सोमवार, 15 दिसंबर 2008
समाज का ऋण चुकायें
हमलोग आज जहाँ भी हैं, जो भी हैं समाज के बदौलत है। हम पर समाज का बहुत ऋण है, जिसे हम अपनी सदाशयता से कम तो कर सकते हैं पर चुका नहीं सकते। हमारा यह परम कर्तव्य बनता है कि जो भी बन पड़े, जितना भी हो सके हम हाशिये पर छूट गये भाइयों के उत्थान के लिये कुछ रचनात्मक काम करें। समाज में पिछड़े लोग चूंकि बौद्धिक रुप से भी तो काफी पिछड़े होते हैं, जिससे उन्हें अपने लिए चलायी जा रही बहुत सारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती और वे उसका उचित फायदा नहीं उठा पाते। मैं यथासंभव प्रयास करता हूं इनके बेहतरी के लिए और करुँगा, साथ ही मेरा विनम्र आग्रह है सबसे कि सबलोग महसूस करें तथा अपने आसपास जरुरतमंद लोगों को हर तरह से सक्षम बनाने का प्रयास करें।
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काश यह आग्रह हर किसी तक पहुंचे.....सामर्थ्यहीन कोई नहीं
जवाब देंहटाएंहोता,कोई पैसे से,कोई भावनाओं से,कोई दुआओं से.....
बस ख्याल होना चाहिए .
बहुत ही अच्छा लगा
काश यह आग्रह हर किसी तक पहुंचे.....सामर्थ्यहीन कोई नहीं
जवाब देंहटाएंहोता,कोई पैसे से,कोई भावनाओं से,कोई दुआओं से.....
बस ख्याल होना चाहिए .
बहुत ही अच्छा लगा
pata nahi kaise ek baar naam hi nahin aaya
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