गुरुवार, 19 नवंबर 2009
"भूरा बाल साफ करो"
१९७४-७५ में जेपी आन्दोलन के तथाकथित नेता आज बिहार के नियामक बन गये हैं, वे आज नीति-निर्माता हैं तथा गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के नायक बताए जा रहे हैं । यह सच है कि लालू, नीतीश और पासवान ने बिहार के राजनीतिक चेहरे को बदलने की कोशिश की है, पर इसका कोई बुनियादी असर हुआ नहीं दिखता । बिहार में सवर्ण राजनीति का दौर बीत चुका है । पिछड़ी, दलित और वंचित जातियाँ अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो गयी हैं । उनका राजनीतिक सशक्तिकरण हुआ है । निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बढ़ी है ।
लालू ने शायद बदलते दौर की नजाकत को समझते हुए ही सवर्णों को गरियाना शुरु किया था और कुर्सी की अंधी दौड़ में सफल भी हुए । मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के बाद तो उन्होने जातीय उन्माद फैलानेवाले भाषणों की झड़ी लगा दी । उस दौर में "भूरा बाल साफ करो" लालू जी का हमवाक्य हो गया था । मुझे लगता है कि बहुत सारे जातीय दंगे इनके भाषणों के कारण ही हुए । कुछ जातियों के बीच इतनी कटुता भर गयी कि उनमें संवादहीनता की स्थिति आ गयी और वे अकारण एक-दूसरे को दुश्मनी के भाव से देखने लगे, कभी-कभी तो उसका असर आज भी दिखता है । ये जेपी क्रान्ति के उपज हैं ।
रामविलास पासवान का आचरण सर्वविदित है । एक वोट की खातिर देश पर लोकसभा का चुनाव थोपा और घोर आश्चर्य कि चुनाव बाद जिसके विरुद्ध वोटिंग किया उन्हीं के साथ हो लिए । इन्हें देशहित नहीं, अपने मंत्रीपद की परवाह थी। दलित राजनीति करते हैं, पर शौक पुराने महाराजाओं से भी बड़े-बड़े रखते हैं । "सामंत" एवं "सामंती प्रवृति" शब्द का बार-बार उल्लेख करते थे । विदित हो कि इन दोनों शब्दों का प्रयोग तथाकथित समाजवादी नेता कमोवेश सवर्णों को गाली देने के लिए अपनी सुविधानुसार करते रहते हैं ।
नीतीश कुमार बिहार के विकास के नाम पर सत्ता में आए | चार साल में इन्होने काफी मेहनत भी की, पर इनमें भी व्यापक दृष्टिकोण का अभाव है, इनका आचरण कतई लोकतांत्रिक नहीं है । वे दोहरे चरित्र के मालिक हैं, खुद को अच्छे छवि के रुप में पेश कर, अपने दल में चोर-उचक्कों की फौज खड़ी कर ली है । भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में असफल रहे, जिससे कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा हो गया है । अपने साथी मंत्रियों को पद तो दिया, पर अधिकार से वंचित रखा । लोकसभा चुनावों के पूर्व विकास के नाम पर जनता की भावना जबर्दस्त रुप से नीतीश के पक्ष में बनी, जिसका अपमान नीतीश कुमार ने महाबली सिंह तथा कई ऐसे ही मौकापरस्त एवं अयोग्य व्यक्तियों को देश की सर्वोच्च नीति-निर्मात्री संस्था लोकसभा में भेजकर किया ।
क्या वाकई इन नेताओं की चिन्ता राज्य के विकास को लेकर है या विकास और सामाजिक न्याय का नारा सत्ता हथियाने का एक उपक्रम मात्र है ?
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बिहार का विनाश और सामाजिक अन्याय, करते हुए सत्ता हथियाने का सरल माध्यम है |
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