ग्राम पंचायत से लेकर लोक सभा तथा राज्य सभा तक अयोग्य नेताओं की भरमार है। ये अयोग्य नेता लोकतंत्र के दोष के प्रतिफल हैं। इन्हें वर्तमान समय के लिए सर्वाधिक उपयोगी और कारगर हथियार- आधुनिक संचार तकनीक का दुलारा इण्टरनेट के उपयोग का बिल्कुल ही ज़ान नहीं है। इनसे बात करने पर अठारहवीं शताब्दी में लौट आने का अहसास होता है। जाति-पाति, घृणा-द्वेष और विलगाव तथा तोड़-फोड़ की राजनीति के द्वारा सफल होते आ रहे राजनीतिक वीर हैं ये। अब अगर हमारे जन-प्रतिनिधियों के पास ही सूचना का अभाव रहेगा तो जनता की समस्याओं का हल कैसे निकालेंगे ये राजनीतिक वीर ?
मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। हमारे प्रखंड दाऊदनगर में भारतीय खाद्य निगम का क्रय केन्द्र खुला है, जहाँ सहकारी समितियों के माध्यम से धान-चावल की खरीद होती है। इस क्रय-केन्द्र को प्रतिदिन मात्र दो लाख रुपए भुगतान करने की क्षमता प्राप्त थी, जबकि प्रतिदिन खरीद लगभग पंद्रह लाख रुपए की हो रही थी। इससे, सहकारी समितियों का लगभग दो करोड़ रुपए का भुगतान लंबित हो गया था। भुगतान न होने से स्थानीय किसानों में भी रोष बढ़ने लगा था। जनप्रतिनिधियों को भनक मिली तो उन्होने इस मुद्दे को सुलझाने हेतु कोई सार्थक कदम तो नहीं उठाया पर स्थानीय समाचार पत्रों में अपना नाम जरूर छपवाया, सड़क जाम करने की घोषणा की तथा प्रखण्ड कार्यालय को घेरने की भी बात कही। जब यह समस्या भारतीय खाद्य निगम से जुड़ी है, तो इसके लिए बेवजह रोड जाम करना या प्रखंड कार्यालय का घेराव करना मुझे प्रासंगिक नहीं लगा। मैंने इण्टरनेट पर Food Corporation of India का Website खंगाला तथा सभी संबंधित अधिकारियों (CMD, ED East, GM PE, GM Finance & Accounts, GM Bihar etc.) का मोबाईल नंबर तथा इमेल आईडी पता किया तथा वास्तविक समस्या से अवगत कराया। एक घंटे बाद ही जोनल मैनेजर (पूर्व) श्री सुशील नागपाल जी ने समस्या के शीघ्र निराकरण का आश्वासन दिया। बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ कि एक हफ्ते के अंदर ही पीपीसी दाऊदनगर की प्रतिदिन भुगतान क्षमता को दो लाख से बढ़ाकर पचास लाख रुपए कर दिया गया। सुखद इसलिए कि समस्या का समाधान हो गया और आश्चर्य इसपर कि सरकारी विभागों का काम भी इतना त्वरित होता है।
तो आप बताइए असली नेता कौन - मैं या ………………………..?
शुक्रवार, 26 मार्च 2010
रविवार, 14 मार्च 2010
अथ श्री इन्दिरा आवास कथा
सबसे पहले तो बता दूँ कि इन्दिरा आवास के लिए निर्धारित मापदण्ड तय करते समय ही संबंधित अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि ने भयंकर गलती (जान-बूझकर) की। बीपीएल सूचि बनाते समय गरीब और अमीर के निर्धारित मापदण्ड के अनुसार सर्वे न कर मनमाने ढंग से मुखिया के व्यक्तिगत संबंध के अनुसार सूचि में स्थान दिया गया। फिर मुखिया द्वारा इन्दिरा आवास के लाभार्थियों से पाँच-पाँच हजार रुपये की वसूली की गयी और वैसे लोगों को भी लाभान्वित किया गया जिनका या तो पक्का का मकान है या पहले से इन्दिरा आवास का लाभ उठा चुके हैं। विदित हो कि इस संबंध में स्पष्ट रुप से इन्दिरा आवास के नियमावली में लिखा गया है कि जो पहले से इन्दिरा आवास ले चुके हैं या जिनका पक्का का मकान हो, उन्हें इन्दिरा आवास आवंटित नहीं किया जाएगा। मैंने इस संबंध में स्थानीय प्रखंड विकास पदाधिकारी को स्पीड पोस्ट से पत्र भेजकर बाकायदे अयोग्य लाभार्थियों की पूरी सूचि सौंपी, जाँच भी हुई, प्रखंड विकास पदाधिकारी महोदय ने स्वीकार भी किया कि यह तो घोर अनियमितता है। उन्होने उचित कार्रवाई का आश्वासन भी दिया। पर लगभग एक सप्ताह के बाद पुनः बीडीओ साहब ने मोबाईल पर फोन कर सूचित किया कि "रजनीश जी, जाने दिजिए आपको इन सब चीजों से क्या लेना देना, ग्रामीण विकास मंत्री श्री भगवान सिंह कुशवाहा हमारे पास फोन कर काफी गुस्सा रहे थे और उन्होने कहा है कि जो सूचि है उन सब को चुपचाप इन्दिरा आवास का पैसा दे दो"। आखिर मेरी शिकायत का भी हश्र वही हुआ जो सबका होता है, पर मैं अब आगे क्या करुँ इस पर गंभीरता से सोच रहा हूँ, और कुछ ना कुछ नियमानुसार सार्थक कदम उठाऊँगा। हाँ, तो अभी कथा खत्म नहीं हुई है, कुछ लोगों को मैंने पैसा देने से रोका तथा उनका शपथ-पत्र वगैरह डाक से भिजवाया, क्योंकि जो घूस की रकम नहीं दे रहे थे उनका शपथ-पत्र वगैरह स्वीकार नहीं किया जा रहा था। अब उनसे पैसा वसूल करने के लिए इन्दिरा आवास का चेक प्रखंड में ही रोक कर रखा जा रहा है। इस संबंध में पूछने पर बीडीओ साहब ने बताया कि स्टाफ की कमी है, पर जिन्होने पैसा दे दिया था उसको तो स्टाफ की कमी नहीं खली। उसका चेक तुरत भेज दिया गया। चलिए, जिनके खाते में पैसा आ गया वे फिर शिकार बने बैंक प्रबंधक के। भ्रष्टाचारियों का गठजोड़ इतना तगड़ा रहता है, जिसकी पूछिए मत। प्रबंधक महोदय सभी लाभार्थियों से अपने लिए प्रति लाभार्थी पाँच सौ रुपए वसूले तथा जिन्होने मुखिया जी को पैसा नहीं दिया था उसे सत्यापित कराने के लिए मुखिया जी के पास भेज देते थे और फिर बिना पैसा लिए मुखिया जी सत्यापन कैसे करते। जहाँ तक मेरी समझ है, खाता खोलते समय ही खाताधारी का सत्यापन करा लिया जाता है और आवेदन पर परिचयकर्ता का भी दस्तखत होता है। फिर से सत्यापन कराने की बात गले नहीं उतरती। सबसे दुखद बात है कि अत्यंत गरीब तबके के लोग भी सूद पर कर्ज ले-लेकर घूस की रकम मुखिया तथा अन्य पदाधिकारी को देते हैं और ऐसे तो हमारे सामने सब सच बयान करते हैं, लेकिन जब शिकायत करने की बात आती है तो वे तैयार नहीं होते, यहाँ तक कि उनके बदले मैं शिकायत करता हूँ तो भी वे गवाही देने से डरते हैं। फिर भी मैं एकला चलो रे की तर्ज पे चलूँगा, शायद ये एकला कारवाँ में बदल जाए।
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