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From: Rajnish Kumar <rajnisharai@gmail.com>
Date: 2009/10/19
Subject: भ्रष्टाचार को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो गयी है
To: aapkirai@gmail.com, eletter@prabhatkhabar.com
From: Rajnish Kumar <rajnisharai@gmail.com>
Date: 2009/10/19
Subject: भ्रष्टाचार को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो गयी है
To: aapkirai@gmail.com, eletter@prabhatkhabar.com
हमारे देश में अभी तक परिवार, जाति, समुदाय, धर्म तथा स्थानीयता के बन्धन बहुत शक्तिशाली हैं । अतः राजनीतिक तथा प्रशासनिक दोनों ही स्तरों पर लोक अधिकारी अपने समूह के प्रति वफादारी को राष्ट्र के प्रति वफादारी पर न्योछावर करने में असमर्थ हैं । इससे भ्रष्ट व्यवहार जैसे भाई-भतीजावाद, जातिवाद आदि उत्पन्न होते हैं । साथ ही साथ, भारत का समाज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से भी गुजर रहा है जिसमें औद्योगीकरण, आर्थिक विकास, नगरीकरण, जनसंचार, ग्लोबलाइजेशन आदि भी सम्मिलित हैं, इसमें समाज के पुराने मूल्य टूट रहे हैं और भौतिकवादी महत्वाकाँछा अधिक प्रबल हो गयी हैं । किसी भी तरीके से धन की प्राप्ति मुख्य उद्देश्य बन गया है । यहाँ लोगों को इस बात पर परखा जाता है कि उनके पास क्या है न कि इस बात पर कि वे क्या हैं ।
दुर्भाग्यवश भ्रष्टाचार ने हमारी सामाजिक आत्मा और व्यवहार में मान्यता प्राप्त कर ली है । पंक्ति से आगे निकलना या बारी के बिना लाभ प्राप्त करना या अवैध लाभ के लिए घूस देना, हम ऐसे करते हैं जैसे यह हमारा जाति स्वभाव या प्रकृति का भाग हो । हम प्रायः ऐसे व्यक्ति का सम्मान करते हैं जिसने धन या उच्च पद प्राप्त किया है । भारत में भ्रष्ट बड़ी शान से न्यायालय जाते हैं, ऐसे पोशाक पहनते हैं जैसे शादी की पार्टी में जा रहे हों, और लोगों के प्रणाम ऐसे स्वीकार करते हैं जैसे वह न्यायालय का मुकदमा न होकर नोबेल पुरस्कार वाचन हो ।
दूसरे देशों में भी इस समय भी और अतीत में भी सत्तारुढ़ व्यक्ति भ्रष्ट तथा अनैतिक हुए हैं । परन्तु पकड़े जाने पर वे न्यायालय की दिशा में नहीं भागे, और इसको न्यायालीय फुटबॉल नहीं बनाया । वे अपने चेहरों को छुपाते हैं, सार्वजनिक जीवन को छोड़ देते हैं । देश छोड़ कर चले जाते हैं और कभी-कभी तो आत्महत्या तक कर लेते है।
दुर्भाग्यवश भ्रष्टाचार ने हमारी सामाजिक आत्मा और व्यवहार में मान्यता प्राप्त कर ली है । पंक्ति से आगे निकलना या बारी के बिना लाभ प्राप्त करना या अवैध लाभ के लिए घूस देना, हम ऐसे करते हैं जैसे यह हमारा जाति स्वभाव या प्रकृति का भाग हो । हम प्रायः ऐसे व्यक्ति का सम्मान करते हैं जिसने धन या उच्च पद प्राप्त किया है । भारत में भ्रष्ट बड़ी शान से न्यायालय जाते हैं, ऐसे पोशाक पहनते हैं जैसे शादी की पार्टी में जा रहे हों, और लोगों के प्रणाम ऐसे स्वीकार करते हैं जैसे वह न्यायालय का मुकदमा न होकर नोबेल पुरस्कार वाचन हो ।
दूसरे देशों में भी इस समय भी और अतीत में भी सत्तारुढ़ व्यक्ति भ्रष्ट तथा अनैतिक हुए हैं । परन्तु पकड़े जाने पर वे न्यायालय की दिशा में नहीं भागे, और इसको न्यायालीय फुटबॉल नहीं बनाया । वे अपने चेहरों को छुपाते हैं, सार्वजनिक जीवन को छोड़ देते हैं । देश छोड़ कर चले जाते हैं और कभी-कभी तो आत्महत्या तक कर लेते है।
रजनीश कुमार
अरई, औरंगाबाद
(बिहार)
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