शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

सरकार तो सबसे बड़ी संगठन होती है फिर यह ड्रामा कैसा?

सरकार तो सबसे बड़ी संगठन होती है फिर यह ड्रामा कैसा?
क्या सरकार से ज्यादा संसाधन नक्सलियों के पास हैं?
नक्सलियों के प्रति लोगों में बहुत गुस्सा है, अधिसंख्य लोगों की ख्वाहिश है कि इनके प्रति कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। पर, सरकारी तंत्र में दृढ़ इच्छा-शक्ति का बिल्कुल अभाव दिखता है, बस मीडिया में बयानबाजी की जा रही है कि आर-पार की लड़ाई की जाएगी।
अभी-अभी साधना न्यूज पर एक सज्जन जो कि घटनास्थल से होकर आए थे का कहना था कि यहाँ आपलोग कह रहे हैं कि कॉम्बिंग ऑपरेशन चल रहा है पर वास्तव में घटनास्थल पर ऐसा कुछ नहीं है- पुलिस एवं सीआरपीएफ के लोग कजरा पहाड़ी के नीचे से घूम कर आ रहे हैं और कह रहे हैं कि कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रहे हैं। वे तो यहाँ तक कह रहे थे कि क्या चार वीवीआईपी (मुख्यमंत्री, सरकार के मंत्री आदि) को नक्सलियों द्वारा अगवा कर लिया जाता तो भी इसी तरह की टाल-मटोल की नीति अपनायी जाती, शायद नहीं और तब कार्रवाई निर्णायक होती।
नेतृत्व, समन्वय, संसाधन, संचार, साहस सबका साफ अभाव दिखता है ऐसे मौकों पर।
यहाँ से आतंकवादियों की खेप को कंधार पहुँचाने का उदाहरण मिलता है|
ताज-ओबेरॉय पर हमला होता है तो हर अत्याधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल होता है और सैनिक-अर्धसैनिक बलों ने अपने प्राण की आहुति देकर भी लोगों के जान बचाए पर जब स्वयं हमारे सुरछाकर्मियों की बात आती है तो सरकार केवल आर-पार या निर्णायक लड़ाई का स्वांग रचती है।
आज जब विज़ान इतना विकसित हो गया है,हर तरह के संसाधन विकसित हो गए हैं,
सरकार के पास गैरजरुरी कार्यों के लिए भी पानी की तरह बहाने के लिए पैसे हैं तो फिर इन मध्ययुगीन टाइप आक्रांताओं से निपटने में सरकार को इतनी परेशानी क्यों हो रही है?
कोई नक्सली मोबाइल से तीन-तीन दिन तक मीडिया में दिन-दिन भर बात करता है, सीधे मुख्यमंत्री से बात करने की शर्त रखने का हिमाकत करता है और कोई उसे ट्रेस तक नहीं कर सका या ऐसा करने का साहस नहीं जुटा सका।
वे खुलेआम सरकार को धमकी देते हैं, तो जनता अपने को सुरछित कैसे महसूस करे?
प्रदेश की पूरी जनता सरकार की मजबूरी-लाचारगी को देख-समझ रही है, क्या इससे लोगों का भरोसा नहीं उठेगा सिस्टम से?
क्या लुकस टेटे की हत्या के बाद भी बातचीत का कोई औचित्य बचा है?
अभी भी मौका है, जनता की संवेदना सरकार के साथ है, सरकार बहुत शक्तिशाली होती है, उसमें प्रदेश की पूरी जनता की शक्ति निहित है। नेतृत्व इस शक्ति का अपमान न कराए,नक्सलियों को उनकी औकात बताने के लिए हर हथकंडे अपनाए जाएँ। प्रदेश की जनता इस बार निर्णायक कार्रवाई चाहती है|
जो सही समय पर सही निर्णय लेगा वही हमारा हीरो (नेता) होगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. भाई ,..आप बहुत ही अच्छे नेक कार्य में लगे है ..थोडा विरोध तो हो ही रहा होगा ...परन्तु ..यह समाज और देश हित है
    मेरा नाम बबन पाण्डेय है ...सिविल अभियंता हूँ ...आपके ब्लॉग को फोल्लो कर रहा हूँ लम्बू नाम से ...मैं पटना में रहता हूँ ..नौकरी करता हूँ ...सरकार के विरोध में नहीं लिख सकता ..
    मेरा भी एक ब्लॉग है
    http://babanpandey.blogspot.com
    मेरा बचपन शेरघाटी में गुजरा है ..धयाबाद

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई ,..आप बहुत ही अच्छे नेक कार्य में लगे है ..थोडा विरोध तो हो ही रहा होगा ...परन्तु ..यह समाज और देश हित है
    मेरा नाम बबन पाण्डेय है ...सिविल अभियंता हूँ ...आपके ब्लॉग को फोल्लो कर रहा हूँ लम्बू नाम से ...मैं पटना में रहता हूँ ..नौकरी करता हूँ ...सरकार के विरोध में नहीं लिख सकता ..
    मेरा भी एक ब्लॉग है
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    मेरा बचपन शेरघाटी में गुजरा है ..धयाबाद

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