पारंपरिक हिन्दू परिवार और ग्रामीण पृष्ठभूमि में पलने के कारण मन से मेरी गहरी आस्था होली, दशहरा, दीवाली, छठ, सरस्वती-पूजा जैसे त्योहारों से ही जुड़ी हुई है. पर पहली जनवरी को त्यौहार के रूप में मनाना भी परंपरा ही बन गया है. आगामी नववर्ष की पूर्व संध्या पर कई बातें जेहन में आती हैं-
सबसे पहले तो ऐसा महसूस होता है जैसे घड़ी के सूईयों की रफ़्तार तेज हो गई है, विश्वास ही नहीं होता कि बस एक महीने के बाद मैं भी चालीस साल का हो जाऊँगा, उम्र मिजाज से आगे बढ़ गई. आज भी बचपन की शरारतें आकर्षित करती हैं और कई बार तो अपने को रोक नहीं पाता पर अगले ही क्षण घंटी बजती है कि "अरे यार बचपना छोड़ो, अब तुम वयस्क भी नहीं बुजुर्ग हो रहे हो".
चलिए बचपना छोड़ कुछ गंभीर चर्चा करते हैं. वर्ष 2015 में सरकार और संस्थाओं को Accountable रखने हेतु Ranjit Kumar और Vishwajeet Kumar Chandel बधाई के पात्र हैं. रणजीत जी के PIL के कारण पूरे राज्य में फर्जी प्रमाणपत्रों पर नियुक्त शिक्षकों की जाँच चल रही है और विश्वजीत जी के तथ्य आधारित निगरानी विभाग में प्राथमिकी के आधार पर घोटाले के आरोपी जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के कुलपति को बर्खास्त किया गया. शिव प्रकाश राय जी और नागरिक अधिकार मंच बिहार के नाम तो इतनी सफलताएँ हैं कि उन्हें लिखना संभव नहीं.
मैं वर्षांत का पोस्ट लिखूं और उसमें अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की चर्चा न हो यह संभव नहीं-
कुछ अधिकारी ऐसे होते हैं जिनकी पदस्थापना उस पद को महत्वपूर्ण बना देता है. अपराध अनुसंधान विभाग में कमजोर वर्ग के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे, पर अरविंद पाण्डेय सर की पदस्थापना के बाद ऐसा कहा जाने लगा कि पुलिस मुख्यालय में कमजोर वर्ग ही सबसे मजबूत है. अभी वे बिहार में खेलों को नई ऊँचाई तक पहुँचाने के अभियान में जुटे हैं. खेलेगा बिहार, खिलेगा बिहार. फिर विकास वैभव जी ने बतौर SSP Patna अपने कार्यों से यह साबित किया कि (1) अपराधी चाहे कोई भी हो छूटेगा नहीं,
(2)किसी की अनावश्यक पैरवी नहीं सुनी जाएगी,
(3) किसी अदने व्यक्ति के एक SMS पर भी पुलिस संवेदनशीलता से कार्य करेगी:
कहीं पढ़ा था कि किसी शिक्षक ने अपने विद्यालय के टॉयलेट को साफ़ करने हेतु अपने जिले के DM से सफाई कर्मचारी नियुक्त करने की माँग की. अगले दिन विद्यालय के सामने डीएम की गाड़ी रुकी और डीएम स्वयं अपने एक हाथ में ब्रश दुसरे में हारपिक लिए उतरे, टॉयलेट साफ़ किया और चले गए. उस दिन के बाद बिना सफाई कर्मचारी के ही उस विद्यालय का टॉयलेट हमेशा साफ़ होते रहा. अभी हाल में ही गोपालगंज के एक विद्यालय में एक विधवा द्वारा मध्याह्न भोजन बनाने का जब ग्रामीणों ने विरोध किया तो स्वयं डीएम गोपालगंज श्री Rahul Kumar ने विद्यालय जाकर उस विधवा के हाथ से बना और परोसा खाना खाया. यह सामान्य घटना है, पर इससे एक अधिकारी की संवेदनशीलता और नेतृत्व-कौशल का पता चलता है. मैं पुनः कहता हूँ कि ऐसे अधिकारियों की बदौलत ही व्यवस्था पर से भरोसा नहीं टूटता.
पत्रकारिता के क्षेत्र में मैं TOI की रिपोर्टर श्रीमती Sayantanee Choudhury की संवेदनशीलता का कायल हूँ. ऐसा नहीं है कि उन्होंने कभी मेरा नाम अखबार में छाप दिया और मैंने उनका जिक्र कर दिया. अगर मुद्दा सही हो तो वे एक एक्टीविस्ट की तरह निर्णायक मोड़ तक पीछा करती हैं. उनकी यह प्रवृत्ति बनी रहे यही कामना है.
पोस्ट में राजनीति का जिक्र न हो तो मजा नहीं. मैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार दोनों का समान रूप से प्रशंसक हूँ और आलोचक भी. बिहार विधान सभा चुनावों में प्रधानमंत्री जी ने पता नहीं किन चाटुकारों के बनाए रणनीति पर अपने पद की गरिमा के विरुद्ध आचरण किया, वहीं नीतीश जी ने केवल तार्किक और संदर्भित बातें कर अपनी गरिमा को पुनःस्थापित किया. हाँ, मैं लालू जी पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा.
बहुत सारी बातें और यादें हैं, पर पाठक के धैर्य की भी कोई सीमा होती है.
अलविदा 2015.
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.
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