

बिहार की पहचान थी अराजकता, चोरी, लूट, जातीय नरसंहार, रंगदारी, घोटाला इत्यादि। विधि-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी। सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग क्रूरतम कुकृत्यों में लिप्त थे। सरकार पोषित अपराधियों के भय से लोगों का जीना मुहाल हो गया था। अगर लोगों की याददाश्त सही हो, तो मैं कुछ घटनाओं का जिक्र करना चाहूँगा। सबसे पहले मानवता को शर्मसार करनेवाली एक घटना- शिल्पी गौतम हत्याकाण्ड को याद किया जाए। जिसके हाथ में राज्य के नागरिकों ने सत्ता की चाबी सौंप दी, वही किसी के इज्जत के साथ-साथ जान भी ले ले और फिर इस विभत्स मामले को अपनी रसूख की वजह से कानूनी पेचिदगियों में उलझाकर कुटिल मुस्कान भरे, उस दानव को जनता सरेआम कत्ल नहीं करती यह आश्चर्य का विषय है। सामान्य आदमी कितना सहनशील या यूँ कहें बेबस है, इसका दूसरा उदाहरण है- राज्य के तत्कालीन मुखिया के घर शादी के अवसर पर उनके सहयोगी गुण्डे पटना के विभिन्न दुकानों से गाड़ी, फर्नीचर तथा अन्य कीमती सामान जबर्दस्ती उठाकर ले गये और प्रशासन मूकदर्शक अथवा गुण्डों की सहयोगी बनी रही। हत्या, बलात्कार तथा नरसंहार की खबरें आए दिन अखबारों की सुर्खियाँ रहते थे। प्रशासन में उच्च पदों पर आसीन लोगों को हर समय बेवजह नीचा दिखाया जाता था, उन्हें उनकी औकात बतायी जाती थी। आज नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्थिति बिल्कुल विपरीत है। नीतीश जी के कार्यों से उनकी इच्छाशक्ति झलकती है कि वे बिहार को विकसित बनाना चाहते हैं। उन्होने विधि-व्यवस्था को दुरुस्त किया है, राज्य में कानून का शासन स्थापित हुआ है। अब सड़क के मामले में हमलोग अन्य प्रदेशों से पीछे नहीं हैं। विद्यालय में पढ़ाई हो रही है, अस्पतालों में चिकित्सक के साथ दवाएँ भी उपलब्ध हैं। नीतीश जी, आप बहुत अच्छा कर रहे हैं, पर आपके ऑफीसर्स आपसे विपरीत आचरण कर रहे हैं। आपने उन्हें सम्मान दिया पर वे आपके साथ भी गद्दारी कर रहे हैं। आपके शासन में भ्रष्टाचार चरम पर है। पिछली सरकार में व्याप्त राजनीतिक गुण्डों की जगह सरकारी पदाधिकारियों ने ले ली है। वे बेफिक्र हैं, सुशासन में वे अपने को भगवान समझने लगे हैं।
बिहार में उच्च वर्ग के वोटर्स काफी संवेदनशील हैं, आपको सत्ता में लाने में उनकी काफी भूमिका भी रही है खासकर भूमिहार वर्ग का। वे आपसे सम्मान पाने की उम्मीद रखते हैं, पर इन दिनों आपके तेवर कुछ तल्ख प्रतीत होते हैं, मैं समझता हूँ अनावश्यक तल्खी चुनाव माहौल में ठीक नहीं। मैंने पिछले दिनों ऑरकुट के भूमिहार ब्राह्मण कम्यूनिटी पर एक थ्रेड पोस्ट किया था जिसमें सबसे राय माँगी थी कि (क्या आप बिहार के मुख्यमंत्री के रुप में नीतीश कुमार को दुबारा देखना पसंद करेंगे?)। 133 मंतव्यों में मात्र एक-दो ही विरोध में बोले, बाकि लोगों ने नीतीश जी को दुबारा मुख्यमंत्री बनाने की जरुरत बतायी। आज पाटलीपुत्रा कॉलनी, पटना में रहनेवाले एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्री मुक्तिनाथ शर्मा जी से बात हो रही थी। उन्होने भी यही कहा कि सब तो ठीक है, नीतीश जी की हर तरफ प्रशंसा हो रही है और उन्होने प्रशंसा करने लायक काम भी किया है पर इस प्रशंसा ने उनमें फाल्स इगो भर दिया है और यह अब सुपर इगो का रुप लेते जा रहा है, जो उनके चेहरे से भी झलकता है। मुख्यमंत्री जी, अगर सही में आप किसी जटिलता का शिकार हो रहे हैं तो उबारिए अपने आपको उससे और थोड़ा पदाधिकारियों की भी नकेल कसिए। मैं भूमिहारों की तरफदारी नहीं कर रहा, ना ही ललन सिंह अथवा अन्य उन जैसों को मैं अपना नेता मानता हूँ, मेरे आदर्श नेता तो माननीय नीतीश कुमार जी ही हैं, मैं भी चाहता हूँ कि बिहार के मुख्यमंत्री के रुप में पुनः नीतीश कुमार ही आसीन हों ताकि विकास की गति बनी रहे। हमारी संस्कारों में पूज्य समझी जानी वाली अबलाओं का चीरहरण ना हो। पर, इन सब बातों पर गौर कर माननीय मुख्यमंत्री जी को भी उच्च वर्ग की भावनाओं के प्रति बेहद संवेदनशील होना होगा।
