इतिहासकार मानव जीवन में उन दिनों को क्रांतिकारी दिन मानते हैं जब मनुष्य ने आग की खोज की, पहिये की खोज की, धातु की खोज की तथा मुद्रा की खोज की।
मेरी दृष्टि में हमें उस दिन को भी महत्त्हपूर्ण मान लेना चाहिए जब से वस्त्र पहनना प्रारंभ किया, उसमें जेबें लगी होती थीं। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जैसे मनुष्यों को भारी सामान ढोने के लिए पहिये की, खाना भूनने के लिए आग की, विनिमय के लिए मुद्रा की आवश्यकता पड़ी उसी तरह परिस्थितियों ने उसे जेब का आविष्कार करने के लिए बाध्य किया।
बिना जेब लगी कमीज का मेरी नजरों में कोई महत्त्व नहीं। जेब कद्र का प्रतीक है। जिसकी जेब भरी होती है, समाज में उसके लिए इज्जत, शोहरत, दोस्ती इत्यादि कुछ भी दुर्लभ नहीं होता। ‘जब तक पैसा गांठ में, तब तक ताको यार।’समाज में मनुष्य का मूल्यांकन उसकी जेब के आधार पर किया जाता है। सरकारी दफ्तरों में यदि कोई बिना जेब लगी कमीज पहनकर चला जाये तो मैं गारंटी देता हूं कि काम होने से पहले उसका ही काम तमाम हो जायेगा।
जरा सोचिए, जेब न होती तो काम करने का मजा ही खत्म हो जाता। महीना भर इसी आस पर काम करते हैं कि एक दिन के लिए तो जेब भर ही जायेगी। वैसे कुछ सौभाग्यशाली ऐसे भी हैं जिन्हें रोज ही जेब भरने के अवसर मिल जाते हैं या यूं कहिए वे अवसर ढूंढ़ लेते हैं।
जेब भरी हो तो आदमी किसी तरह की परवाह नहीं करता। इन्हीं जेबों के सहारे दर्जी से लेकर जेबकतरों तक न जाने कितने लोग अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं।
सरकारी तंत्र भी इन्हीं जेबों पर आश्रित है। बजट के दिनों में लोग लाख संभालें पर सरकार की नजरों से जेबों को बचा नहीं पाते। पूरा वित्त मंत्रालय एकजुट होकर इन पर टूट पड़ता है।राजनीति में जेबों का विशेष महत्त्व है। जिसकी जेब भरी होगी, वही सत्ता सुख भोग सकेगा। जेबों के आधार पर क्रय-विक्रय होते हैं। जेबदार नेता सगर्व घोषणा करते हैं-‘इतने सांसद-विधायक तो मेरी जेब में है’। मतलब यह नहीं कि उनकी जेब, जेब न होकर रेल का डिब्बा है। बल्कि भावार्थ है कि जेब शक्ति के आधार पर वे जब चाहे जितनों को आकर्षित कर सकते हैं।विज्ञान का नियम है-जब भी किसी चीज को गर्म किया जाता है वह फैलती है। जेब शक्ति का प्रतीक है। जिसकी कमीज में जितनी अधिक जेबें होंगी वह उतना ही सामर्थ्यवान समझा जाता है। सरकार इस तथ्य को भली भांति जानती थी इसीलिए पुलिस वालों की वर्दी में अनेक जेबों का प्रावधान रखा। दरोगा को जेब लगी वर्दी के कारण सब सलाम ठोकते हैं। हर मोहल्ले से महीने की उगाही आती है। भला जेबों के बिना कैसे काम चल सकता है ?
जेबों में भी उपजेबें होती हैं। जिस तरह हाथी के दांत खाने के और तथा दिखाने के और होते हैं। एवमेव यदि नेता और तस्कर आयकर वालों से बचने के लिए फटी जेबों वाली कमीज पहन भी लें तो इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं समझना चाहिए कि वे निपट त्यागमूर्ति हैं। उनकी फटी गुदड़ियों में भी लाल छिपे होते हैं। सोने के बिस्कुट, हेरोइन, चरस-गांजा सब कुछ अंदर वाली जेबों के माध्यम से इतस्तत: आता-जाता है।
कहावत है ‘विद्या वही जो कंठ में, पैसा वही जो अंट में। अर्थात् जो पैसा आपकी जेब में है वही आपका है। यहां पैसे के साथ-साथ जेब का महत्त्व भी बढ़ जाता है।
बाबू लोग काम के बाद आपसे सेवा-पानी की मांग करते हैं। सौ बातों की एक ही बात है कि उनकी जेब में कुछ दान-दक्षिणा डालो। जितना गुड़ डालोगो, उतना ही मीठा होगा।दाता और ग्रहणेता दोनों के लिए जेब महत्त्वपूर्ण है। जेब की महिमा देख सोचता हूं जिस दिन मनुष्य ने जेब की खोज की वह कितना गौरव अनुभव कर रहा होगा।
सरकार देश से भ्रष्टाचार मिटाने की बात करती है। इसका सरल-सा उपाय है। आज ही नियम बना दे कि कोई भी व्यक्ति जेब लगी कमीज-पतलून नहीं पहनेगा। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। न कोई रिश्वत देगा, न लेगा। सर्वत्र ईमानदारी-ही-ईमानदारी होगी।
लेकिन क्या ऐसा संभव है ? जिस देश में जेब के बिना आप एक चौराहा पार नहीं कर सकते वहां जेबरहित कमीज की बात करना भी बेमानी होगा।
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