शनिवार, 8 मई 2010

बधाई हो अनिमेष

शायर जमीर यूसुफ की पंक्ति याद आती है 'हौसला जब जवां होता है, दूर कब आसमां होता है।' इसे सच कर दिखाया है ओबरा प्रखंड के नावाडीह गांव निवासी प्रधानाध्यापक मधेश्वर प्रसाद सिंह के पुत्र अनिमेष कुमार पराशर ने। आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग किए अनिमेष को यह सफलता चौथे प्रयास में मिली है। 2009 की सिविल सेवा परीक्षा में अनिमेष को 30 वां स्थान प्राप्त हुआ है। फोन पर अनिमेष ने बताया कि वर्ष 2006 से सिविल सर्विस की परीक्षा दे रहा था। वर्ष 2008 के परीक्षा में एक अंक से सफलता दूर रहा। हमें 953 अंक मिला और 954 अंक पर उम्मीदवारों का चयन किया गया। अनिमेष ने सफलता का श्रेय माता रामजड़ी देवी, पिता, भाई, बहन, परिश्रम और भगवान के आशीर्वाद को बताया। कहा 'यह मेरा आखिरी प्रयास था जिस कारण परिणाम पर आंखें टिकी थी।' तीन प्रयासों में असफल रहने के बावजूद अनिमेष ने हार नहीं मानी और असफलता को सफलता की कुंजी बनाया। 2008 की परीक्षा में अनिमेष जब असफल रहा तो उसके पिता ने हौसला बढ़ाते हुए कहा 'क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत में, संघर्ष पथ पर जो मिला यह भी सही वह भी सही।' अनिमेष ने पिता के इस उक्ति को जीवन में आत्मसात किया जिसका परिणाम सामने है। पिता की यह पंक्ति अनिमेष को आज भी याद है। इससे पहले अनिमेष का चयन भारतीय वन सेवा में हुआ था। वन सेवा में उसे पूरे भारत में 13 वां स्थान प्राप्त हुआ था। सिविल सर्विस परीक्षा में लगे युवकों के बारे में अनिमेष ने कहा 'जो परिश्रम करते है उससे असफलता कोसों दूर भागती है।' अनिमेष ने टाउन इंटर कालेज औरंगाबाद से 1996 में मैट्रिक (72 प्रतिशत) और सिन्हा कालेज से 1998 में आईएससी (58 प्रतिशत) उत्तीर्ण किया। शहर के श्रीकृष्ण नगर स्थित अनिमेष के आवास पर सुबह से बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। डीएम कुन्दन कुमार अनिमेष की सफलता पर बोले 'औरंगाबाद प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की करेगा।' उन्होंने अनिमेष के पिता को फोन पर बधाई दी। अंत में अनिमेष की सफलता पर इकबाल की पंक्ति याद आती है 'हजारों साल नरगिस अपनी बेनुरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।'

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