बुधवार, 26 दिसंबर 2012

हंगामा है क्यूँ बरपा ?

दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ पूरे देश में कैंडल मार्च और विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरे देश में न भी हो रहे हों पर दिल्ली में तो हो रहे हैं न ? अभी हाल ही में काला-धन और जन-लोकपाल के लिए भी हुआ था. केजरीवाल जी के खुलासे पर खुलासे आ रहे थे, इधर कुछ कम हुआ है. सोशल साईट्स पर तो चौबीस घंटे आन्दोलन जारी हैं, सब देशभक्त और आन्दोलन के सिपाही हैं. बेशक हैं. नहीं हैं क्या ? पर इस आन्दोलन का नेता कौन है ? इसके उद्देश्य क्या हैं ? इसका परिणाम क्या होगा ? सब कुछ हवा में है. कुछ भी तो तय नहीं. तो क्या जनता अराजक हो गई है ? वो सत्ता को खुलेआम चुनौती दे रही है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के घरों को घेर ले रही है. सम्पूर्ण जन-जीवन ठप हो जा रहा है. मीडिया इसका भरपूर सपोर्ट कर रही है, व्यवस्था में उच्चासीन लोगों को छोड़ दें तो सम्पूर्ण जनमानस का प्रत्यक्ष नहीं तो कम से कम परोक्ष समर्थन इन आन्दोलनकारियों को मिल रहा है. ये आंदोलनकारी हैं कौन ? ये हैं पढ़े-लिखे और समझदार युवा, जिनके हाथ अब कलम से अधिक कंप्यूटर पर चलते हैं और जो देश के नामी-गिरामी संस्थानों में पढ़े हैं/पढ़ रहे हैं. ध्यातव्य है कि पहले इनकी सहभागिता बहुत कम होती थी और ये आन्दोलन में रूचि न लेकर अपने अध्ययन कक्ष में ही समय बिताना सहज महसूस करते थे. इस आन्दोलन का माध्यम बन रहा है फेसबुक, VOIP, SMS. सब कुछ हाईटेक है, फेसबुक पर इवेंट क्रिएट कर लाखों को आमंत्रण भेज रहे हैं और जंतर-मंतर पर लोगों का हुजूम इकट्ठा. क्या सब कुछ अनायास हो रहा है ? कुछ तो कारण होगा. कारण है. लोगों के मन में व्यवस्था के प्रति गुस्सा है. कहीं न कहीं हर आम आदमी व्यवस्था से पीड़ित/दुखी है. छोटे-छोटे गुस्सों का इजहार है यह. अब इसे रोकना या दबाना संभव नहीं. एकमात्र इलाज व्यवस्था को पारदर्शी, संवेदनशील और जिम्मेवार बनाना ही है. और यह अब केवल आम लोगों की समस्या नहीं, ख़ास किसी न किसी दिन भयंकर मुसीबत में फंसनेवाले हैं. बेहतर है, जल्द इलाज ढूंढ लें और अपने आप को भी समयानुसार ढाल लें. यह जनसैलाब अब रुकनेवाला नहीं. कोई नेता नहीं है ना, कि आप गुप्त समझौते कर लोगे और आन्दोलन की धार कुंद कर दोगे. फेसबुक का ज़माना है भाई, लाखों-करोड़ों देशभक्त लाइन में खड़े हैं. कितने से लड़ोगे ? अब लोग सरकार प्रायोजित अखबारों के समाचार पर आश्रित नहीं हैं, वे अब फेसबुक और गूगल सर्च खंगालते हैं जिसमें देश क्या गाँव-घर की स्थिति भी जानी जा सकती है. लोग अब अफवाहों और ख़बरों का विश्लेषण करना जान चुके हैं और सबसे खुशी की बात है कि युवा-पीढी निश्चित रूप से हमारे नेताओं की तुलना में अधिक ईमानदार, संवेदनशील और जवाबदेह है. व्यवस्था में बैठे महानुभाव, आप व्यवस्था का पूरा ऑपरेशन कर उसे दुरुस्त करें नहीं तो यह असंतोष की ज्वाला आपका ऑपरेशन कर आपको दुरुस्त कर देगी.