसका स्वरूप छोटा हो या बड़ा हर जगह महसूस किया जा सकता है. ऊँची जा रही सभी सीढियों पर नवाब बैठे हैं जो अपने से बड़े नवाब की भी अनदेखी करने की हिमाकत रखते हैं.......नीचे दीन-हीन पब्लिक उनकी तरफ कातर निगाहों से देख रही है कि कब एक नवाब का सीट खाली हो और हम वहाँ जा बैठें, उसे भी बस उस नवाब के सीट पर जाने की तमन्ना है. इस नवाबी को तोड़ने की उसकी भी इच्छा नहीं. सदियों की गुलामी आज भी जेहन में है.