सोमवार, 15 दिसंबर 2008

सहयोग स्वर्ग की पहली सिढ़ी है

मुझे एक कहानी याद आ रही है, जो मैंने कभी प्रतियोगिता दर्पण के संपादकीय में पढ़ी थी। एक बार एक भक्त ने भगवान से स्वर्ग और नरक दोनों दिखाने की जिद की। भक्त तो भक्त होता है, भगवान भी डरते हैं भक्त से, कहीं भक्ति ही ना छोड़ दे। बेचारे, भक्त से हारे, डर के मारे ले गए भगवान पहले नरक में अपने भक्त को। वह देखता है वहाँ कि सारे विलासिता के सामान भरे पड़े हैं, सभी के सामने खाने को नाना प्रकार के व्यंजन हैं पर उनके हाथों में बहुत बड़े-बड़े चम्मच बंधे हुए हैं जिससे वे व्यंजन सामने पड़े रहने के बावजूद सब लोग भूख से बिलबिला रहे थे। भगवान ने भक्त को अब स्वर्ग का सैर कराया, वह हैरान रह गया यह देखकर कि अरे यहाँ तो कुछ भी नहीं बदला, सारे के सारे वही संसाधन हैं, वैसे ही सबके हाथों में बड़ी-बड़ी चम्मचें बँधी हुई थी, सामने नाना प्रकार के व्यंजन रखे हुए थे। पर, यहां सब लोग खुश थे। किसी को अपनी चिंता नहीं थी,सब लोग अपने सामने बैठे लोगों को अपने हाथों से खाना खिला रहे थे। हाथ में बड़ी चम्मचों के बँधे रहने के बावजूद सबका पेट भरा था। भक्त ने भगवान का पैर पकड़ लिया-भगवन् स्वर्ग और नरक में तो उतना ही फर्क है, जितना सहयोग और असहयोग में है।

1 टिप्पणी:

  1. सच्ची बात है,सहयोग स्वर्ग की सीढ़ी है ....
    पर नज़र दौडाया जायेगा तो अधिकाँश लोग
    खुद में लिप्त ही दिखाई देते हैं.........स्वर्ग भी यहीं है,नर्क भी यहीं
    पर ....... एक अंधी दौड़ है

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